'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> पुस्तक समीक्षा : इब्नेबतूती


किताब :- "इब्नेबतूती"

लेखक:- दिव्य प्रकाश दुबे

प्रकाशक:

हिन्द युग्म

सी-31, सेक्टर-20, नोएडा (प्र• ) - 201301

पहला संस्करण: जुलाई 2020

ISBN: 978-93-87464-95-7



किताब शुरू होती है और वहाँ पहले पन्ने पर ही दिव्य प्रकाश जी इस किताब के बारे में लिखते हैं..

माँ, जो कभी एक बीस बरस की लड़की थीउस लड़की के नाम।


किताब के नाम के साथ आपके कई सवाल होंगे, कौन है इब्नेबतूती? इसका मतलब क्या होता है? आख़िर इस किताब का शीर्षक ये क्यों दिया होगा लेखक ने। और भी बहुत सवाल लेकिन आप जैसे ही किताब का दूसरा पन्ना पलटते हैं कि दिव्य प्रकाश दुबे जी ने इस उपन्यास और इसके नाम का खुलासा कर दिया है। नीचे पढ़िए...


 इब्नेबतूती- इस शब्द का कोई मतलब नहीं होता। इसलिए आप इसको अपनी मर्ज़ी और ज़रूरत के हिसाब से कोई भी मतलब दे सकते हैं। 

कुछ सुंदर शब्द कभी शब्दकोश में जगह नहीं बना पाते।कुछ सुंदर लोग किसी कहानी का हिस्सा नहीं हो पाते। कुछ बातें किसी जगह दर्ज नहीं हो पातीं। कुछ रास्ते मंजिल नहीं हो पाते। उन सभी अधूरी चीज़ों, चिट्ठियों, बातों, मुलाक़ातों, भावनाओं, विचारों, लोगों के नाम एक नया शब्द गढ़ना पड़ा।

 

दिव्य प्रकाश दुबे

दिव्य प्रकाश दुबे जी अपनी पुस्तक इब्नेबतूती के साथ


दुबे जी ने चार बेस्ट सेलर किताबें- 'शर्ते लागू', 'मसाला चाय', 'मुसाफ़िर Cafe' और 'अक्टूबर जंक्शन' - लिखी हैं। 'स्टोरीबाज़ी' नाम से कहानियाँ सुनाते हैं। AudibleSUNO एप्प पर उनकी सीरीज़ 'पिया मिलन चौक' सर्वाधिक सुनी जाने वाली सीरीज में से एक है। आठ साल कॉरपोरेट दुनिया में मार्केटिंग तथा एक लीडिंग चैनल में कंटेंट एडिटर के रूप में कुछ साल काम करने के बाद अब वह एक फुलटाइम लेखक हैं। मुंबई में रहते हैं। कई नए लेखकों के साथ 'रायटर्स रूम' के अंतर्गत फ़िल्म वेब सीरीज, ऑडियो शो विकसित करते हैं।


BUY THE BOOK ON AMAZON

 

किताब जैसे ही शुरू होती है तो किताब के साथ एक चिट्ठी का सिलसिला भी शुरू होता है। पढ़ते हुए कई चिठ्ठीयाँ खुलती हैं और बाद ने इसका राज़ भी। लखनऊ शहर में राघव 20 साल का लड़का है, अपनी माँ शालू अवस्थी के साथ रहता है। उसका कॉलेज ख़त्म हो गया है और अब राघव डाटा साइंटिस्ट बनना चाहता है। इसके लिए वो अमेरिका जाना चाहता है। पढ़ाई के लिए जाने की तैयारी में है उसकी एक गर्लफ्रेंड भी है जो उसके घर आती जाती रहती है। इसी बीच चिठ्ठीयों का राज़ खुलता है और शालू अवस्थी के कॉलेज की कहानी भी।

 

कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनको सहेजने वाले इस दुनियाँ में बस दो लोग होते हैं। वो शब्द जो उस रिश्ते के साथ मर जाते हैं तो कई बार वही शब्द इस दुनियाँ को बचा लेते हैं।

प्रेम में डूबे हुए लोग ही नए शब्द बनाने की कोशिश करते हैं। नई जगह जाने की कोशिश करते हैं। वे सैकड़ों साल पुरानी इस दुनियाँ को एक नई नज़र से समझना चाहते हैं। इस दुनियाँ को नए शब्द शब्दकोश ने नहीं, बल्कि प्रेम में डूबे हुए लोगों ने दिए हैं। हमारा जो हिस्सा प्रेम में होता है, वो कभी पुराना नहीं होता। इस दुनियाँ को एक नई नज़र से देख पाना ही प्यार है। मुझे कभी-कभी ऐसा शक होता है कि जैसे कोई मुझे इब्नेबतूती नाम से पुकार रहा है। तुम कहीं आस-पास लगते हो।    ~किताब से

 

                                    


आपको ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए?
 

