एक दुआ के साथ ये ख़त शुरू कर रहा हूँ। तुम जहाँ हो और जहाँ भी रहो अल्लाह तुम्हे मोहब्बत दे। मोहब्बत एक ऐसा जज़्बा है जिससे आदमी इंसान बनता है। जिससे आदमी के अंदर दर्द पैदा होता है और यही दर्द दुनिया के लिए और दूसरी मखलुकात के लिए आदमी के दिल में मोहब्बत और दर्द पैदा करती है।
तुम्हारे दामन पर इल्ज़ाम_ए_बेवफ़ाई का दाग़ लगाया गया। ये वो दाग़ है जो पूरे किरदार के असल को दाग़दार करता है। इसका नतीज़ा जो कुछ भी हो लेकिन एक गैरतमंद मर्द कभी भी इसे कुबूल नहीं करेगा और शायद कोई भी एक बेवफ़ा के साथ ख़ुद को नहीं जोड़ना चाहे। लोग बेवफ़ाई क्यों करते हैं? गैरत और बेवफ़ाई में कितना फ़र्क होता है?
मैं नहीं जानता कि तुम्हारे दामन पर लगा दाग़ सच है या झूठ लेकिन खुदा की कसम मैं अब भी तुम्हारे किरदार की पारसाई की कसम खाऊँगा। इसलिए नहीं कि मुझे तुमसे उनसियत है या मैं तुम्हें मोहब्बत की अदालत के कटघरे में खड़ा नहीं देखना चाहता, इसलिए क्योंकि मुझे इस लड़की के किरदार पर इतना ही एतेमाद व ऐतेबार है जितना कि मुझे यकीन है कि एक साल के बच्चे को अदब नहीं आता।
मैं नहीं जानता कि तुम किस तरह की मोहब्बत में हो लेकिन मैं कहूँगा कि तुम खुद से पूछो कि तुम औरत हो या बेवफ़ा। मोहब्बत है तो आज़ाद रखो। एक फक़िर तुम्हारे दर पर आया था। तुमने अपनी दामन से उसकी कश्कोल में सिर्फ मोहब्बत डाला था और वह वहीं बैठ गया। मैं इल्तेज़ा करूँगा कि उस मोहब्बत को वापस ना लेना। मोहब्बत को आज़ाद रखना जैसे ये हमेशा से रही है।
मैंने कभी तुम्हारी पारसाई पर शक नहीं किया लेकिन मुआशरा जब सवाल करता है तो ज़ेहन ज़रूर भटकता है। ज़ेहन कितना भी भटक कर सवाल करे, मैं अपने ऐतेमाद पर क़ायम हूँ और इस तरह से क़ायम हूँ जैसे ख़ुदा ने दुनिया में हवा और पानी क़ायम रखा है, और आगे भी रहूँगा। तुम भी इस बेलौस ऐतेमाद को मत तोड़ना। यही तो एक लफ्ज़ है जिससे आज भी लोगों को यक़ीन है कि दुनिया अभी बाक़ी रहेगी।
तुम बस याद रखना कि तुम औरत हो। औरत से ही ये दुनिया है, औरत से ही मुआशरा है, औरत से ही अदब है, औरत से ही मर्द भी हैं। एक मर्द औरत के ही सीने से अपनी पहली गेज़ा लेता है, अपनी ज़ुबान से पहला लफ्ज़ बोलना सीखता है, और ज़िन्दगी का हर ज़रूरी काम मर्द औरत से सीखता है।
याद रखना!
तुम उस वजूद से हो जिसे ख़ालिक ने चुना है। चाहे वो आलिम हो, कारी हो, वली हो, पैगम्बर हो, शहीद या गाज़ी हो, हर किसी ने ज़िन्दगी पाने से पहले अपनी 9 महीने की ज़िन्दगी एक औरत के अंदर गुज़ारी है। एक औरत जानती है कि उसकी कोख़ से पैदा होने वाला अपनी ज़िन्दग़ी से नौ महीने बड़ा है। तुम औरत हो। तुम अगर औरत ना हो सकी तो तुम कुछ भी नहीं हो पावोगी।
औरत हमेशा से कटघरे में खड़ी होती रही है। मैं भी इस बात से सहमत नहीं कि हमेशा औरत ही खड़ी हो लेकिन यक़ीन जानों सवाल उसी से पूछा जाता है जो जवाब दे सकता है। मैं ये नहीं कहता कि तुम अपना हक़ छोड़ दो, लेकिन मैं बस ये कहूँगा कि देखना कहीं अपना हक़ लेने के सवाल में किसी दूसरे का हक़ नहीं मारा जाए।
आख़िर में एक बात कहूँगा, अगर कोई तुम्हारे किरदार की पारसाई की पासदरी करता है, कोई कसम खाता है तो तुम भी उसके ऐतेमाद की पासदारी करना। तुम भी यकीन दिलाना कि हक़ के साथ-साथ तुम औरत के फितरत की पासदारी जानती हो। तुम एक औरत हो।
~"अहमद"
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