'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> पुस्तक समीक्षा : बाग़ी बलिया


किताब :- "बाग़ी बलिया"

लेखक:- सत्य व्यास

प्रकाशक: 

हिन्द युग्म 

201 बी, पॉकेट ए, मयूर विहार फ़ेस-2, दिल्ली-110091

पहला संस्करण: अक्टूबर 2019

मूल्य: ₹150 | $8


ISBN: 978-93-87464-70-4


सत्य व्यास


सत्य व्यास जी ने इस उपन्यास में बलिया जिले को केंद्र में रख कर कहानी को गढ़ा है जिसमें दो दोस्त संजय और रफीक की कहानी है। संजय जो कॉलेज में ही राजनीति शुरू करता है और अध्यक्ष बनना चाहता है और रफीक की ऐसी दोस्ती जो अपनी जान लगा कर इसे अध्यक्ष बनाना चाहता है।


रफीक के लिए संजय नेता और संजय के लिए रफीक मियाँ है। व्यास जी ने हिंदू-मुसलमान के रिश्ते पर भी व्यंगीक और हास्य बातें लिखी हैं। दोस्ती, राजनीति, प्रेम और कॉलेज की पढ़ाई और बलिया जिले की गुंडागर्दी को भी ख़ूब व्यक्त किया है।


यह एक ऐसी कहानी है जो आपको हँसाते हुए रुला देने के मोड़ पर ले जाएगी। संजय-रफ़ीक़ की गंग जमनी दोस्ती है। दोस्तों की छेड़ है, प्रेम है, लड़ाई है, नाराज़गी है। रफ़ीक़-उज़्मा का प्रेम है। शहर बलिया की अपनी राजनीति है। षड्यंत्र है। हत्या है। आत्महत्या है। और इन सबसे ऊपर एक ऐतिहासिक ट्विस्ट है। और अंततः सत्य की विजय है।



सत्य व्यास जी की सभी किताबों के
साथ एक सम्मानित पाठक



सत्य व्यास जी बलिया जिला को समझते - बताते हुए कहते है कि.....


जिला है बाबू जी। बलिया जिला। मजाक थोड़े है। यहाँ बदन इकहरा हो तो चला लिया जाता है; जर्दा दोहरा ही चलता है और मर्डर तो तिहरा से कम चलता ही नहीं है। 'दिमाग' का पर्यायवाची यहाँ 'अंगविशेष' है । इसलिए यहाँ 'दिमाग न चाटो' मुहावरा नहीं चलता। दिमाग को विशेष कष्ट देने ही नहीं दिया जाता। अंगविशेष से काम चला लिया जाता है। 


यह सब सुनकर आपको लग रहा होगा कि बलिया जिला में सब शेर है, नहीं बाबूजी। ऐसा नहीं है। कहते हैं कि शेर-ए-बलिया चित्तू पांडे के बाद बलिया में शेर पैदा ही नहीं हुआ। क्यों? क्योंकि यहाँ सभी सवा शेर हैं। 


राजनीति। यहाँ के पाँच तत्व में है। मिट्टी में राजनीति। पानी में राजनीति। आग में राजनीति। आकाश में राजनीति। और-तो-और हवाओं तक में राजनीति घुली हुई है। इसलिए यहाँ जब बेटी पैदा होती है तो लक्ष्मी पैदा होती है मगर जब लड़का पैदा होता है तो गोपाल जी नहीं आते। खुशखबरी सुनाने वालियाँ कहती हैं कि बधाई हो! नेता हुआ है।


~किताब से



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सत्य व्यास 

सत्य व्यास जी


सत्य व्यास उन लेखकों में से हैं जिनकी किताबों का इंतज़ार पाठकों सहित कहानी के एडॉप्टेशन करने वालों को भी रहता है। विभिन्न विषयों पर शोधपरक लिखने के कारण सत्य व्यास हर वर्ग के पाठकों में पसंद किए जाते हैं। सत्य व्यास ने हिंदी में एक नया पाठक वर्ग तैयार कर इस धारणा को गलत साबित किया है कि हिंदी में पाठकों की कमी है। सत्य व्यास को इससे पहले प्रकाशित तीनों किताबें बनारस टॉकीज' , 'दिल्ली दरबार' और 'चौरासी' दैनिक जागरण-नीलसन बेस्टसलर रही हैं। इन तीनों किताबों पर फ़िल्में तथा वेब सीरीज निर्माणाधीन हैं। यह सत्य व्यास का चौथा उपन्यास है। 


यदि आप व्यास जी से जुड़ना चाहते हैं, कुछ पूछना चाहते हैं, बताना चाहते हैं या बतियाना चाहते हैं तो निम्नलिखित पते से अपनी बातें इन तक पहुँचा सकते हैं।

 

ईमेल- info@satyavyas.com 

वेबसाइट- www.satyavyas.com

                      




व्यास जी ने इस उपन्यास में दोस्ती, राजनीति और इनके बीच मध्यम वर्गीय परिवार की स्थिति और कॉलेज प्रेम को भी बहुत अच्छे से लिखा है। और फिर इस कहानी को इतिहास से ऐसे जोड़ा है की बस वाह, आप पढ़िए तो।


जो लड़का कॉलेज में राजनीति करता है उसका एक परिवार भी है और उसकी देख भाल भी करता है।

इतिहास और राजनीति को छात्र-छात्राएँ स्कूल और कॉलजों में जा कर पढ़ते हैं लेकिन इसे सही से समझा जाए तो बहुत ही मजेदार होता है और इसे सत्य व्यास ने अपनी इस किताब में चुनाव के साथ-साथ इतिहास को बढ़िया से घोंटा है। कई सामाजिक बुराइयों जैसे- झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा, जातिवाद और 'चुनाववाद' पर भी कहानी के माध्यम से प्रकाश डालने की कोशिश हुई है। जो ज्यादा तो नहीं, हां कुछ हद तक कामयाब भी है।




आपको ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए?


