'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> कोरोना, वैक्सीन और फिर लॉकडॉउन


कोरोना का दूसरा लहर शुरू होने पर घर को लौटने के लिए बेताब लोग।


       बहुत अजीब है कि दिल्ली में फिर से लॉकडॉउन का निर्देश मिला। पिछले साल मार्च में कोरोना का बहुत अधिक प्रकोप बढ़ जाने के बाद सरकार ने लॉकडॉउन का फैसला लिया और हज़ारों गरीब लोग की ज़िन्दगी खराब हुई। ना जाने कितनी मौतें सड़कों पर, ट्रेनों और बसों में। हुई और ये साफ दिखा कि सरकार देश संभालने में फेल हो गई।

लोग कहने वाले कहेंगे कि इस महामारी के लिए कोई भी तैयार नहीं था लेकिन जिस तरह से आम लोगों में से कुछ लोग सामने कर गरीबों की, बेसहारों की मदद कर गए, वो एक तमाचा था सरकार के सहयोग कार्यों के मुंह पर।


दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों से कितने ही लोग बिहार, झारखण्ड, तमिलनाडु और भी बहुत से राज्यों के मजदूर पलायन करके काम करने वाले व्यक्ति पैदल चलने पर मजबूर हो गए। आख़िर क्यों ऐसा हुआ? और जब "सोनू सूद" और इनके जैसे कुछ ऐसे लोग जो सत्ता में नहीं थे, ने अपनी मदद की तो हज़ारों लोगों को मदद पहुँची। तो फिर ऐसा क्या था जो सत्ता में बैठे लोग कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। उनकी रणनीति क्यों फेल हो जा रही थी?

हमने तो यहाँ तक देखा कि जो सत्ता में नहीं थें और लोगों की मदद कर रहे थें इसमें भी राजनीति पहुँच रही थी और रोक लगा रही थी। जैसे "सोनू सूद" के द्वारा भेजी गई बसों को उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर रोक कर वापस भेज दिया गया।


कोरोना के कारण से लॉकडॉउन लगा और इसके कारण से हज़ारों लोगों की नौकरियाँ चली गई। सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई। घर के तरफ चलते हुए कुछ लोग अपने बच्चों की लाशों को घर ले कर पहुँचे। क्या इसके बाद भी सरकार की आँख नहीं खुली?

मैंने लॉकडॉउन पर बनती एक वेब सीरीज के बारे में पढ़ा और उसमे का एक डायलॉग दिखा और सुनने में आया। वो डायलॉग नहीं बल्कि सच है।

दो भाई दिल्ली से बिहार अपने घर को पैदल चले हैं, रास्ते में अलग हो जातें है। उनके साथ के कुछ लोग पूछते हैं कि ऐसा क्यों कर रहे हो?

एक भाई कहता है, "कोई एक भी बच गया तो चिता को आग देने वाला तो कोई रहेगा। ये बात दिल को चीर देती है।

 

एक बुज़ुर्ग ऑक्सीजन के सहारे पर।

कोरोना और लॉकडॉउन का दूसरा चरण...

 

हाँ मैं इसे दूसरा चरण ही कहूँगा। जैसे चुनावों में कई चरण होते हैं बिल्कुल वैसे ही कोरोना भी दूसरे चरण में आया है। और अगर ये कहूँ कि कोरोना को फिर से बुलाया गया है तो गलत नहीं होगा। चुनाव का समय आया तो पता चला कि कोरोना तो है ही नहीं। देश के दिग्गज नेताओं ने अपनी पार्टी प्रचार की रैलियाँ ऐसे निकली जैसे कोरोना ख़त्म हो चुका है।

कोरोना को भी जाती, धर्म और आस्था के नाम पर बाँटा गया और बाँटने वालों में सबसे आगे की जिम्मदारियाँ यहाँ के रहनुमाओं ने निभाई है। ये नेताओं ने बाँटा है और ये भोली मूर्ख जानता भूल गई कि कोई भी महामारी किसी के मज़हब को देख कर नहीं पकड़ती।

कोई बीमारी किसी को इस लिए नहीं लगती की वो नेता जी की रैली में गए थे, बीमारी तो बीमारी है और हमें बच कर रहने की ज़रूरत है।

 

वैक्सीन और ऑक्सीजन की कमी क्यों हो रही?

 

ऊपर वाले का करम हुआ और कोरोना जैसी महामारी में कुछ कमी आई और दूसरे देशों को देख कर कुछ उम्मीदें जगीं तो लॉकडॉउन खुला और धीरे धीरे सब कुछ नॉर्मल होने लगा। लेकिन लोग तो महापुरूष हैं, कहां मानने वाले थे। मौका मिला नहीं कि निकालने लगे, घूमने लगे। जब पता चला कि वैक्सीन भी गई है तो लोगों के दिलों से इस बीमारी का डर ही ख़तम हो गया।

 

वैक्सीन आया भी लेकिन कितनों को मिला? कोई हिसाब किताब नहीं, कई जगह देखने को मिला की वहाँ के सेंटर्स पर ये लगाया गया है कि वैक्सीन खत्म हो गया है, आने का इंतज़ार करें।

इसी बीच बीमारी ने फिर से अपना पैर पसारना शुरू किया, इस बार पहले की तुलना में बहुत तेज़ी से फैला और लोगों की जाने भी जाने लगी। ख़बरों की माने तो शमशान घाटों में जगह और लड़की दोनों की कमी गई। यहाँ तक कि लाशों के अंतिम संस्कार करने के लिए लोगों को टोकन लेना पड़ा और वैसे ही ऑक्सीजन के लिए भी लोगों को लाइन में लगनी पड़ी।



