एक अजीब कैफ़ियत-ए-इज़्तिराब* से गुज़र रहा हूँ। झूठे ख़्वाबों को सच मानकर ज़िन्दग़ी में ख़ाली पड़े कैनवास पर अपने हिसाब से खुशगवार रंग भरने की कोशिश करता हूँ लेकिन अगले ही पल इसी ज़िन्दगी की तल्ख़ हक़ीक़त अन्दर से झकझोर देती है। एक झोंका देकर जगा देती है और हक़ीक़त दिखाती है।
ये हक़ीक़त वक़ाई में बहुत तल्ख़ है। कम से कम हसीन झूठे ख़्वाबों से तो तल्ख़ है ही।
हमारी ज़िन्दगी के झूठे ख़्वाबों की तल्ख़ हक़ीक़त ये भी है कि यहाँ सब के सब बेचारे हैं। सच का सामना करना सभी के बस की बात नहीं। और जो शायद ज़िन्दग़ी के सच को क़ुबूल कर लेते हैं उन्हें जज़्बाती और कमज़ोर आदमी बताया जाता है।
ज़िन्दग़ी में इन्सान मोहब्बत का भूखा है। इतना भूखा कि इस रोज़मर्रा की थकान भरी लाचार ज़िन्दग़ी में इन्सान सिर्फ मोहब्बत ढूँढ़ता है। आज कल लोगों की ज़िन्दग़ी इतनी ख़ाली है और ये सिर्फ़ आस-पास के रिश्तों से रश्क़ और बोग्ज़ की वजह से। लोग आस-पास के ज़िन्दा रिश्तों को छोड़ कर प्रैक्टिकल लाइफ जीने लगे हैं। रिश्तों को पहले तौलतें हैं। लोग घर के कमरे में बैठ कर सोशल मीडिया पर रिश्तें तलाशते और बनाते हैं।
फोन के स्क्रीन पर स्वाइप करके रिश्तें बनाने वालों से आग्रह और इल्तेज़ा करूँगा कि आस-पास मौजूद रिश्तों के मुरझाए हुए पौधों को प्यार - मोहब्बत की खाद पानी दे कर उन्हें ज़िन्दा रखों।
ज़िन्दग़ी की तल्ख़ हक़ीक़तों में से एक ये भी है कि लोग आस-पास मौजूद बिखरे रिश्तों और मोहब्बतों को समेटना भूल गए हैं। हमारे आस-पास ही मोहब्बतों के मोती बिखरे पड़ें हैं लेकिन इन मोतियों की चमक हमारे आँखों को तकलीफ देतीं हैं।
हमें चाहिए कि इन सभी मोतियों को समेट कर एक माला बनाकर अपने दिल से लगा लें। यही ज़िन्दा रिश्तें और मोहब्बतें हमें कैफ़ियत-ए-इज़्तिराब से बचाए रखेंगे।
*कैफ़ियत-ए-इज़्तिराब = बेचैनी के हालात
~"अहमद"
waah 👌👌 nice article 👍👍👍👍
ReplyDeleteThank you so much Bhai 🙏❤💐
ReplyDeletewaah bhai sahab.. bahut khub..
ReplyDeleteTHANK YOU SO MUCH BHAI//
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