'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> शरद जोशी को लोग समय से आगे का व्यंग्यकार मानते थे!

 

समय से आगे का व्यंग्यकार शरद जोशी




शरद जोशी हिन्दी जगत के प्रमुख व्यंगकार रहे हैं। शरद जोशी जी का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में 21 मई 1931 ई० को हुआ।


जीवन परिचय

कुछ समय तक यह सरकारी नौकरी में रहे, फिर इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया। फिर जीवन भर रचनाएं गढ़ते रहे और अपना जीवनयापन भी इसी से चलाया। 


लेखन परिचय

आरम्भ में कुछ कहानियाँ लिखीं, फिर पूरी तरह व्यंग्य-लेखन ही करने लगे। इन्होंने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। हिन्दी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने प्रमुख व्यंग्यकारों में शरद जोशी भी एक हैं। इनकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण मिलता है।


इनकी कुछ प्रमुख व्यंग्य-कृतियों के नाम निम्न है।

गद्य रचनाएँ परिक्रमा, किसी बहाने, जीप पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, प्रतिदिन(3 खण्ड), यथासंभव, यथासमय, यत्र-तत्र-सर्वत्र, नावक के तीर, मुद्रिका रहस्य, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, झरता नीम शाश्वत थीम, जादू की सरकार, पिछले दिनों, राग भोपाली, नदी में खड़ा कवि, घाव करे गंभीर, मेरी श्रेष्ठ व्यंग रचनाएँ,


दो व्यंग्य नाटक अंधों का हाथी, एक था गधा उर्फ अलादाद खाँ लिखा तथा उपन्यास "मैं, मैं और केवल मैं" उर्फ़ कमलमुख बी० ए० लिखा।

टीवी धारावाहिक यह जो है जिंदगी, मालगुड़ी डेज, विक्रम और बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, दाने अनार के, यह दुनिया गज़ब की, लापतागंज,

फिल्मी सम्वाद क्षितिज, गोधूलि, उत्सव, उड़ान, चोरनी, साँच को आँच नहीं, दिल है कि मानता नहीं में भी इनकी प्रमुख भूमिका रही।


शरद जोशी

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शरद जी के नाम से शरद जोशी सम्मान ;


शरद जोशी सम्मान, उत्कृष्ट सृजन को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने की अपनी सुप्रतिष्ठित परम्परा का अनुसरण करते हुए मध्यप्रदेश शासन ने हिन्दी व्यंग्य, ललित निबन्ध, संस्मरण, रिपोर्ताज, डायरी, पत्र इत्यादि विधाओं में रचनात्मक लेखन के लिए स्थापित किया है। यह गौरव की बात है कि शरद जोशी मध्यप्रदेश के निवासी थे, जिन्हें उनकी सशक्त और विपुल व्यंग्य रचनाओं ने साहित्य के राष्ट्रीय परिदृश्य पर प्रतिष्ठित किया। शरद जोशी ने व्यंग्य को नया तेवर और वैविध्य दिया तथा समय की विसंगति और विडम्बना को अपनी प्रखर लेखनी से उजागर करते हुए समाज को दृष्टि और दिशा प्रदान करने का उत्तारदायी रचनाकर्म किया। उनकी व्यंग्य रचनाओं ने हिन्दी साहित्य की समृद्धि में अपना सुनिश्चित योगदान दिया है।


ये सम्मान पाने वाले पहले साहित्यकार हरिशंकर परसाई थे। उन्हें ये पुरस्कार 1992-93 में दिया गया था। इस सम्मान के अन्तर्गत ₹ 2 लाख की राशि और प्रशस्ति पट्टिका दी जाती है।



आज शरद जोशी का जन्मदिन है। पढ़िए शरद जोशी के लिखे में से दस ख़ास बातें।


1. लेखक विद्वान हो न हो, आलोचक सदैव विद्वान होता है।


2. जो लिखेगा सो दिखेगा, जो दिखेगा सो बिकेगा – यही जीवन का मूल मंत्र है।


3. एक मनुष्य ज़्यादा दिनों देवता के साथ नहीं रह सकता. देवता का काम है दर्शन दे और लौट जाए, तुम भी लौट जाओ अतिथि।


4. उत्तेजना को समय में लपेटा जा सकता है. धीरे-धीरे बात ठंडी पड़ने लगती है. लोग संदर्भ भूलने लगते हैं।


5. आदमी हैं, मगर मनुष्यता नहीं रही. दिल हैं मगर मिलते नहीं. देश अपना हुआ, मगर लोग पराये हो गए।


6. अरे! रेल चल रही है और आप उसमें जीवित बैठे हैं, यह अपने आप में कम उपलब्धि नहीं है।


6. शासन ने हम बुद्धिजीवियों को यह रोटी इसी शर्त पर दी है, कि इसे मुंह में ले हम अपनी चोंच को बंद रखें।


8. मैं ज़रा प्रतिबद्ध हो गया हूं आजकल. यों मैं स्वतंत्र हूं और आश्चर्य नहीं कि समय आने पर मैं बोलूं भी।


9. आलोचना शब्द लुच धातु से बना है जिसका अर्थ है देखना. लुच धातु से ही बना है ‘लुच्चा’।


10. अतिथि केवल देवता नहीं होता, वो मनुष्य और कई बार राक्षस भी हो सकता है।




 

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