'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> सुषमा गुप्ता का लेखन

 


सवाल 1 : आजकल कहानियाँ ख़ूब लिखी जा रही हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि यह कहानियों का दौर है?

कहानियों का दौर कब नहीं था! नानी, दादी, परदादी के समय से कहानियाँ सुनना हम सबको हमेशा से ही बहुत प्रिय रहा है।

कहानियों में एक नई दुनिया खुलती है, काल्पनिक दुनिया जो यथार्थ के ताने-बाने को कहीं से पकड़ती है और कहीं छोड़ती है। मन की ऐसी ऊँची उड़ान पर ले जाती हैं जिसमें हर शख़्स अपने अपने मन के भाव अनुसार ख़ुद को जी लेता है।

हाँ, पर हर दौर का एक बदलाव होता ही है। जैसे क्रिकेट में भी टेस्ट मैच के बाद अब 20-20 ज़्यादा प्रचलित हुआ, उसी तरह पाठकों का रुझान भी कहानियों, ख़ास कर छोटी कहानियों की तरफ बढ़ रहा है।

जहाँ उपन्यास पाठक का डेडिकेशन डिसिप्लिन माँगता है वहीं कहानियाँ आप छोटे अंतराल में भी पढ़ सकते हैं। आजकल की भागती-दौड़ती ज़िंदगी में समय की कमी सभी के पास है पर जैसे टेस्ट मैच को चाहने वाले अभी भी मौजूद हैं इसी तरीक़े से साहित्य की हर विधा के प्रेमी हमेशा ही रहेंगे।


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सवाल 2 : आपकी कहानियों का संग्रह तुम्हारी पीठ पर लिखा मेरा नामअब पाठकों के लिए उपलब्ध है। कैसा रहा लिखी हुई कहानियों से किताब तक का सफ़र?

ज़िंदगी कभी सरल नहीं रही। जब जो चाहा तब वह हो नहीं पाया। तो जो उस वक़्त के मौजूदा हालातों में मुमकिन हुआ मैंने वही किया। मैं 19 साल की उम्र में कॉपीराइटर बनना चाहती थी पर वह किसी वजह से संभव नहीं हो सका। शादी के बाद एकदम नौकरी करना मुमकिन नहीं था तो बाहर की दुनिया से जुड़े रहने के लिए पढ़ाई जारी रखी। एमबीए और एलएलबी करने के बाद लेक्चररशिप में आ गई। पीएचडी भी कर ली। पर इतने साल लगातार अपने अनुभव, अपने आसपास के परिवेश और अपनी कल्पना-शक्ति से बहुत कुछ अपनी डायरी में लिखती रही। मुझे ख़ुद पता नहीं चला कब वह सब छोटी कहानियों से लंबी कहानियों में बदलता चला गया। फिर कुछ दोस्तों के प्रोत्साहन पर कहानियाँ पत्रिकाओं में भेजी। देश की बड़ी साहित्यिक पत्रिकाओं ने उन्हें बड़ा दिल खोलकर सराहा और हाथों हाथ छापा। देश भर से मुझे बहुत सारे मेल्स और कॉल्स आए, उन कहानियों की प्रशंसा भरे। तो मुझे लगा कि लोगों को यह सब पसंद आ रहा है, तब मैंने इन सब कहानियों को व्यवस्थित किया और एक पांडुलिपि तैयार की। उन्हीं दिनों एक ऐड देखा, लिट् ओ फेस्ट मुंबई का मैन्युस्क्रिप्ट कंटेस्ट। मैंने अपनी पांडुलिपि वहाँ भेज दी। जब वहाँ से मेल आया कि‍ श्रेष्ठ पांडुलिपि अवॉर्ड 2019 आपको जाता है तो एक पल के लिए ख़ुद पर यक़ीन ही नहीं आया। यह वही पांडुलिपि है जो किताब की शक्ल में अब पाठकों के सामने आ रही है।


 

लेखिका सुषमा गुप्ता 

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सवाल 3 : शीर्षक कहानी तुम्हारी पीठ पर लिखा मेरा नाममें प्रेम की अलहदा व्याख्या है। किस तड़प से उपजती हैं ऐसी कहानियाँ?

