'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> पुस्तक समीक्षा : तुम्हारे बारे में...


किताब :- "तुम्हारे बारे में..."

लेखक:- मानव कौल
प्रकाशक:
हिन्द युग्म
201 बी, पॉकेट ए, मयूर विहार फ़ेस-2, दिल्ली-110091
पहला संस्करण: दिसंबर 2018

ISBN: 978-93-87464-30-8


क्या तुमने कभी देखा है ख़ुद को पढ़ते हुए?
मैंने उस दृश्य को लिखा है तुम्हारे लिए....

तुम्हारे बारे में किताब के पहले पन्ने पर उकेरे गए इन पंक्तियों से मानव ने ये किताब शुरू किया और इस में एक अलग कोशिश की है। ये न कहानी है और न ही कविता। मानव कहते हैं....

         इस किताब में यात्राएँ हैं, नाटकों को बनाने का मुक़्त अकेलापन है, कहानियाँ हैं, मौन में बातें हैं, इंस्टाग्राम की लिखाई है और लिखने की अलग-अलग अवस्थाएँ हैं। एक तरीक़े का बाँध था, जिसका पानी कई सालों से जमा हो रहा था। इस किताब में मैंने वह बांध तोड़ दिया है।


मानव कौल

मानव कौल


कश्मीर के बारामूला में पैदा हुए मानव कौल, होशंगाबाद (म.प्र .) में परवरिश के रास्ते पिछले 22 सालों से मुंबई में फ़िल्मी दुनिया, अभिनय, नाट्य निर्देशन और लेखन का अभिन्न हिस्सा बने हुए हैं। अपने हर नए नाटक से हिंदी रंगमंच की दुनिया को चौंकाने वाले मानव ने अपने ख़ास गद्य के लिए साहित्य - पाठकों के बीच भी उतनी ही विशेष जगह बनाई है। इनकी किताबों - 'ठीक तुम्हारे पीछे', 'प्रेम कबूतर', 'तुम्हारे बारे में', 'बहुत दूर, कितना दूर होता है' और 'अंतिमा' को पाठकों का अथाह प्यार मिला है। इनकी किताबें दैनिक जागरण नीलसन बेस्टसेलर में शामिल हो चुकी हैं ।

मानव कौल की किताबों को पढ़ना ऐसा है जैसे किसी झील के किनारे बैठ कर झील में पॉव डालकर पानी के ठंडक को महसूस करना हो। कभी कभी ऐसा है जैसे शाम को किसी पेड़ पर बैठे चिड़ियों की चहचहाहट को सुनना हो। लम्बी यात्राओं की ख़ामोशी में ख़ुद को टटोलना हो।

मैं उस आदमी से दूर भागना चाह रहा था जो लिखता था। बहुत सोच-विचार के बाद एक दिन मैंने उस आदमी को विदा कहा जिसकी आवाज़ मुझे ख़ालीपन में ख़ाली नहीं रहने दे रही थी। मैंने लिखना बंद कर दिया। क़रीब तीन साल तक कुछ नहीं लिखा। इस बीच यात्राओं में वह आदमी कभी-कभी मेरे बगल में आकर बैठ जाता। मैं उसे अनदेखा कर के वहाँ से चल देता। कभी लम्बी यात्राओं में उसकी आहट मुझे आती रही, पर मैं ज़िद में था कि मैं इस झूठ से दूर रहना चाहता हूँ।
इस बीच लगातार मेरे पास फ़ोन था जिसमें यात्राओं में तस्वीर खींचता रहा। फिर किसी बच्चे की तरह यहाँ-वहाँ देख कर कि कहीं वह आदमी आस पास तो नहीं है? मैं अपने फ़ोन में नोट्स खोलता और ठीक उस वक़्त का जो भी महसूस हो रहा है जिसे मैं छू भी सकता हूँ, दर्ज कर लेता। इन दस्तावेज़ों को उस वक़्त की खींची तस्वीरों के साथ इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर देता। मानो अंतरिक्ष में संदेश छोड़ा हो। शायद मैं इस तरह का लिखना बहुत समय से तलाश रहा था। जो न कविता है न कहानी है। वह बस उस वक़्त की सघनता का एक चित्र है जिसमें पतंग बिना धागे के उड़ रही है।

~किताब से



अभिनय करते मानव कौल

आपको ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए?


