'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> पुस्तक समीक्षा : ऐसी वैसी औरत
डिजाइन : गुलशेर अहमद



किताब :- "ऐसी वैसी औरत"

लेखक:- अंकिता जैन
प्रकाशक: हिन्द युग्म
सी - 31, सेक्टर - 20, नोएडा ( उ० प्र०) - 201301
मूल्य: ₹120

ISBN: 978-9384419-63-9

अंकिता जैन


हमारा समाज बहुत समृद्ध रहा है। सामाजिक लोगों के विचार हमेशा ऊचे रहें हैं और हमेशा ये कोशिश की गई है कि इस समाज में सभी को बराबरी का दर्जा मिले। ख़ास तौर से स्त्री और पुरूष के बीच बराबरी का। इसके लिए देश और राज्य की सरकारों ने बहुत से कदम उठाए हैं और कई नियोजनाएँ पारित की हैं।


लेकिन इसी समाज के अंध्यारे में स्त्रियों को बराबरी के नाम पर बहुत जगहों पर हमेशा नीचे रखा गया। उनका शोषण किया गया और अभी भी किया जा रहा है। पुरुषों को पुरुषोत्तम तो कभी देवता तो कभी परमेश्वर बनाया गया और ये भी सच है कि इन्हें इस तरह की उचाईयों का मकाम स्त्रियों द्वारा ही दिया गया।


हमारे समाज के पुरुषों ने अपने मनमुताबिक अपनी इज़्ज़त अपने घरों की औरतों से जोड़े रखा लेकिन घर से बाहर की इस्त्रियों से अपना दिल भी बहलाते रहें हैं। समाज कहाँ है? और समाज की क्या स्थिति है कि इस समाज में पुरुषों के ख्वाहिशों और जज्बातों के लिए औरतों को कोठे पर बैठना पड़ा है। दुनियाँ भर के कोठे इसी समाज के इज्ज़तदार लोगों के कारण से ही चल रहें हैं।


बेशक हर औरत का हक है कि वो जो मर्ज़ी काम करना चाहे करें लेकिन मुझे नहीं लगता या काम से काम मैंने अभी तक अपनी ज़िन्दगी में कभी नहीं देखा कि कोई औरत अपने पेट से जब एक बच्ची को जन्म देती हो तो ऐसा कोई सपना देखती हो कि उसकी बेटी बड़ी होकर किसी कोठे की ज़ीनत बने। 


बेशक ये हमारे समाज के ही लोगों की हवस और वासना और जिस्मानी ज़रूरत होती होगी कि किसी औरत को उसकी इज़्ज़त, पैसे से तौल कर कोठे पर बिठा देती होगी।


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'ऐसी-वैसी औरत' मेरी पहली हिंदी किताब है। इस किताब को लिखना मेरे लिए शौक़ से ज्यादा जरूरत थी। उन कहानियों को सामने लाने की जरूरत जो मुझसे जुड़े, मेरे आस-पास के लोगों के जीवन में घटित तो हुईं, लेकिन उन्हें न ही कोई नाम मिला, न पहचान। वे एक बुरी कहानी, बुरा ख़्वाब बनकर दब गईं। कई जगह तो हाल इससे भी बुरा रहा।
इस किताब की कहानियों में जिन औरतों को मुख्य चरित्र में रखा गया है, वे ऐसे चरित्र हैं, जिन्हें समाज में गू समझा जाता है। ऐसी गंदगी समझा जाता है, जिस पर मिट्टी डालकर उसे छुपा दिया जाता है- तब तक के लिए जब तक कि उसे साफ़ करने वाला जमादार न आ जाए; और यदि नौबत खुद साफ़ करने की आए तो साफ़ करने वाले को रगड़ - रगड़कर नहाना पड़े ।
~अंकिता जैन

किताब से


अंकिता जैन

अंकिता जैन


अंकिता की शिक्षा बनस्थली यूनिवर्सिटी से एमटेक (कम्प्यूटर साइंस इंजीनियरिंग) में पूरी हुई। उन्होंने एक वर्ष सीडैक पुणे में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में बतौर रिसर्च एसोसिएट कार्य किया। बंसल इंजीनियरिंग कॉलेज , भोपाल में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर सात माह अध्यापन किया। अंकिता पिछले पाँच वर्षों से जैविक खेती में सक्रिय हैं। वे बतौर डायरेक्टर 'वैदिक वाटिका ' में कार्यरत हैं।

अंकिता 2012 से लेखन में सक्रिय हुई जब उनके लिखे गीत पर बना 'फ़्लैशमॉब ' लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में चयनित हुआ। इनकी लिखी दो दर्जन कहानियाँ बिग एफएम के दो प्रसिद्ध कार्यक्रमों में प्रसारित हो चुकी हैं। अंकिता ने 'रूबरू दुनिया' मासिक पत्रिका का तीन वर्षों तक सफल संपादन एवं प्रकाशन किया। 'एसी-वैसी औरत' के अलावा इनकी दो और किताबें - 'मैं से माँ तक' (गर्भावस्था पर आधारित) और बहेलिए '( कहानी संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं। अंकिता 'प्रभात खबर' अखबार की साप्ताहिक पत्रिका 'सुरभी' एवं 'लल्लनटॉप' न्यूज पोर्टल पर अपने 'माँ-इन मेकिंग' कॉलम के लिए भी चर्चित रही हैं। उनके लेख 'अहा ! जिन्दगी', 'इंडिया टुडे', 'आर्डचौक', 'नवभारत टाइम्स (गोल्ड)' में प्रकाशित होते रहते हैं। इन दिनों अंकिता 'राजस्थान पत्रिका' के लिए मासिक संपादकीय भी लिख रही हैं ।
                     

