'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> “किताब की बातें” : शोर - अंतर्मन का कोलाहल।
 
आज “किताब की बातें” कॉलम में हम बात करेंगे लेखक और उपन्यासकार “निशांत जैन” जी के उपन्यास “शोर - अंतर्मन का कोलाहल” की। कौन सही है, गलत कौन? कौन आज़ाद है, कौन क़ैद? अजीब सवालों के ऐसे बवंडर में जिन्दगी उलझ जाती है कि हर कदम पर चौराहा आ जाता है। जब आस पास देखते हैं तो लोग अपने लगते हैं लेकिन जब उनका हाथ पकड़ने की कोशिश करो तो ऐसा लगता है कि हाथ किसी ख़्वाब से होकर गुज़रा हो, एक दम खाली। 

अब तक इस पुस्तक को पाठको ने खूब सराहा है। इससे पहले "निशांत जैन" जी की एक पुस्तक "दूमछल्ला" प्रकाशित हो चुकी है। प्रस्तुत कृति लेखक की दूसरी पुस्तक है और आज हम इसी के बारे में बात कर रहें हैं। ये किताब “सन्मति पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स” से प्रकाशित हुई है।


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·Publisher‏: ‎ सन्मति पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स
·Language‏: ‎ Hindi
·Paperback‏: ‎ 204 pages
·ISBN‏: ‎ 9789390539598


पुस्तक परिचय:



     शोर...अंतर्मन का कोलाहल या कहें की शून्यता, बाहर की अव्यवस्थित व्यवस्था से अलग, चिंतित मन का व्यथित लेकिन व्यवस्थित सुर है जो किसी भी इंसान को जीने की वजह भी देता है और जीने का उद्देश्य भी लेकिन आख़िर यह शोर पनपता ही क्यों है?

      यह कहानी कुछ ऐसे ही परिवारों की है जो साथ तो हैं लेकिन अपने बच्चों को समझने में नाकाम हो रहे हैं और कुछ बच्चे अपने माँ-बाप की परवरिश पर ही सवाल उठा रहे हैं। जिनको अपना समझकर जिम्मेदारी सौपीं वही विश्वासघात कर रहे हैं और कुछ कामयाबी के लिये कुछ भी कर गुजरने के लिये तैयार हैं।

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लेखक परिचय:



   आधे चार्टर्ड अकाउंटेंट और कभी पूरे स्टॉक ब्रोकर रहे निशान्त, आप सब की ही तरह, परिवार और रिश्तों तो अहमियत देते हैं लेकिन व्यक्तिगत आज़ादी भी इनके लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है। इनसे बात करना आपको सुकून देता है लेकिन इनके विचार आपको भीतर तक परेशान कर सकते हैं, झकझोर सकते हैं। इन्हें शुरु से ही पढ़ने का काफी शौक है और कुछ-कुछ लिखते भी रहते हैं । इनकी लिखी कहानी “बायोलॉजिकल मदर” उनकी चर्चित कहानिओं में शुमार है। 

2017 में एक बीमारी के बाद इन्होनें अपने पारिवारिक प्रकाशन में दिलचस्पी लेनी शुरु की और कम समय में ही उसे एक मुकाम पर स्थापित करने की दिशा में तेज़ी से अग्रसर हैं। जब भी इन्हें फुर्सत मिलती है तो शोर-शराबे से दूर, प्रकृति की एकांत गोद में खुद को महफूज़ रख लेते हैं।


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पुस्तक शोर के पाठक पुस्तक के बारे में क्या कहते हैं?

अमेज़न डॉट कॉम पर इस पुस्तक "शोर" की कहानी के बारे में "पराग डिमरी" नाम के एक व्यक्ति ने "शोर, जो आपसे जुदा नहीं होने वाला" कहा है और साथ ही एक छोटी समीक्षा लिखी। यहां पढ़ें।

शोर आठ दिनों में सिमटी कहानी है, जिसमें बीच बीच में कुछ यादों की फाईल भी खुलती रहती है ।
आजकल के माहोल के किरदारों से भरी कहानी है, जो कि दो राहे पर खड़े हुए हैं।
जहां माडर्न वाली सफलता के आभूषणों से वे सभी लदे तो हैं, लेकिन फिर भी दुश्वारियों से हलकान भी हैं।
कुछ हद तक साईको जैसे हैं, लेकिन रोगियों के रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज नहीं है। छिपे हुए मरीज भी तो होते हैं।

शोर में काफी सारे रंग घुले हुए हैं, मर्डर मिस्ट्री जैसी भी, एक पिता बेटी के अखंड स्नेह की कथा भी है।

किरदारों की भरमार है, सबको ही फुटेज देने में लेखक सफल रहा। सोशल मीडिया की समाज के सोचने पर दखलंदाजी का वर्णन भी निखार पर है। स्टार्टअप की सफलता से तुरंत धनी बन बैठा एक पात्र भी है।

निशांत जी की लेखकीय यात्रा बढ़िया राह पर है, बहुत संभावनाएं हैं कि सन्मति को किसी प्रोफेशनल सीईओ के हवाले करके, वो खुद को पूर्णकालिक लेखक की भट्टी में ही झोंक देंगे।
नये लिखने वालों को इनसे दोस्तीगांठ करके इनके अंतरमन के शोर को, सुनने के लिए जरूर जुड़ जाना चाहिए, नया कुछ लिखने की ख्वाहिश रखने वालों को इससे काफी लाभ अवश्य पहुंचेगा।

अमेज़न डॉट कॉम पर ही एक अन्य पाठक "आशीष दलाल" ने इस पुस्तक "शोर" को "उम्दा किताब... सभी के लिए पठनीय" लिखा और एक छोटी सी समीक्षा भी साझा की। आप यहां पढ़ें:

अपने नाम को सार्थक करती बहुत ही उम्दा किताब। यह उपन्यास पढ़कर आपकी विचार जरूर मौन हो जाएगी लेकिन आपके अंतर्मन का कोलाहल शोर करना शुरू कर देगा। यही इस उपन्यास की सार्थकता है।

बच्चों की परवरिश, मां बाप का फ़र्ज़, नैतिकता, अनैतिकता, जुर्म और बदला कुछ इन्हीं सवालों के उत्तर तलाशता यह उपन्यास कई पात्रों को एक साथ लेकर चलते हुए कहीं भी किसी भी तरह से कमजोर महसूस नहीं हुआ।

 

हर जुर्म के पीछे एक राज होता है। वो राज कितना सही और करुण होता है ये जानने के लिए शोर पढ़ना ज़रूरी है।
साथ ही कम मूल्य में इतनी सार्थक और पठनीय पुस्तक का इस वक्त मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं है।



 

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