ये किताब असल में शालू अवस्थी के बारे में है। वो शालू अवस्थी जो माँ है लेकिन वो भी कभी 20 बरस की लड़की थी। ये उन सभी लड़कियों की कहानी है जो कभी ना कभी स्कूल या कॉलेज में पढ़ती हैं लेकिन फिर शादी के बाद अपने घर और ऑफिस में दबकर रह जाती हैं। ये उन तमाम माँओं की कहानी है जो कभी अपने कॉलेज के समय में हज़ार सपने देखती थीं।

हम जब बच्चे होते हैं तो बस यही समझते हैं कि अम्मा तुम क्या जानो हमारे कॉलेज की बातें, तुम्हारा ज़माना अलग था हमारा अलग है। लेकिन दरअसल हक़ीक़त कुछ ऐसी है कि हर कॉलेज में कहानी कहीं ना कहीं एक जैसी ही होती है। हर छात्र या छात्रा अपनी स्कूल कॉलेज के दिनों में ऐसे ही जोश से भरे होते हैं जैसे कि अभी के छात्र हैं।

ये कहानी उन माँओ के लिए भी है जो कभी कॉलेज नहीं गई या स्कूल नहीं गई। ये सिर्फ कॉलेज और स्कूल की बात नहीं करती बल्कि ये बात करती है उस लड़कपन की, उन शरारतों वाले दिनों की, उस ज़िद्दीपन के समय की और टूटते बनते हुए समय की। उस उधेड़पन के दिनों की जब हम अपने भविष्य को संवारने में लगे होते हैं और फिर हमारे बच्चों के बाद वो सब झिलमिल सा और धुंधला दिखाई देने लगता है। "इब्नेबतूती" हर उस माँओ को पढ़ना चाहिए जो अपनी स्कूल और कॉलेज के दिनों को भूल कर अब अपने घर ऑफिस में ख़ुद को गुम कर लिया है। ये किताब पढ़ते हुए आप भी अपने कॉलेज से घूम आएंगे।



इस किताब से कुछ पंक्तियाँ जो बेहद ख़ूबसूरत और दिल के क़रीब जा बसी।

 

1. कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनको सहेजने वाले इस दुनिया में बस दो लोग होते हैं। वो शब्द जो उस रिश्ते के साथ मर जाते हैं तो कई बार वही शब्द इस दुनिया को बचा लेते हैं।


2. हमारा जो हिस्सा प्रेम में होता है, वो कभी पुराना नहीं होता। इस दुनिया को एक नई नज़र से देख पाना ही प्यार है।


3. किसी औरत ने कहा था कि माँ बनने के साथ ही याद जाती हैं तमाम भूली हुई कहानियाँ। हर माँ के पास अनगिनत कहानियाँ होती हैं जितनी वह सुनाती जाती है, उतनी ही कहानियाँ बची रह जाती हैं।


4. शब्दकोश से 'दु:' शब्द को हटा देना चाहिए, बाक़ी सभी शब्द भी वहीं लेकर जाते हैं। यहाँ तक कि सुख जैसा मामूली खोया हुआ शब्द भी।


5. आपने कभी गौर किया है- भिखारी किसी को ख़ाली हाथ वापस नहीं करता, वह ख़ुश रहने की दुआ लौटा देता है। हमारी हर ख़ुशी में उनका एक हिस्सा है।

 

1990 . से 2015 . तक की कहानी को दिव्य प्रकाश जी ने जैसे इस किताब में पिरोया है कि पढ़ते-पढ़ते आप भी इसमें डूबते जायेंगे और आपको अपनी कॉलेज के दिनों की याद आने लगेगी, पूरी उम्मीद है कि आप को भी ये किताब इतनी ही प्यारी लगेगी जितनी कि मुझे लगी और शायद आख़िर-आख़िर तक आप इस किताब को अपनी माँ तक ले जाएँ। तो आप भी ज़रूर पढ़िए इस किताब को - "इब्नेबतूती"

 

 

 

नोट: इस ब्लॉग में संलग्न सभी तस्वीरें दिव्य प्रकाश दुबे जी की फेसबुक पेज से ली गई हैं।

4 Comments

  1. कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनको सहेजने वाले इस दुनिया में बस दो लोग होते हैं। वो शब्द जो उस रिश्ते के साथ मर जाते हैं तो कई बार वही शब्द इस दुनिया को बचा लेते हैं। शानदार समीक्षा की अहमद जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  2. बहुत आभार, धन्यवाद अभिमन्यु भाई। शुक्रिया इतना सुकून से मेरी समीक्षा पढ़ने के लिए।🙏🙏

    ReplyDelete
  3. Waah bhai, aap gajab ka likhte ho.. bahut khub samiksha likhe ho

    ReplyDelete

Post a Comment

Previous Post Next Post