आपको नई वाली हिंदी का पोस्टर बॉय कहा
जाता है। यह सब सुनकर कैसा लगता है?
मैंने पहले भी शायद किसी इंटरव्यू में
कहा है कि जीवन में मिल तो सब कुछ जाता है, बस टाइम से नहीं मिलता। एक समय में
मैं सोचता था कि मैं हिंदी में नए पाठकों के लिए रास्ता खोलने की कोशिश करूँगा।
उम्र के जिस दौर में यह सब सपने आदमी देखता है तब मैंने भी देखे। अब जब सब बोलते
हैं तो लगता है कि ये सब महज बातें हैं। आज मैं हूँ कल कोई और होगा। असली बात यह
है कि हम जो भी लिखें, वो पाठक के मन की किसी तह को छुए। वही असली खुशी है।
आपकी किताब हर बार बेस्टसेलर लिस्ट
में रहती है। बेस्ट सेलर लिखने का कोई फॉर्मूला है क्या?
बेस्ट सेलर लिखने का तो कोई फॉर्मूला
नहीं है लेकिन मैं यह बता सकता हूँ कि बेस्टसेलर न लिखने का एक ही फॉर्मूला है कि
हम बेस्टसेलर किताबों के जैसे अपनी किताब लिखने लगें। वैसे तो कोई भी फॉर्मूला है
नहीं लेकिन मैं एक बात मानता हूँ कि लिखाई केवल कमरे में बैठकर नहीं होती है।
लिखाई तो किताबों, लोगों, शहर के गली-चौराहों, चाय की टपरी, आवारागर्दी, और भी तमाम चीज़ों
से मिलकर आती है। मैं बस कोशिश करता हूँ कि जो मेरा समय है, उसे पकड़ के चलूँ।
क्योंकि उस समय में लोगों को ख़ुशी, सपने, आँसू, उदासी, उम्मीद जहाँ से मिलती है,बस वहीं से मुझे
कहानी मिल जाती है।
आपका उपन्यास इब्नेबतूती क्यों पढ़ना
चाहिए?
हम अपने पेरेंट्स के लिए कभी ऐसा नहीं
सोचते कि वे भी कभी 20 साल के कॉलेज जाने वाले लोग रहे होंगे। हम कभी नहीं जान पाते कि
उन्होंने अपने कॉलेज में कैसे मस्ती की होगी। क्या उन्होंने कभी क्लास बंक किया
होगा? क्या उन्होंने कभी अपने घरवालों से किसी छोटी-सी बात पर झूठ बोला
होगा?
इब्नेबतूती अपने माँ-बाप को नए सिरे
से जानने के लिए पढ़ना चाहिए।
आपकी किताबें एक लाख से ज्यादा बिक
चुकी हैं। हिंदी में ऐसा कम ही होता है। कैसा लगता है?
अच्छा लगता है और इस बात का भरोसा
होता है कि इतने सारे लोग मेरी कहानियों के माध्यम से अपना हिस्सा ढूँढ़ पाते हैं।
एक जिम्मेदारी भी लगती है कि इतने पाठकों को हर बार मैं एक नई यात्रा पर लेकर जा
सकूँ।
आप अपने पाठकों को कैसे देखते हैं?
मैं ऐसे सोचता हूँ जैसे कोई सफर में
जा रहा हो और आपको अपनी पड़ोस वाली सीट पर बैठे इंसान के बारे में कुछ भी न पता हो
और सफर खत्म होने से पहले आप एक-दूसरे के अच्छे दोस्त बन जाएँ। मैं पाठकों को अपने
दोस्तों की तरह देखता हूँ।
आप अपनी कहानियों को लोकप्रिय बनाने
के लिए यूट्यूब का भी सहारा लेते हैं। यह आइडिया कहाँ से मिला और आपके लिए कितना
फायदेमंद साबित हुआ?