यदि आपको दोस्ती जैसे एहसास पर विश्वास है और कॉलेज के हॉस्टल की ज़िन्दगी को फिर एक बार महसूस करना चाहते हैं। यदि काॅलेज में दोस्ती, कॉलेज की राजनीति और चुनाव, काॅलेज की प्रेम कहानियाँ आपको भातींं हैं तो ये किताब आपके लिए ही है।


यदि आप भी किसी लड़की के प्यार में पड़ कर सब कुछ भूल गए थे या आपको भी कॉलेज के दिनों में प्रेम था और दोस्ती भी थी और जैसे सभी दोनों को मैनेज करते हैं ऐसे ही यहां भी व्यास जी ने लिखे है, बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में। 


हमेशा से डर इंसान पर हावी रहा है। हर कोई अचानक से हुई घटनाओं से डर जाता है ये मनुष्य की प्रवृति होती है। सबसे अधिक कोई डरता है तो अपनों को खो देने से। अपनी को अपनी गलती से खो देने का दर्द और खालीपन और अपनी ज़िम्मेदारियाँ नहीं पूरा कर पाने की ग्लानि और दोस्ती में जान दे देने का जुनून भी आपको पसंद आएगा।


सत्य व्यास अपनी कहानियों में खोए हुए



क्या बुरा लग सकता है?


मैंने जैसे किताब को पढ़ा और मैं सत्य व्यास जी को जैसे पढ़ते आ हुए आ रहा हूँ, तो यदि इनकी लेखनी में कुछ थोड़ा बहुत अच्छा नहीं भी लगता है तो मैं अच्छा मान लेता हूँ। लेकिन शायद जो पहली बार इस किताब को पढ़ रहे हैं उन्हें कहानी के लम्बाई से परेशानी हो और शायद सोचें कि कुछ सीन हटा दिया जाता तो सही होता।


इस कहानी को फिल्मी अंदाज में गढ़ा गया है और बहुत अच्छे से गढ़ा गया है। संजय की बहन की आत्महत्या और रफीक के दोस्त की मौत शायद आपको थोड़ा परेशान करे लेकिन ये कहानी की दरकार थी। जैसे इस कहानी में बलिया जिले को केंद्र बनाया गया है और बलिया में जैसे मोर्डर्स की खबरें आती हैं, ये आम बात है।


छोटी से छोटी बात पर राजनीति हो जाती है और कट्टा तो ऐसे निकाल आता है जैसे जेब से कुछ सामान खरीदने के लिए लोग पैसे निकलते हैं।


कुल मिलाकर यदि आपको अपने कॉलेज और कॉलेज का उधड़पन याद आता है और थ्रिलर्स आपको पसंद है तो बस ये किताब आपके लिए ही है। वैसे इस ये किताब पूर्वांचलियों की अपनी कहानी है। यदि आप गाँव से या छोटे शहरों से हैं तो पढ़ते हुए आप बार-बार आपनी कल्पनाओं में गोते लगाने पर मजबूर हो सकते हैं। किताब को पढ़ते हुए बिलकुल अपना सा फील होता है, जो कभी न कभी आपने भी देखी या सुनी हैं।




इस पुस्तक के कुछ पंक्तियाँ जो मुझे बहुत अधिक पसंद आयी-


"युवावस्था और प्रेम का अन्योन्याश्रय संबंध है।इस अवस्था में प्रेम से अछूता रह जाना तपस्या है और तपस्या सबके बस की बात नहीं है ।”


 

दुख की मात्रा नापने की कोई इकाई होती तो यह साबित कर पाना बिलकुल भी मुश्किल नहीं होता कि विश्वास का टूटना श्वास के टूटने से कहीं अधिक कष्टकारी होता है। छले जाने का भाव वह घाव है जो दिखता नहीं मगर हर क्षण टीसता रहता है।



'काश' यह शब्द किसी शब्दकोश का ही नहीं बल्कि जीवन का भी सबसे उदास शब्द है। यह महज संत्रास और अफसोस ही नहीं बढ़ाता बल्कि न उठा पाए गए कदमों के लिए धिक्कारता भी जाता है। यह हर उस बात, हर उस पहलू पर कोसता जाता है जो ठीक किए जा सकते थे।


दुख ठहर भी जाए तो दिन नहीं ठहरते। उन्हें अपनी चाल में चलते रहने का शाप है।





नोट: इस ब्लॉग में संलग्न सभी तस्वीरें सत्य व्यास जी की सोशल मीडिया अकाउंट्स से ली गई हैं।

2 Comments

  1. aapka review dene ka andaaz khub h 👌👍👍👍👍

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    1. Bahut bahut dhanyawad sir,, aap logon ki hi protsahna hai ki hamesha likhne ki koshish karte rahta hun... aabhar aapka.!!!

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