तुम्हारी जानिब से जो पहला ख़त मक़्बूल हुआ, वह आज तक मेरे पास मौजुद है। जिस में खुशी, सवाल, कुछ परेशानियाँ और गम और ख़ूब सारी मोहब्बतों का इज़हार है। इस में तुम ने मेरे सेहत के मुतअल्लिक कुछ नसीहतें लिखीं हैं, कुछ मुस्तकबिल की फ़िक्र, कुछ गुनाहों से बचने के तरीके और कुछ ख़्वाब देखने का हुक़्म दिया है।
तुमने कहा, तुमने कहा कि हमारेे इस बनते हुए घर को अपनी ज़ुल्फ़ों की छाव में रखोगी और मुझे हुक़्म दिया कि मैं इस घर की दीवार बन कर तुम्हारी और इस घर की हिफ़ाज़त करूं। यकीन मानो मैं मर जाऊंगा लेकिन इस घर पर उड़ते हुए गर्द व गुबार भी नहीं पड़ने दूंगा।
हमारे मुस्तक़बिल का क्या बनेगा? इसकी परेशानी का सबसे पहले तुम ने इज़हार किया है। पहले खत में तो ये सब बातें कोई नहीं लिखता। पहले खत में तो इश्क-मुहब्बत की ही बातें होती हैं। लेकिन तुम्हारा ये अंदाज़ और फिक्र मुझे बहुत पसंद आयी। मुझे पसंद आया के तुम्हे फ़िक्र है मेरी। मुझे पसंद आया कि तुमने लिखा मेरी मुस्तकबिल से तुम्हारी मुस्तकबिल की डोर जुड़ती है।
वैसे तो ये मुख़्तसर सा है लेकिन मेरे लिए बहुत अहम है। इतना अहम के शायद अगर कोई इसके बदले में मुझे करोड़ों रूपए दे तो बिना सोचे मैं मना कर सकता हूँ। यक़िन मानो मैंने आज तक ये खत किसी को पढ़ कर नही सुनाया।मैंने ये खत बहुत सम्भाल कर रखा है। मेरे लिए इस ख़त का एक एक लफ्ज़ ऐसा है जैसे सुबह की किरण हो। इसमें लिखे अल्फ़ाज़ मुझे ताकत देते हैं। कुछ गलत होता है तो इसे पढ़ता हुँ और मुझे मुस्तकबिल के लिए मेहनत करने का हौसला मिलता है।
मैं इसकी देख भाल ऐसे करता हूँ जैसे बागीचे में लगे फूलों की देख भाल एक माली करता है। जिस तरह एक माली को बागीचे में लगे फूलों से मुहब्बत होती है, सुबह सबसे पहले वो फूलों में पानी देता है। ठीक उसी तरह मुझे इस ख़त से मोहब्बत है। सुबह सबसे पहले मैं इस ख़त को देखता हूँ। मेरे लिए ये ख़त तुम्हारी जानिब से भेजा गया एक फूल ही है। इस ख़त की उम्र में जैसे-जैसे इज़ाफा हो रहा है। ये और ज़ईफ हो रहा है। मुझे इसकी फिक्र रहती है कि ये ख़त, ये काग़ज़ का टुकड़ा, कहीं खो ना जाए, बर्बाद ना हो जाए। इसी वजह से मेरा इसकी देख भाल करना बेहद ज़रुरी हो गया है।
अगर मेरे बस में होता तो मैं तुम्हारे तमाम अल्फाज़ को किसी मोती पर उकेर कर अपने कमरे की दिवार पर सजा देता, लेकिन अगर मैने ऐसा कर दिया तो फिर तुम्हारे हाथों से इस काग़ज़ पर लिखे गए लफ़्ज़ों की ख़ुशबू ख़त्म हो जाएगी। इन लफ़्ज़ों में तुम्हारे अक्स को जो देख पता हूँ वो ख़त्म हो जाएगा। तुम्हारे सासों की गर्मी इन्हीं लफ़्ज़ों से महसूस करता हूँ। इस ख़त को रोज़ पढ़ने की एक ख़ास वजह ये भी है कि इससे तुम्हारी खुश्बु आती है। इसको पढ़ते वक़्त मैं तुम्हें महसुस कर सकता हूँ, ये अब तक मेरे पास मौजुद है और अबद तक रहेगा।
अगर कभी वो दिन आए कि इस ख़त हो ख़त्म करना पड़े तो तुम्हारी इस ख़त को जला कर उसकी राख़ को बनाउंगा गेज़ा, अपनी घर के बालकनी में लगे फूलों के पौधों का,
मैं चाहता हुँ तुम्हारे बाद पौधों में लगने वाले फुलों से तुम्हारी ख़ुशबू आती रहे।
waah waah outstanding 👌👌👌
ReplyDeletebahut khubsurat article hai👍👍👍
THANK YOU SO MUCH SIR.//
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