मैं हमेशा अपने लिए एक बात कहती हूँ कि मैं एक शापित आत्मा हूँ। मुझे अक्सर वह भी दिखाई देता है जो दरअसल ज़िंदगी में कभी घटा ही नहीं है। मेरा सबकॉन्शियस माइंड मेरे एक्टिव माइंड पर बहुत ज़्यादा हावी रहता है। कितनी चीज़ें कितनी घटनाएँ मेरा सबकॉन्शियस माइंड बहुत क्लियर देखता है और बहुत बारीक़ी से वह सब मेरे ज़ेहन में दर्ज होती जाती हैं। 'मेरी पीठ पर लिखा तुम्हारा नाम' इस कहानी का बहुत सारा हिस्सा मैंने सपने में देखा था। मेरी ज़्यादातर कहानियाँ मेरे इसी सबकॉन्शियस माइंड की उपज हैं।

मैं ठीक-ठीक नहीं बता सकती कि ऐसा कहाँ, क्या और कौन-सी घटना मुझ पर इतना गहरा असर डालती है कि वह मेरे सबकॉन्शियस माइंड में बुननी शुरू हो जाती है। मैंने प्रयास करके आज तक एक भी लाइन नहीं लिखी, न ही कोई कविता की, न किसी लघुकथा की, न किसी कहानी की। जब मेरा ज़ेहन इनको अंदर-अंदर बुन लेता है तब मैं काग़ज़ पर उतार देती हूँ।

शायद मैंने कहीं ऑनर किलिंग की किन्हीं भयानक हत्याओं का कुछ पढ़ा होगा जिसने मेरे अंतस पर गहरा असर किया होगा और वह मेरे ज़ेहन में अटक गया होगा। हो सकता है वहीं से इस तड़प ने जन्म लिया हो।

 

सवाल 4 : आपके लिए कहानी लिखने का मानक क्या है? विषयवस्तु, पात्र, स्थान विशेष, समय विशेष या फिर कथानक? या फिर कल्पना का सशक्त होना?


सच पूछिए तो मेरे लिए कहानी लिखने का कोई मानक नहीं है। मुझे नहीं पता कि कब, क्या चीज़ मेरे ज़ेहन में अटकती है और वह कहानी में रूपांतरित होती चली जाती है। पर मैं यह ज़रूर कहूँगी कि सब कुछ सिर्फ़ कल्पना भी नहीं होता। एक बीज यथार्थ का कहीं-न-कहीं मेरे आस-पास जरूर गड़ा होता है जिससे मैं कल्पना का एक ऊँचा घना पेड़ सींचती हूँ और उसको कहानियों में ढाल देती हूँ। कभी किरदार ख़ुद जन्म लेते हैं कहानियों में और कभी किरदारों के इर्द-गिर्द कहानी बन जाती है। कोई भी चीज़ क्रिएटिव वर्ल्ड में आप सेट रूल्स के साथ नहीं कर सकते कि यह होगा तभी अगली चीज़ हो सकती है। कम-से-कम मैं तो ऐसा नहीं कर पाती हूँ। मैं कब किस विषय पर या किस किरदार पर या किस परिवेश पर कहानी लिखूँगी यह मैं ख़ुद भी नहीं जानती। जिसको अपने बारे में जो लिखवाना होता है वह जाने कैसे मेरे ज़ेहन में अटक जाता है और काग़ज़ पर उतर जाता है। अपनी लेखन प्रक्रिया के बारे में मैं बस इतना ही कह सकती हूँ।

 

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सवाल 5 : समाज के बहुसंख्यक वर्ग में साहित्यिक चेतना का अभाव रहा है। इसकी पूर्ति का सबसे उत्तम साधन किस विधा में है?

समाज के एक बड़े वर्ग में साहित्यिक चेतना का अभाव होने की बहुत बड़ी वजह हमारी शिक्षा प्रणाली का लचर होना है। दसवीं के बाद कोई लिटरेचर ले ले तो फिर भी वह साहित्य से जुड़ पाता है, बाक़ी किसी भी फील्ड की पढ़ाई में साहित्य की कहीं भी कोई भूमिका रखी नहीं जाती। दसवीं तक की शिक्षा में भी साहित्यिक किताबें पढ़ने की तरफ़ हमारे स्कूलों में कोई ज़ोर नहीं है। ऐसे में बहुत ज़रूरी है जो आज का युवा वर्ग है हम उनकी ज़िंदगियों से जुड़ी कहानियाँ लिखें या उपन्यास लिखें। आज का युवा अधीर है। बहुत कम लोग होते हैं जो धैर्य से एक मोटी पुस्तक पढ़ पाते हैं। इनमें से ज़्यादातर लोग पढ़ना तो चाहते हैं पर समय की और धैर्य की कमी होने से बस छोटी कहानियाँ या फिर अब तो ऑडियोबुक्स का ज़माना है तो वह सुनना चाहते हैं, यूट्यूब पर कहानियाँ या ऑडियो बुक्स पर। अगर हम उन्हें उनके जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से बाँधने में सफल होते हैं तो हम उनका रुझान गंभीर साहित्य की तरफ़ भी बढ़ा सकते हैं। शुरुआती दिनों में कोई भी गंभीर साहित्य नहीं पढ़ता। सब हल्की-फुल्की कहानियों से ही शुरुआत करते हैं पर एक बार जब आप उनसे जुड़ने लग जाते हैं तो धीरे-धीरे उनका भी टेस्ट बदलता है। हर उम्र की साहित्यिक पसंद अलग होती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है हमारी साहित्यिक पसंद भी गंभीर होती जाती है। लिखा तो हर वर्ग के पाठक के लिए जा रहा है पर नए पाठकों को जोड़ने के लिए सरल हिंदी और उनकी ज़िंदगी से जुड़े विषय उठाने बहुत ज़रूरी है।

