आपकी किताब ‘पापामैन’ पर रिलीज़ के पहले से ही फ़िल्म बन रही है, आपको कैसा लग रहा है?
मैं जब यह किताब
लिख रहा था तो मैंने इसकी कहानी यूँ ही आकाश और जॉय (इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर्स)
को सुनाई थी, जिनसे मैं किसी और सिलसिले में मिला था। वे मेरी तीसरी किताब ‘यूपी 65’ के राइट्स ख़रीदना
चाहते थे और उस पर वेब सीरीज़ बनाना चाहते थे। उस मीटिंग में, उन्हें ‘पापामैन’ की कहानी बहुत पसंद
आई और उन्होंने मुझे अनिरुद्ध रॉय चौधरी (नैशनल अवॉर्ड विनिंग डायरेक्टर- पिंक) से
मिलवाया। अनिरुद्ध को भी ये कहानी इतनी सुंदर लगी कि उन्होंने तुरंत इस कहानी को
डायरेक्ट करने के लिए हाँ कह दिया, और उसके बाद मैंने लगभग एक साल उनके
साथ इस कहानी पर काम किया और इसे एक फ़िल्म में भी ढाला।
क्या आपकी और भी किताबों पर वेब सीरीज़ और फ़िल्म बनने का काम जारी है?
जी हाँ। मेरे
उपन्यास ‘यूपी 65’ पर वेब सिरीज़ बनाने का काम चल रहा है। कहानी के राइट्स रॉय कपूर
फ़िल्म्स और फ्रेशलाइम फ़िल्म्स ने ख़रीदे हैं। उम्मीद करता हूँ कि वेब सीरीज़
जल्द ही पूरी होगी और आप सबको देखने को मिलेगी। इस बाबत भी मैंने कभी नहीं सोचा था, कि यह किताब
स्क्रीन पर आएगी, लेकिन जब इस किताब को विशाल भारद्वाज (डायरेक्टर- ओमकारा, मक़बूल, हैदर) ने लांच किया
था और इस किताब के कुछ हिस्से सुनकर उनकी बहुत तारीफ़ की थी, तब मुझे पहली बार
लगा था कि हाँ इस किताब को स्क्रीन पर एडॉप्ट किया जा सकता है।
‘नमक स्वादानुसार’
और ‘ज़िंदगी आइसपाइस’ की कई कहानियों पर
शार्ट फ़िल्में बहुत लोगों ने बनाई हैं और उनका रंगमंच पर देश भर में मंचन भी
होता ही रहा है।
निखिल सचान |
आप एक बड़े बैंक में वाइस
प्रेसिडेंट हैं, साथ ही IIT और IIM से पढ़े भी हैं। इस लिहाज़ से
आपको हिंदी का चेतन भगत भी कहा जाता है। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
सच कहूँ
तो चेतन और मेरे लेखन में कोई समानता नहीं है। शायद वो अँग्रेज़ी के सबसे अधिक
बिकने वाले IIT-IIM लेखक हैं, इसलिए
लोग मुझे हिंदी का चेतन भगत कह देते हैं। लेकिन मुझे निखिल सचान कहलाना ही पसंद
है। वह निखिल, जो कहानियों
के लिए पागल है और जिसे हिंदी साहित्य से बहुत प्यार है।
आपकी सभी किताबें बेस्टसेलर रही हैं? क्या इसका कोई फ़ॉर्मूला है?
बेस्टसेलर
लिखने का कोई फ़ॉर्मूला नहीं होता। हाँ, लोगों के मन से जुड़ने का
फ़ॉर्मूला ज़रूर होता है। जब लोगों से उनकी ही भाषा में, आत्मीयता से बिना लाग-लपेट के
उनकी ही बात की जाती है तो आप सीधा उनके दिल से जुड़ पाते हैं। मेरी कोशिश हमेशा
यही रही है कि मैं हर कहानी पिछली कहानी से बेहतर लिखूँ, कुछ नया लेकर आऊँ और मेरी भाषा
एकदम धारदार हो। उसमें साहित्यिक सुंदरता हो, लेकिन उसे समझना लोगों को बोझिल
न लगे।
कैसा लगता है जब आपको हिंदी
किताबों को वापस से पॉपुलर बनाने का श्रेय दिया जाता है?
पहले हम
एक किताब की हज़ार कॉपी बिक जाने पर भी ख़ुश होते थे. अब हम लाख किताबों का टारगेट
करते हैं। ये हमारी ज़िद थी कि हम एक दिन हिंदी किताबों को अँग्रेज़ी किताबों से आगे
ले जाकर रहेंगे। अब मुझे जब हिंदी किताबों के बारे में अपनी बात कहने के लिए TEDTALK
और
लिटरेचर फ़ेस्टिवल्स में बुलाया जाता है तो वो हज़ारों लोगों के सामने नई वाली
हिंदी की किताबों की बात कहना बहुत सुख देता है। आज जब यह ख़बर मिलती है कि मेरी
किताबों पर जर्मनी (मैक्सम्यूलर यूनिवर्सिटी) और अमेरिका (यूनीवर्सिटी ऑफ़ ह्यूस्टन, टेक्सस) में थीसिस छपी है तो
बहुत ख़ुशी होती है।
BBC, Amazon और FICCI से मिले पुरस्कारों के बारे में बताइए। आपकी किताबों को और भी अवॉर्ड दिए गए हैं।
‘नमक
स्वादानुसार’ को BBC ने 2013 की ‘रीमार्केबल’ किताबों की लिस्ट में रखा था। ‘यूपी 65’ के लिए मुझे FICCI और Amazon से ‘इमर्जिंग ऑथर ऑफ़ द ईयर’ का अवॉर्ड दिया गया। ‘यूपी 65’ अमेज़न पर 2018 की टॉप 5 हिंदी किताबों की लिस्ट में भी
रही। मेरी तीनों किताबें नीलसन और जागरण की बेस्टसेलर लिस्ट में तमाम बार रही हैं।
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