मैं जिस तरीके के माहौल में नौकरी
करता था वहाँ ज्यादातर लोग किताब तो नहीं पढ़ते थे लेकिन हाँ वीडियो सभी लोग देखते
थे। मुझे लगा कि क्यों न उनको वहीं पर मजेदार तरीके से किताब के बारे में बताया
जाए!मुझे वीडियो की वजह से बहुत फायदा मिला है। मैं नए लेखकों को भी यह सलाह
दूँगा। आजकल के पाठक लेखक को अपने दोस्त की तरह देखते हैं और आपके बारे में बेहतर
तरीके से जानना चाहते हैं। इसलिए वीडियो बनाना पाठकों से जुड़ने का कारगर तरीका है।
लिखने से पहले पढ़ना कितना जरूरी है?
उतना ही जितना मछली के लिए पानी, चाय के लिए पत्ती।
केवल किताबों को ही पढ़ना ज़रूरी नहीं है बल्कि लोगों, शहर, सड़क और गाँव, कुल मिलाकार अपने
आस-पास की दुनिया को जानना जरूरी है।
क्या है ये नई वाली हिंदी?
बोलचाल वाली हिंदी, बिन फॉर्मेलिटी
वाली हिंदी, दोस्ती-यारी वाली हिंदी। इंग्लिश में एक वर्ड होता है intimacy (अंतरंगता)। अंतरंगता तभी होती है जब बीच की फॉर्मेलिटी हट जाए। नई
वाली हिंदी वही है जो कि आपसे आपके करीबी दोस्त की तरह बात करती है।
जो हिंदी या अपनी भाषा में किताब नहीं
पढ़ते, उनसे कुछ कहना चाहते हैं?
आपको किस भाषा में किताब पढ़नी है, ये किसी की भी
पर्सनल चॉइस है। मैं बस एक छोटी-सी चीज पर आपका ध्यान ले जाना चाहता हूँ कि जब आप
बोलते हो न I love my India, तो एक बार कभी सोचिएगा आपके इंडिया में आपकी भाषा भी आती है।
भाषाएँ हमारे गाँव की तरह होती हैं जहाँ हमें खुला आसमान, छाँव, तलाब और सुकून
मिलता है।
आपका सबसे खूबसूरत सपना, जो अभी तक पूरा न
हुआ हो?
किसी राष्ट्रीय अखबार के पहले पूरे
पेज पर हिंदी किताब का ऐड (विज्ञापन) देखने का सपना। हालाँकि ये सपना आधा पूरा हो
चुका है। मैंने अमेजन AudibleSUNO के लिए एक सीरीज लिखी और सुनाई थी जिसका नाम ‘पिया मिलन चौक’ है। उसका एक ऐड
अखबार के पहले पन्ने पर आया था,
जिसमें अमिताभ बच्चन साहब के साथ में
अपना नाम देखकर बहुत अच्छा लगा।
About the Author
दिव्य प्रकाश दुबे ने चार बेस्ट सेलर
किताबें—‘शर्तें लागू’, ‘मसाला चाय’, ‘मुसाफ़िर Cafe’ और ‘अक्टूबर जंक्शन’—लिखी हैं। ‘स्टोरीबाज़ी’ नाम से कहानियाँ सुनाते हैं। AudibleSUNO एप्प पर उनकी सीरीज ‘पिया मिलन चौक’ सर्वाधिक सुनी जाने वाली सीरीज में से
एक है। दस साल कॉरपोरेट दुनिया में मार्केटिंग तथा एक लीडिंग चैनल में कंटेंट
एडिटर के रूप में कुछ साल माथापच्ची करने के बाद अब वह एक फ़ुलटाइम लेखक हैं।
मुंबई में रहते हैं। कई नए लेखकों के साथ ‘रायटर्स रूम’ के अंतर्गत फ़िल्म, वेब सीरीज़, ऑडियो शो विकसित
करते हैं।
NOTE: ये आर्टिकल अमेज़न से लिया गया है, जहाँ दिव्य प्रकाश जी कि किताबों के साथ हिन्द युग्म की तरफ़ से ये लिखा गया था.
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