आज "किताब की बातें" कॉलम में हम बात करेंगे रोहन कुमार द्वारा लिखित उपन्यास "मलकागंज वाला देवदास"
लेखक रोहन कुमार |
ये कहानी है केशव की जो इस उपन्यास का मुख्य पात्र है, उसे हमेशा से एक ऐसे शहर की तलाश थी जहाँ उसे कोई नहीं जानता हो। जब एक ही शहर के बहुत सारे लोग हमें जानने लग जाते हैं तो वहाँ जीवन जीना कठिन लगता है।
केशव दिल्ली में तो अपने पिता से दूर होने को आया था लेकिन यहाँ आते ही वह एक ऐसे शख़्स के करीब हो गया जिसने उसे प्रेम का अर्थ समझाया....साथ और सहयोग का अर्थ समझाया। प्रेम तो अक्षुण्ण है। वह कभी भी नहीं भेदा जा सकता है। सदैव विद्यमान रहता है समूचा, दो लोगों के बिछड़ जाने के बावजूद भी।
यह उपन्यास इसी प्रेम के नाम है। प्रेम के ढर्रे पर चलते हुए इंसान के भीतर पैदा होने वाले बदलाव के नाम है। एक नौयुवाक के घर से दूर चले जाने के नाम है। ज़िन्दगी में प्रेम से बदलाव के बाद कहानी है " मलकागंज का देवदास"! किताब राजमंगल प्रकाशन से प्रकाशित हो रही है।
आप किताब यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। BUY BOOK HERE
लेखक परिचय:
रोहन कुमार |
बिहार के पुपरी में पैदा हुए 'रोहन कुमार' पिछले छह सालों से रंगमंच से जुड़े हुए हैं। कॉलेज के दिनों से ही इनकी रुचि अभिनय के साथ–साथ कविता, कहानीयाँ और नाटक लिखने में रही है।
साल 2018 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद “परिंदे थिएटर ग्रुप” से छात्र के तौर पर जुड़ें थे और अब वहीं नए बच्चों को अभिनय सिखाते हैं। “मलकागंज वाला देवदास” इनका पहला उपन्यास है। अभी तक तीन नाटक लिख चुके हैं जिसका मंचन इन्होंने अपने ही निर्देशन में किया भी है।
इनकी किताब से कुछ अंश आप यहाँ पढ़ सकते है।
“मेरा लेखक होना मुझे दुख देता है।”
“कितना दुख?”
“उतना जितना तुमसे दूर जाने पर भी नहीं हुआ था।”
मैंने झूठ कहा और वह समझ गई। हम बहुत समय के बाद मिल रहे थे। वह आज भी उतनी ही सहजता से मेरी आँखों में देख लेती है जैसे पहले देखा करती थी। मैं नहीं देख पाता हूँ।
“यार बहुत अकेला हो गया हूँ। एक बंदा नहीं है मेरे पास दुख बाँटने के लिये।”
“सबका यही हाल है। इतना मत सोचो।”
“क्या हम फिर से साथ नहीं हो सकते हैं?”
“बार-बार वही सवाल! तुम्हें मेरा जवाब मालूम है।”
“यार ऐसे मत बोलो। एक बार मेरी जगह रहकर सोचो।”
“ठीक है...सोचूँगी।”
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BOOK COVER |
एक किताब, एक गुलाब और एक ख़्वाब
उस बक्से में बंद है जो तुमने
मुझे मेरे जन्मदिन पर तोहफे में दिया था।
किताब के पन्ने अब कुछ मुड़ चुके हैं
गुलाब थोड़ा मुरझा गया है
ख़्वाब अभी भी ज़िंदा है
ठीक वैसा का वैसा।
यह किताब वही है जिसमें कभी इश्क़ लिखा गया था
और गुलाब!
गुलाब उस मुकम्मल इश्क़ की पहचान थी
और जहाँ इश्क़ होता है
वहाँ ख़्वाब होना लाज़मी था।
एक मुद्दत पहले मैंने उस किताब के
कुछ पन्ने पढ़कर तुम्हें सुनाए थे
और तुमने अपने जुड़े में लगा गुलाब निकालकर
पन्नों के बीच रख दिया था
तब इन दो आँखों ने उस गुलाब की ख़ुशबू में
एक ख़्वाब देखा था।
ख़्वाब, जिसमें एक शहर बसता था,
जहाँ पिघलते आसमान के तले बैठे दो लोग
जो सिर्फ इश्क़ की बातें करते थे।
जहाँ हर पथरीली इमारतों पर
कुछ नाम गोदे होते थे
लैला-मजनू, हीर-रांझा, रोमियो-जूलियट
जैसे कुछ नाम।
जहाँ दो जिस्मों के मिलने पर
तरुणाई की फैली ख़ुशबू
पूरे शहर को जवां करती थी।
मगर यह सब एक मुद्दत पहले की बातें हैं
अब तो इश्क़ का शहर वीराना है
बाशिंदे सारे छूट गए हैं
एक चिराग अभी भी जलता है
ख़्वाब को ज़िंदा रखने के खातिर
बाती दर बाती बुझता है।
सुनो, वो किताब, वो गुलाब और वो ख़्वाब
अभी भी बंद है उस बक्से में
कभी फुर्सत में रहो तो आना ज़रूर
खोलना उस बक्से को
मैं वहीं मिलूँगा
ख़्वाब के उसी शहर में।
नोट: इस लेख में संलग्न सभी तस्वीरें और कविताएँ लेखक 'रोहन कुमार' की जानकारी में प्रकाशित की गयी हैं।
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