इस किताब के बारे में बताने से पहले तो आप यहीं सोचे कि कोई भी किताब आख़िर क्यों पढ़नी चाहिए? हर किताब से हम कुछ ना कुछ सीखते हैं और मानव द्वारा लिखित किताबों से तो हम संवेदनाएं, प्रेम, उदासी, जीवन, यात्राएँ, सहायता, ज्ञान-विज्ञान और जीवन की सच्चाई के साथ साथ और भी हजार बातें।
जैसे कि मैंने पहले ही बताया की मानव को पढ़ना ऐसा है जैसे किसी झील के किनारे बैठ कर झील में पॉव डालकर पानी के ठंडक को महसूस करना हो......

           मानव ने इसमें लोगों के बारे में लिखा है- माँ के बारे में, पिता के बारे में, लेखकों के बारे में, गुरुओं के बारे में। और जो उन्होंने लिखा वो अथाह प्यार है, उन लोगों के साथ जिया कोई लम्हा था बस, प्यारा सा लम्हा… मानव ने शहरों के बारे में लिखा- लन्दन, स्कॉटलैंड, न्यूयॉर्क, स्पेन और भोपाल भी… उन्होंने यात्राएँ लिखीं- बैंकाक से कराबी आइलैंड की यात्रा, प्राग से ब्रैटिस्लावा की यात्रा और ये यात्राएँ एक दम छोटी-छोटी, कोई मुकम्मल यात्रा नहीं… बस एक टुकड़ा किसी लम्बी यात्रा का।


इस किताब के शीर्षक से आपको पहले ही लगेगा कि वो कौन है? 'तुम्हारे' किसे कहा है मानव ने, किसके बारे में लिखा है? जब मैंने पढ़ा तो लगा कि जैसे मेरे लिए ही है और पूरी आशा है कि आपको भी ऐसा ही लगे।

          "तुम्हारे बारे में" मानव कौल की तीसरी किताब है जो न कहानी है, न कविता। ये किताब हिन्दी लेखन में एक प्रयोग की तरह है जो पाठकों के लिए ज़रूरी है और इतना ही ज़रूरी लेखकों के लिए भी है। इसे मानव कौल ने बिल्कुल नये अंदाज़ में लिखा गया है।


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इस किताब से कुछ पंक्तियां जो बेहद ख़ूबसूरत और दिल के क़रीब जा बसी।


तुम कहना कि सारा कुछ एक दिन बदल जाएगा और मैं मान लूँगा। फिर कहना कि उस सारे बदलाव के बावजूद आसमान गहरे नीले रंग का ही होगा और उसमें सफेद बादलों में हमें अपनों का चेहरा कभी भी दिख जाएगा, जिन्हें हम खो चुके हैं। क्या तुम कह पाओगी कि हर खो जाने को हम पा लेने से बदल सकेंगे?

क्यों हम किसी के खो जाने से ठीक पहले तक उसे बता नहीं पाते हैं कि हम उन्हें कभी खोना नहीं चाहते।

मुझे लगता है जुगनू की कहानी उसके चमकने में नहीं- उसकी कहानी उस अँधेरे में है जिसे वह दो चमकने के बीच जीता है।

असल में मैंने सारा कुछ जो लिखा है वो प्रेम सरीखा लिखा है- ठीक प्रेम नहीं, क्यूंकि ठीक प्रेम तो अभी भी कहीं- किसी चौखट पर खड़ा है, किसी के इंतज़ार में।

जैसे जैसे मैं इस किताब को पढ़ते पढ़ते इसमें डूबता गया, पूरी उम्मीद है कि आप को भी ये किताब इतनी ही प्यारी लगेगी और शायद आख़िर आख़िर तक आपको भी इस किताब से मोहब्बत हो जाए।
तो आप भी ज़रूर पढ़िए इस किताब को - "तुम्हारे बारे में"




नोट: इस ब्लॉग में संलग्न सभी तस्वीरें मानव कौल जी की फेसबुक पेज से ली गई हैं।

2 Comments

  1. Waah bhai, bahut khubsurat samiksha likhte ho.. jabardast

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