पुस्तक समीक्षा: उलझी
पहेली सुलझे बोल
लेखिका: लक्ष्मी
कुमारी
प्रकाशक: राजमंगल प्रकाशन
ISBN: 978-9391428501
पुस्तक “उलझी पहेली-सुलझे
बोल” एक कविता संग्रह है और जब आप ये कविता संग्रह पढतें हैं तो आपको इस संग्रह की
हर कविता और हर कविता के शब्द आपको मंत्रमुग्ध करते हैं. इस पुस्तक में कुछ
कविताएँ आपको ऐसी पढने को मिलेंगी जो विचारपूर्ण हैं. कुछ आपको प्रेम सिखातीं हैं
तो कुछ कविताएँ मनुष्यता भी सिखाती हैं. शब्दों का तालमेल और उनसे बनी कविताएँ
साहित्य में अपनी एक जगह रखती हैं और “साहित्य समाज के लिए आईना है” जैसे कथन को
सत्य भी साबित करतीं हैं. और इस पुस्तक के शब्दों में ये सच्चाई आपको ज़रूर दिखेगी.
आप पुस्तक यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं: BUY BOOK ON AMAZON
इस पुस्तक की पहली
कविता ही बहुत प्रेम मिश्रित भावविभोर है, पहली कविता आप यहाँ पढ़ें;
मैंने अक्सर ये कहा
तुमसे
तुम मेरे जीवन की,
वो रिक्तता हो
जिसे तुम स्वयं भी पूरा नहीं कर सकते.
ऐसी ही भावविभोर कविताओं से भरी ये ‘कविता संग्रह’ आपको बहुत अधिक भाएगी; और आप भी ये बात ज़रूर सोचेंगे कि हर साधारण और गृहणी कहे जाने वाली स्त्रियों के पास भी कहने को बहुत कुछ है और उनकी सोच असाधारण बदलाव के साथ-साथ; उनके भाव बहुत निश्छल और प्रेम से भरे हुए हैं. उन्हें प्रोत्साहन की अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि इस पुस्तक की लेखिका “लक्ष्मी कुमारी” भी खुद को गृहणी और साधारण कहती हैं लेकिन उनकी कविताएँ उन्हें एक भावपूर्ण और असाधारण स्त्रियों की श्रेणियों में खड़ा करती है.
लक्ष्मी जी की
पुस्तक की कविताएँ भावपूर्ण है और आपको भी भावविभोर करती हैं. एक साधारण स्त्री की
लिखी उसके मन की भावनाएं कविताओं का रूप लेकर अब पुस्तक के रूप में आपके सामने
हैं. मुझे पूरी आशा है कि इस पुस्तक की कविताएँ आपको भी अच्छी लगेंगी और आपके
अन्दर की भावनाओं को चोट करेंगी.
लेखिका का परिचय:
लक्ष्मी कुमारी; एक
32 वर्षीय साधारण स्त्री, एक 11 वर्षीय बेटी की माँ, पत्नी और गृहणी भी है. बिहार
के कटिहार से ताल्लुक रखने वाली लक्ष्मी जी ने अपनी स्नातक तक की पढाई कटिहार से
ही पूरी की. घर के साथ साथ अपने परिवार को भी संभाला लेकिन हिंदी साहित्य से ये
जुड़ीं रहीं. हिंदी साहित्य से इनका प्रेम ही है कि इनकी पहली पुस्तक हिंदी में
प्रकाशित हुई है.
आप पुस्तक यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं: BUY BOOK ON AMAZON
आपको ये किताब क्यों
पढ़नी चाहिए?
यदि आप साहित्य
प्रेमी हैं और आपको कहानी और कविताओं से प्रेम हैं और आप सभी कहानी-कविताओं से कुछ
सिखते-समझते हैं तो बिलकुल ये पुस्तक आपके लिए ही हैं. इसमें बहुत सारी रचनाएँ
समाज और प्रेम पर आधारित हैं लेकिन उससे अधिक बड़ी बात ये है कि ये पुस्तक एक
साधारण और खुद को गृहणी कहने वाली स्त्री “लक्ष्मी कुमारी” जी के द्वारा रचा गया
है. एक घर में रहकर अपने परिवार की सेवा करने वाली स्त्री के भाव और अनुभवों के
संयोग से रची गयी कविताओं के संग्रह का आप अंदाज़ा खुद से भी लगा सकते हैं. ये कुछ
कारण है कि आपको ये पुस्तक अवश्य ही पढ़नी चाहिए.
आपको पुस्तक में
क्या कमी लग सकती है?
किसी भी पुस्तक का
रचनाकार चाहता है कि उसकी कल्पनाओं और यथार्थ से जो भी रचा गया है या रचा जा रहा
है उससे; उसके पाठकों को लाभ हो और वो जो भी महसूस किया है उनको अपने शब्दों, अपनी
कहानी और कविताओं के माध्यम से पाठकों तक पंहुचा सके. और बिलकुल यही कोशिश ‘लक्ष्मी’
जी की भी रही है.
लेकिन जैसा कि मैंने
बताया कि ये पुस्तक ‘लक्ष्मी’ जी की पहली पुस्तक है तो इसमें त्रुटियों की
संभावनाएं होती हैं. मुझे पढ़ते हुए ये महसूस हुआ कि पुस्तक प्रकाशित करने से पहले
इसकी प्रूफ रीडिंग नहीं हुई है, क्योंकि
पुस्तक में वर्तनी की त्रुटियाँ हैं.
कविताएँ पढ़ते हुए
शायद आपको ये भी कमी लग सकती है कि कुछ कविताओं में वर्तनी की त्रुटियाँ हैं या
फिर लेखिका की तरफ से उनमे ‘है’ और ‘हैं’ का अत्यधिक जगहों पर प्रयोग नहीं किया
गया है.
मतलब ये निकलत है कि
वर्तनी के साथ-साथ आपको शायद कविताओं में व्याकरण की भी कमी दिख सकती है.
इस पुस्तक से कुछ कविताएँ यहाँ साझा कर रहा हूँ जो बेहद खुबसूरत हैं और मेरे दिल के करीब जा बसी हैं.
पहली कविता;
1.)
मैं तुम्हारे लिए किसी बोझिल
ऑफिस के काम की तरह थी
जिसे तुमने जल्दी से निपटा लिया.
पर तुम मेरे लिए सुकून थे,
जो काम-धंधे से निवृत हो
आदमी कुछ पल अपने को देता है
वही पल थे तुम
जो मैं चाहती थी कभी ख़त्म न हो.
दूसरी कविता;
2)
प्रेम
अगर पाने का नाम होता
तो रुक्मिणी की जगह
राधा का नाम होता.
तीसरी कविता;
3)
जहाँ आत्मा बेपर्दा की गयी हो
सुनो, तुम वहां ऊँची मजबूत
ऐसी दिवार खड़ी कर देना
जो किसी भावनाओं, संवेदनाओं
के बहाव से न टूटे,
ये रीत है दुनिया की
जब किसी वस्तू का पूरा उपयोग
हम कर लेते हैं तो
वो पुरानी या बेकार प्रतीत होने लगती है
ठीक मेरी तरह
इसके लिए तुम खुद को दोषी न समझना
Post a Comment