'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> ' मस्ज़िद या मन्दिर '

' मस्ज़िद या मन्दिर '

            दानिश एक सच्चा मुसलमान था, अपने वसूलों पर अपनी ज़िन्दगी बसर करता था, उसकी एक ख़ूबसूरत बीवी और एक चार साल की प्यारी सी बच्ची थी, वह अपनी ज़िन्दगी में ख़ुश था लेकिन वो जिस ऑफिस में काम करता था वो ऑफिस उसे दो राहे पर खड़ा कर दिया था।

        सूर्य सिंह, जो कि एक नौजवान व्यक्ति था, उसने अपना एक काम निकलवाने के लिए दानिश को रिश्वत देने की पेशकश की थी, पैसों की बात सुन कर उसके पैर वहीं जम गए, वह सोचने लगा, उसको अपने घर की कितनी ही ज़रूरतें सामने नजर आने लगी, उसने अपनी सारे वसूलों को भूल कर रिश्वत ले ली, सूर्य सिंह का काम हो गया, वो आगे बढ़ गया लेकिन दानिश उलझन में पड़ गया।

         दानिश को ये रिश्वत लेना अब बुरा लग रहा था, उसे अपनी ज़रूरतें याद आयी लेकिन साथ ही उसे अपने कामों के वसूल और ईमानदारी भी याद आयी, ये भी कि इतने सालों म से उसके घर का खर्चा उसकी ही तनख्वाह से तो चल रहा था।
उसने आज तक कभी रिश्वत नहीं लिया था और आज लेने के बाद उसके कदम उसका साथ नहीं दे रहे थें।

         वह बहुत ख़ामोश हो कर सोचता रहा और इस सोच ने उसके पसीने छुड़ा दिए, वह डर गया, वह स्कूटर चालू कर के अपने घर के रास्ते पर चल पड़ा। वह ख़ुद से नाराज़ था, उसे पछतावा था, उसकी आंखों में मोटे मोटे आंसुं थें, वो रो रहा था।

        उसने निश्चय किया कि वह सारे पैसों को दान कर देगा, फिर उलझन में फसा कि ये पैसे कहाँ दान करे?
ये पैसे दानिश के पास थे, तो इन पैसों को मस्ज़िद में दान करे?
या फिर ये सूर्य सिंह नाम के हिन्दू व्यक्ति का है तो मंदिर में?
ये पैसे हिन्दू के हैं या मुसलमान के?

       इन्हीं उलझनों में वो एक मंदिर के सामने रुका, उसने ये तय किया कि ये सारे पैसे वो मन्दिर के दान पेटी में डाल देगा, वो आगे बढ़ा कि पास की मस्ज़िद से उसकी कानों में आजान की आवाज़ पड़ी, वह वहीं रुक गया, वो पहले रिश्वत ले कर परेशान था और अब देने में, मन्दिर और मस्ज़िद में।

        उसने कुछ देर फिर सोचा और निश्चय किया कि ये सारे पैसे वो मन्दिर में दान कर देगा और अपनी गुनाहों की माफ़ी के लिए इतने ही पैसे अपने पास से वह मस्ज़िद में भी देगा।
उसने ऐसा ही किया, अब उसे शांति मिल रही थी, वो सुकून महसूस कर रहा था, वो महसूस कर रहा था कि उसे एक बहुत बड़ी बोझ से आज़ादी मिल गई है।

    कोई इंसान अपनी पीठ पर बोझ लिए ज़िन्दगी ख़ुशी ख़ुशी गुज़ार तो सकता है, लेकिन वो कभी भी अपने दिल में बोझ लिए ख़ुश नहीं रह सकता।
                                       
    ~"अहमद"
                                     

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