सरकार ने कितनी मदद की? मैंने तो जहाँ तक देखा सरकार अपनी आने वाली चुनाव प्रचारों और विपक्ष नेताओं की खिल्लियाँ उड़ाने में व्यस्त है। मैंने देखा कि वैक्सीन बन जाने के बाद भी लोगों तक नहीं पहुँच पा रहा है। लोग अपनो को अपनी बाहों में लेकर दौड़ रहे हैं। गुहार लगा रहें हैं कि कहीं कोई हॉस्पिटल में बेड मिल जाए, कहीं से ऑक्सीजन का जुगाड हो जाए।

मैं पूछता हुँ कि जब पिछले साल से ये महामारी थी और पिछले साल की सारी कमियाँ हमने देख ली थी तो इस सरकार ने पूरे एक साल में क्या तैयारी की? एक साल में क्या किया कि इस बीमारी से बचा जा सके? क्या ये देश के रहनुमाओं की ज़िम्मेदारी नहीं थी कि ऐसी परिस्थिति के लिए हैं तैयार रहें?

आज तक जो भी चुनाव हुए उसके मुद्दे मन्दिर और मस्जिद के थे। सरकार बनाने के लिए चुनावी सभाओं में चीख गया, चिल्लाया गया कि मंदिर बनेगा और भव्यता के साथ भूमि पूजन किया गया। मन्दिर-मस्जिद के नाम पर और कानून प्रावधानों में बदलाव के नाम पर दंगे हुए, जाने गई लेकिन महामरी के रोकथाम में सरकार पूरी विफल रही। मैं मन्दिर-मस्ज़िद के निर्माण के खिलाफ नहीं हूँ लेकिन हर कोई मज़हब से पहले इंसानियत को देखना पसंद करता है और दूसरी बात जब हम ज़िन्दा रहेंगे तभी भगवान की प्रार्थना, पूजा या इबादत कर पाएंगे।

मैं किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं हूँ लेकिन अगर हम सभी मंदिर और मस्जिद की जगह देश की तरक्की, रोजगार और हॉस्पिटल्स के लिए आवाज़ उठाते। वोट माँगने आए नेताओं से इन सब ज़रूरी मुद्दों पर बात करते तो शायद आज ये भयावह परिस्थिति नहीं आयी होती। आज लॉकडॉउन लगा है और सारी पूजा स्थलों को बंद कर दिया गया है। चाहे वो मंदिर हो या मस्ज़िद। सब बंद है। ज़रूरी मुद्दे पर बात नहीं करके हमने ही इसे बिगड़ा है।

 

 

मौत में भी लूट, बीमारी के सौदे।

 

चाहे मेरठ हो चाहे लखनऊ चाहे वाराणसी, सरकार है भी उत्तर प्रदेश में ये पता नहीं। है तो क्या कर रही है। लल्लनटॉप न्यूज चैनल की माने तो उन्हों ने इंडिया टुडे के जुड़े संवाददाताओं से बातचीत के बाद एक वीडियो जारी किया। उसमे बताया गया कि कैसे पुजारी और घाट प्रबंधन अपनी मनमानी करते हुए शवो के अंतिम संस्कार के लिए 20 से 30 हजार तक की राशी ले रहे हैं फिर भी संतोषजनक सुविधाएँ नहीं मिल पा रही।

ऐसे लालची और मरे हुए चेतना के लोगों की क्या बात कि जाए। कुछ वेरिफाईड ट्विटर अकाउंट्स और फ़ेसबुक अकाउंट्स की बात माने तो ख़बर ये भी है कि ऑक्सीजन, और रेमडिसिवर इंजेक्शन को समय का गलत फ़ायदा उठा कर मूल्य से अधिक पैसों में बेचा जा रहा है।

"जय विजय सचान" की एक फेसबुक वॉल देखी, जिसके मुताबिक लखनऊ में ऑक्सीजन सिलेंडर 80 हज़ार का बेचा गया। इन्हीं की एक दूसरी पोस्ट की माने तो रेमडिसिवर इंजेक्शन कुछ लोगों ने 20-50 हज़ार तक में बेचा गया है। अब गरीब बीमारी से पहले ग़रीबी से मार जाएगा। वैसे पहले इसका मूल्य सिर्फ 899/- बताया जा रहा था।


जयविजय सचान की वाॅल से।

 

 

अब इस महामारी से बचने के क्या उपाय हैं?

 

उपाय तो बस यही है कि जितनी जानकारियाँ उपलब्ध हो रही है उसको जाँच कर अमल में लाया जाए। लोगों को जागरूक किया जाए। बात को आगे बढ़ाया जाए। अभी तक तो सबसे ज़रूरी ये है कि जितना हो सके घर में रहे। अतिआवश्यक काम हो तभी घर से बाहर निकले। न्यूज़ कम देखें। नहीं देखेंगे तो और भी अधिक फायदा होगा और थोड़ा पैनिक होने से बचें रहेंगे।

कभी भी घर से बाहर निकले तो एक सामाजिक दूरी बनाएँ रखें और मास्क लगाएँ।

 

किसी ने बहुत अच्छा कहा कि..

"मास्क कफ़न से छोटा भी है और सस्ता भी।"

 

सैनिटाइजर का हर उस समय उपयोग करें जब आप कहीं घर से बाहर से आएँ हों या फिर आपने कोई बाहर की वस्तु को हाथ लगाया हो। यदि संभव हो तो अपने घर को भी सैनिटाइजर समय समय पर करते रहें। घर पर रहें, मास्क लगाएँ, सुरक्षित रहें।



नोट: इस ब्लॉग में सभी संलग्न चित्र ट्विटर अकाउंट से लिए गए हैं।

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