 

लेखिका सुषमा गुप्ता 


सवाल 6 : कहानी के लिए मुद्दे, समस्याएँ, यथार्थ आदि का होना कितना आवश्यक है? या फिर कल्पना की उड़ान ही काफ़ी है?

आप हमेशा एक ही विषय पर नहीं लिख सकते और आप अगर ऐसा कर रहे हैं तो यह काफी हद तक आपके लेखन की कमी है कि आप अपने आसपास के परिवेश, आसपास की घटनाएँ दुर्घटनाएँ, यथार्थ उन सब से कटकर रह रहे हैं जो कि असंभव है। जब आप अपने आसपास आए दिन बहुत सारी समस्याएँ देख रहे हैं, चाहे वो सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या परिवारिक समस्याएँ ही क्यों ना हों, यह सब कहीं-न-कहीं आप को छूता है तभी आपके अंदर कोई बीज पड़ता है।

कहानी अगर पूरी तरीक़े से यथार्थ है तो वह कहानी नहीं है, वह रिपोर्टिंग है। इसलिए कहानियों में कल्पना-शक्ति का होना भी बहुत ज़रूरी है। संवेदनशील लेखकों के लेखन में आपको उनके समय के मुद्दे, समस्याएँ, यथार्थ की झलक साफ दिखाई देगी। उस सब को दरकिनार करके लिख पाना किसी भी संवेदनशील लेखक के लिए मुमकिन ही नहीं है।


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सवाल 7 : नए रचनाकारों को क्या संदेश देना चाहेंगी?

अगर आपका मन और ज़ेहन किसी चीज़ को लेकर बार-बार व्यथित होता है, अगर आपको ऐसा लगता है कि जो आपके अंतस को द्रवित कर रहा है, उसको काग़ज़ पर उतारकर आप बेहतर महसूस करेंगे तो लिखिए, ज़रूर लिखिए। चाहे वह प्रेम हो या वेदना या कोई सामाजिक सरोकार या कोई रिपोर्ताज।

पर इसलिए मत लिखिए कि बाक़ी सब लिख रहे हैं और आपको शब्दों की कलाकारी आती है और शब्दों का अच्छा चयन करना आता है। ऐसा मत कीजिए। जो रचनाएँ मन से नहीं निकलती वह मन तक जाती भी नहीं, बाक़ी यह तो सभी कह रहे हैं, बहुत सालों से, बल्कि साहित्य से जुड़ा हर इंसान यह बात बार-बार कहता है कि पढ़िए, ख़ूब पढ़िए और लगातार पढ़िए।

 

About the Author

 

सुषमा गुप्ता: मेरा परिचय इतना भर है कि मैं एक शापित आत्मा हूँ, जो ज़िंदगी के रहस्य को जानने की जद्दोजहद में रातें काली करती है काग़ज़ पर और दिनों को बुनती है क़लम की सिलाई के फंदों से।

अब तक के जीवन की उपलब्धि मात्र इतनी-सी कि कुछ लोगों से मन से प्रेम कर पाई और कुछ लोग‌ मुझे, मुझसे भी ज़्यादा प्रेम करते हैं बावजूद मेरे कुछ न होने के। हालाँकि दुनिया के नज़रिये से आप परिचय पढ़ेंगे तो लिखा है-

एम.कॉम, एमबीए, एलएलबी, पीएचडी।

कुछ साल मानव संसाधन और क़ानून पढ़ाया। फ़िलहाल एक मल्टीनेशनल कंपनी में एमडी हूँ।

कशीदाकारी और चित्रकारी बेहद पसंद है। इसके अलावा एक कविता-संग्रह उम्मीद का एक टुकड़ाभी अपने खाते में है।

इस किताब को लिट-ओ-फ़ेस्ट मुंबई 2019 की सर्वश्रेष्ठ पांडुलिपि का खिताब मिल चुका है।

मेरा संपर्क-सूत्र: 327suumi@gmail.com

 

नोट : इस लेख की सारी जानकारियां और सुषमा गुप्ता जी की "हिन्द युग्म" द्वारा अमेज़न डॉट इन पर लिखे गए लेख से ली गयी है\

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