कृष्ण कल्पित |
कृष्ण कल्पित हिंदी के प्रसिद्ध कवि-लेखक हैं। इन दिनों वह अपनी रचना ‘हिन्दनामा’ को लेकर चर्चा और विमर्श के केंद्र में हैं।
कवि-गद्यकार कृष्ण कल्पित का जन्म 30 अक्तूबर, 1957 को रेगिस्तान के एक कस्बे फतेहपुर-शेखावाटी में हुआ। राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से हिन्दी साहित्य में प्रथम स्थान से एम.ए.। फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान, पुणे से फ़िल्म-निर्माण पर अध्ययन। अध्यापन और पत्रकारिता के बाद भारतीय प्रसारण सेवा में प्रवेश।
2017 में दूरदर्शन महानिदेशालय से अपर महानिदेशक (नीति) पद से सेवामुक्त। प्रकाशित पुस्तकें: ‘भीड़ से गुज़रते हुए’ (1980), ‘बढ़ई का बेटा’ (1990), ‘कोई अछूता सबद’ (2003), ‘एक शराबी की सूक्तियाँ’ (2006) और ‘बाग-ए-बेदिल’ (2013) (कविता-संग्रह); हिन्दी का प्रथम काव्यशास्त्र ‘कविता-रहस्य’ (2015)। सिनेमा, मीडिया पर ‘छोटा पर्दा बड़ा पर्दा’ (2003)। मीरा नायर की बहुचर्चित फ़िल्म ‘कामसूत्र’ में भारत सरकार की ओर से सम्पर्क अधिकारी। ऋत्विक घटक के जीवन पर एक वृत्तचित्र ‘एक पेड़ की कहानी’ का निर्माण (1997)।
साम्प्रदायिकता के विरुद्ध ‘भारत-भारती कविता-यात्रा’ के अखिल भारतीय संयोजक (1992)। समानान्तर साहित्य उत्सव (2018) के संस्थापक-संयोजक। अनुवाद: कविता, कहानियों के अँग्रेज़ी समेत कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद। सम्मान: ‘निरंजननाथ आचार्य सम्मान’ सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित ।
कृष्ण कल्पित द्वारा लिखित किताब |
राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हिन्दनामा एक महादेश की गाथा उसी तरह है जिस तरह प्रेमचन्द का गोदान भारतीय किसान जीवन की गाथा है। हिन्दनामा इतिहास है न काल्पनिक उपन्यास। यह एक धूल-भरा दर्पण है जिसमें हमारे देश की बहुत सी धूमिल और चमकदार छवियाँ दिखाई देती हैं। हिन्दनामा दरअसल हिन्दुस्तान के बारे में एक दीर्घ कविता है जिसमें कोई कालक्रम नहीं है।
सब कुछ स्मृतियों की तरह गड्डमड्ड है, जहाँ प्राचीन और अर्वाचीन इस तरह मिलते हैं जैसे किसी नदी के घाट पर शेर और बकरी एक साथ अपनी प्यास बुझा रहे हों। इसकी कोई बिबलियोग्राफी नहीं है—यह कबीर के करघे पर बुनी हुई एक रंगीन चादर है, जो शताब्दियों से शताब्दियों तक तनी हुई है। उग्र राष्ट्रवाद के इस वैश्विक दौर में अपने राष्ट्र को जानने की कोशिश निश्चय ही जोखिम का काम है, और यह कहने की शायद कोई ज़रूरत नहीं कि हिन्दनामा हिन्दूनामा नहीं है। हिन्दुस्तान का इन्द्रधनुष जो सात रंगों से मिलकर बना है, उसकी ऐसी गाथा है जो कभी और कहीं भी खत्म नहीं होती—चलती ही जाती है।
हिंदी काव्य-जगत के लिए बरसों बाद हासिल एक उपलब्धि है हिन्दनामा।
quote - भारत एक खोया हुआ देश है सबको अपना-अपना भारत खोजना पड़ता है मैं भी इस भू-भाग पर भटकता हुआ अपना भारत खोज रहा हूँ ! हिन्दनामा को दस्ताने हिन्द कह सकते हैं या इसे कुल्लियाते हिन्द भी कहा जा सकता है । हिन्दनामा फ़ारसी के महाकवि फ़िरदौसी के अमर महाकाव्य शाहनामा से प्रेरित है ।
कृष्ण कल्पित |
कृष्ण कल्पित हिंदी के प्रसिद्ध कवि-लेखक हैं। डूब मरो, डूब मरो कवियो उनकी एक बहुत आलोचक कविता यहाँ नीचे पढ़ें।
डूब मरो
मैं तुम्हारे तलुओं पर
जैतून के तेल की मालिश करना चाहता हूँजिन हाथों से थामा था तुमने साइकिल का हैंडल
मैं उन हाथों को चूमना चाहता हूँगुरुग्राम से दरभंगा तक
अपने घायल पिता को कैरियर पर बिठाकर
ले जाने वाली स्वर्णपरी
मैं तुम्हारी जय-जयकार करना चाहता हूँ
तुम्हारी करुणा तुम्हारा प्यार तुम्हारा साहस देखकर हैरान हूँ
आश्चर्य से खुली हुई हैं मेरी आँखेंमैं उन तमाम तैंतीस कोटि देवी-देवताओं को
बर्ख़ास्त करना चाहता हूँ
जिन्होंने नहीं की तुम पर पुष्प-वर्षा
मोटर-गाड़ियों रेल-गाड़ियों और हवाई-जहाज़ों का आविष्कार
क्या आततायियों अपराधियों और धनपशुओं के लिए किया गया था
इस महामारी में तुमने अपने चपल-पाँवों से
बारह सौ किलोमीटर तक भारतीय सड़कों पर सात-दिनों तक जो महाकाव्य लिखा है
वह पर्याप्त है इस देश के महाकवियों को शर्मिंदा करने के लिए
डूब मरो शासको
डूब मरो कवियो
डूब मरो महाजनोो
ओ, साइकिल चलाने वाली मेरी बेटी
मैं तुम्हें अंतस्तल से प्यार करना चाहता हूँ!
कृष्ण कल्पित हिंदी के समर्थ कवि-लेखक हैं. जयपुर में रहते हैं. उनसे krishnakalpit@gmail.com पर बात की जा सकती है।
नोट : इस तहरीर में सभी तस्वीरें और जानकारियाँ sadaneera.com और अमेजन से ली गई हैं।
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