'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> “दिव्य प्रकाश दूबे” की पांच किताबों के बारें में।

 

"किताब की बातें” कॉलम में आज हम बात करेंगे “दिव्य प्रकाश दूबे” की पांच किताबों के बारें में मसाला चाय, मुसाफ़िर Cafe, अक्टूबर जंक्शन, शर्तें लागू और इब्नेबतूती । सभी किताबों के बारे में निचे लिखा गया है और उनके प्राप्त करने का अम्जों लिंक भी मौजूद है। आप चाहे तो यही से सीधे अमेज़न पर जा कर दिव्य जी की किताबें प्राप्त कर सकते हैं।

 

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मसाला चाय

मसाला चायकी कहानियाँ आपकी ज़िन्दगी जैसी हैं। कभी थोड़ा ख़ुश, कभी थोड़ा उदास तो कभी दोस्तों के साथ ख़ुशियों जैसे तो कभी सबसे नज़र बचाकर आँसू बहाती हुईं। मसाला चाय को पढ़ना ऐसे ही है जैसे अपने कॉलेज की कैंटीन में सालों बाद जाकर दोस्तों के साथ चाय पीते हुए गप्पे मारना। अगर आप हिन्दी पढ़ना शुरू करना चाहते हैं तो यह किताब आपकी पहली किताब हो सकती है। बिल्कुल बोलचाल की भाषा में लिखी हुई किताब। आपको पढ़ते हुए ऐसा लगेगा जैसे लेखक जैसे लेखक कहानियाँ पढ़कर सुना रहा है। वैधानिक चेतावनी: मसाला चाय जिसको अच्छी लगती है उसको उसको बहुत अच्छी लगती है जिसको बुरी उसको बहुत बुरी।



 

 






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मुसाफ़िर Cafe

हम सभी की जिंदगी में एक लिस्ट होती है। हमारे सपनों की लिस्ट, छोटी-मोटी खुशियों की लिस्ट। सुधा की जिंदगी में भी एक ऐसी ही लिस्ट थी। हम सभी अपनी सपनों की लिस्ट को पूरा करते-करते लाइफ गुज़ार देते हैं। जब सुधा अपनी लिस्ट पूरी करते हुए लाइफ़ की तरफ़ पहुँच रही थी तब तक चंदर 30 साल का होने तक वो सबकुछ कर चुका था जो कर लेना चाहिए था। तीन बार प्यार कर चुका था, एक बार वो सच्चा वाला, एक बार टाइम पास वाला और एक बार लिव-इन वाला। वो एक पर्फेक्ट लाइफ चाहता था।

 


 

 






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अक्टूबर जंक्शन

चित्रा और सुदीप सच और सपने के बीच की छोटी-सी खाली जगह में ‍10 अक्टूबर 2010 को मिले और अगले 10 साल हर 10 अक्टूबर को मिलते रहे। एक साल में एक बार, बस। अक्टूबर जंक्शन के दस दिन’ 10/अक्टूबर/ 2010 से लेकर 10/अक्टूबर/2020 तक दस साल में फैले हुए हैं। एक तरफ सुदीप है जिसने क्लास 12th के बाद पढ़ाई और घर दोनों छोड़ दिया था और मिलियनेयर बन गया। वहीं दूसरी तरफ चित्रा है, जो अपनी लिखी किताबों की पॉपुलैरिटी की बदौलत आजकल हर लिटरेचर फेस्टिवल की शान है। बड़े-से-बड़े कॉलेज और बड़ी-से-बड़ी पार्टी में उसके आने से ही रौनक होती है। हर रविवार उसका लेख अखबार में छपता है। उसके आर्टिकल पर सोशल मीडिया में तब तक बहस होती रहती है जब तक कि उसका अगला आर्टिकल नहीं छप जाता। हमारी दो जिंदगियाँ होती हैं। एक जो हम हर दिन जीते हैं। दूसरी जो हम हर दिन जीना चाहते हैं, अक्टूबर जंक्शन उस दूसरी ज़िंदगी की कहानी है। अक्टूबर जंक्शनचित्रा और सुदीप की उसी दूसरी ज़िंदगी की कहानी है।


 

 






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शर्तें लागू

आप कह सकते हैं कि 'शर्तें लागू' नई वाली हिंदी की पहली किताब है। इस किताब में आपके स्कूल में पढ़ने वाली वह लड़की है जिसके बारे में सब बातें बनाते थे। मोहल्ले के वह भइया हैं जो कुछ भी हो जाता था तो कहते थे टेंशन मत लो यार सब सही हो जाएगा। वे अंकल हैं जो कभी आपसे ख़ुश नही होते। ऐसे समझ लीजिए जैसे किसी ने आपकी डायरी लिख दी हो जिसमें कुछ सच हैं, कुछ यादें हैं, पहला प्यार है और आपकी कुछ ऐसी बातें जो केवल आपको ही पता हैं। इस किताब में शामिल सभी 14 कहानियाँ आपके आसपास की ही कहानियाँ हैं।

 

 

 


 

 

 




इब्नेबतूती

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होता तो यह है कि बच्चे जब बड़े हो जाते है तो उनके माँ-बाप उनकी शादी कराते हैं लेकिन इस कहानी में थोड़ा-सा उल्टा है, या यूँ कह लीजिए कि पूरी कहानी ही उल्टी है। राघव अवस्थी के मन में एक बार एक उड़ता हुआ ख़याल आया कि अपनी सिंगल मम्मी के लिए एक बढ़िया-सा टिकाऊ बॉयफ्रेंड या पति खोजा जाए। राघव को यह काम जितना आसान लग रहा था, असल में वह उतना ही मुश्किल निकला। इब्नेबतूती आज की कहानी होते हुए भी एक खोए हुए, ठहरे हुए समय की कहानी है। एक लापता हुए रिश्ते की कहानी है। कुछ सुंदर शब्द कभी किसी शब्दकोश में जगह नहीं बना पाते। कुछ सुंदर लोग किसी कहानी का हिस्सा नहीं हो पाते। कुछ बातें किसी जगह दर्ज नहीं हो पातीं। कुछ रास्ते मंज़िल नहीं हो पाते। इब्नेबतूती-उन सभी अधूरी चीज़ों, चिट्ठियों, बातों, मुलाक़ातों, भावनाओं, विचारों, लोगों की कहानी है।.



NOTE: यहाँ की सारी जानकारियाँ अमेज़न.इन से ली गयी हैं..

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