'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> क्रिसमस की रात एक चर्च में 70 साल पुरानी ‘यीशु मसीह’ की मूर्ति को तोड़ा.

 

अंबाला: क्रिसमस की रात कैथोलिक चर्च में लगी 70 साल पुरानी यीशु मसीह की मूर्ति तोड़ी, ईसाई समुदाय में रोष.

 


दो दिनों पहले आयी एक ख़बर के बारे में ‘अमर उजाला’ ने इस हेडिंग्स के साथ खबर लिखी. ये ख़बर अमबाला की है जिसमे क्रिसमस की रात में एक चर्च में 70 साल पुरानी ‘यीशु मसीह’ की मूर्ति को तोड़ दिया गया इसके लिए ईसाईयों में रोष है बहरहाल; जैसे ही इस बात की भनक पोलिस को लगी तो घटना स्थल पर पहुँचकर पोलिस ने सब कुछ अपने हाथो में ले लिया और वहां लगे CCTV कैमरे से इसकी जाँच पड़ताल की जा रही है


 
चर्च में तोड़ी गई यीशु मसीह की मूर्ति।
फोटो: अमर उजाला
            


अब ऐसी मूर्तियों की तोड़े जाने की ख़बर ये कोई नई बात नहीं है ख़बर आती है कि कुछ असमाजिक तत्वों ने झुण्ड में एक मंदिर को गिरा दिया तो कुछ दिनों बाद ख़बर आती है कि मस्जिद को तोड़ दिया गया जिससे प्रार्थना करने पहुचे लोगों को बहुत परेशानी हुई

 

एक सवाल उठता है क्यों?

 

मैं भी यही सवाल करना चाहता हूँ कि क्यों? आख़िर इतनी नफ़रत आई कहाँ से? आख़िर कौन हैं वो लोग जो अपनी नफ़रत को संतुष्ट करने के लिए धर्मो और पूजा स्थलों पर हमले कर के उसे तोड़े जा रहे हैं?

क्या ‘यीशु मसीह’ की मूर्ति तोड़ने से वो इनसे नाराज़ हो जायेंगे? वो तो वहां ऊपर बैठे नादान लोगों को देख कर हँस रहें होंगे कि कितने नादान हैं कुछ समझते ही नहीं


क्या मस्जिदों को तोड़कर या मंदिरों को गिराकर हम उनके अल्लाह और भगवन को चोट पहुंचाते हैं? नहीं; ऐसा बिलकुल भी नहीं है ये हमारी आस्था है कि हमारे कुछ भाई-बन्धु अल्लाह में भरोसा रखते हैं तो कुछ भगवान में; कुछ ‘यीशु मसीह’ में तो कुछ ‘वाहे गुरु’ में और कुछ अन्य अपने-अपने धर्म और मज़हब के बताए गए रास्तों पर चलने की कोशिश करते हैं हम कभी भी किसी इन्सान को मारकर या फिर उनकी आस्था को चोट पहुँचाकर उनसे बदला नहीं ले सकते और न ही उनके भगवान को हम छोटी सी खराश भी पहुँचा सकते हैं


यदि हम कुछ कर सकते हैं तो बस एक दुसरे से प्यार; क्योंकि हमारी हजारों गुनाहों और गलतियों के बाद भी वो ऊपर वाला हमें माफ़ कर देता है और हमें हमारी ज़रूर की हर वो चीज़ देता है जो हमें दुनिया में जिंदा रहने के लिए चाहिए कभी कभी तो उससे भी ज़्यादा

 

इन लड़ाईयों और नफरतों को कैसे ख़त्म किया जाना चाहिए?

 

ये लड़ाईयाँ या नफ़रत किसी के दिल से ख़त्म करने के लिए उसके दिल में हमें नफरत और बदले की आग की जगह प्यार और मोहब्बत की आग जलानी पड़ेगी और इसके लिए सिर्फ एक ही चीज़ है वो हुस्न-ए-एखलाक; मतलब कि हर उस इन्सान से प्यार और मोहब्बत जो हमसे बिना किसी वजह के भी नफ़रत करते हैं या फिर हमसे इसलिए भी नफ़रत करते हैं कि वो हमें हमारी किसी एक ख़ास मज़हब के साथ ताल्लुक से खुश नहीं है


नफ़रत को हम कभी भी नफ़रत से ख़त्म नहीं कर सकते तो यदि हमें इस दुनिया में ख़ुशी-ख़ुशी रहना है तो सबसे पहले हमारे सामने वाले के लिए अपने दिल में प्यार जताना होगा और फिर उस प्यार का यकीन दिलाना होगा एक बार हम अपने लिए सामने वाले के दिल में मोहब्बत को जगा दें तो फिर वो हमारी मज़हबों के बारे में शायद सोचेगा भी नहीं नफ़रत को कभी भी नफ़रत से ख़त्म नहीं किया जा सकता नफ़रत को ख़त्म करने के लिए हमेशा हमें प्यार की ज़रूरत पड़ेगी ऐसे ही जैसे हमें जलते हुए आग को बुझाने के लिए पानी की ज़रूरत पड़ती है

 

~गुलशेर अहमद

 

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