दैनिक जागरण नीलसन बेस्टसेलर रही ये किताब और इस किताब के कवर पर ही दैनिक भास्कर द्वारा कही जो बात लिखी गई है --

"ऐसी वैसी औरतों पर लिखी गई ये किताब मर्दों को ज़रूर पढ़नी चाहिए।" 
जब मैंने पढ़ा और इसकी सभी कहानियों को पढ़ा तो लगा कि इस समाज में को लोग खुद को मर्द कहते हैं और ख़ुद को एक बुलंद और मजबूत मर्द के तागमे के लिए अपने सर्कल में " तेरी माँ की, तेरी बहेन की..... " जैसी गालियँ देते हैं, उन्हें तो ज़रूरी से पढ़नी चाहिए।




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अंकिता की ये किताब के पहले पन्ने की पहली कविता ही आपको थोड़ी परेशान करेगी और शायद इतना की आगे के पन्ने आपके हाथों की उंगलियाँ जल्दी से पलट देंगी। वो कविता आप यहाँ नीचे पढ़ें।

कभी तिराहे पर,
कभी आँगन में टाँगा,
कभी किसी खटिया
तो खूटी से बाँधा,
कभी मतलब से
तो कभी यूँ ही नकारा
कभी जी चाहा तो,
खूब दिल से पुकारा
कभी पैसों से
तो कभी बेमोल ही ख़रीदा,
मुझे पा लेने का
बस यही तो है तरीका,
नाम था मेरा भी
पर किसे थी ज़रूरत,
कहते हैं लोग मुझे
ऐसी - वैसी औरत।

हिन्द युग्म द्वारा प्रकाशित इस किताब का पहला संस्करण मार्च 2017 में और छठा संकरण सितंबर 2020 में प्रकाशित हुआ।

कहानी क्रम निम्न प्रकार से हैं।

मालिन भौजी
छोड़ी हुई औरत
प्लेटफार्म नंबर दो
रूम नंबर 'फिफ्टी'
धूल-माटी-सी जिंदगी
गुनहगार कौन
सत्तरवें साल की उड़ान
एक रात की बात
उसकी वापसी का दिन
भँवर
नीरू

1. मालिन भौजी:- यह उस औरत की कहानी है जो अपने पति के गुजरने के बाद एक रंगहीन लंबा समय अकेलेपन में ही गुजार देती है। उसे कई प्रकार के सामाजिक विषमताओं का सामना करना पड़ता है और फिर इस रंगहीन जीवन से लाल साड़ी तक की कहानी बयान की गई है।


2. छोड़ी हुई औरत:- यह चार भाईयों की इकलौती बहन रज्जो की कहानी है। जिसे उसका पति छोड़ कर भाग जाता है, जिस कारण उसे ससुराल से भी निकाल दिया जाता है। मायके में भी उसे कई परेशानियों से गुजरना पड़ता है।


3. प्लेटफार्म नंबर दो:- समाज का एक अलग रूप जो सबके सामने होते हुए भी अंधियारे में रखा गया है। ये कहानी एक सवाल पैदा करती है कि ऐसे बच्चो का ज़िम्मेदार कौन है?
एक लड़की इरम की भीख मांगने से लेकर रेड लाईट एरिया पहुँचने तक की कहानी है।


4. रूम नंबर फिफ्टी:- लेस्बियन होना कोई बीमारी नहीं या कोई असामाजिक बात नहीं। यह शैली व निधि की कहानी है। जो छात्रावास में रहने व उनके लेस्बियन व्यवहार की कहानी को बयान करती है।


5. धूल-माटी सी जिंदगी:- यह एक मीरा की कहानी है जो जिंदा रहने तक अपने पति व ससुर के दुर्व्यवहार के बीच पिसती रहती है।


और भी बाक़ी की कहानियां इसी तरह से समाज की ऐसी औरतों की कहानी है जो हमारे सामने घटती रहती हैं लेकिन किसी को भी अपने जीवन में इतना समय नहीं की इनके लिए तैयार रहे और इनके  परेशानियों को खत्म करने की कोशिश करे बल्कि गरीबी और लाचारी में पिस्ते रहने को छोड़ दिया जाता है। आख़िर कब तक हमारा समाज ख़ुद को उच्चतर कहते हुए ऐसी औरतों की कहानियों को घटित होने देता रहेगा।


समाज में प्रमुखता से नारी सम्मान और स्त्री समानता का नारा लगाने वाले आख़िर कब तक ये झूठा नाटक करते रहेंगे। आख़िर कब तक हम इस नाटक के एक बहुत बेकार  किरदार निभाते रहेंगे?
आख़िर कब समाज का ये घटियापन दूर होगा?


पूरी पुस्तक की कहानियों में संवाद सराहनीय हैं। प्रेम और वासना और वासना के लिए मर्द, औरतों का किस प्रकार शोषण करता है, की अलग अलग परिस्थितयों के द्योतक हैं और उन स्थितियों का मानसिक विश्लेषण भी हैं। 


इस समाज की औरतों, लड़कियों और प्रेमियों की इज़्ज़त की और उनकी दुविधाओं को तथा समाज के ही लोगों द्वारा, अपने घर में पति के द्वारा, और अन्य जगहों पर शोषित होती महिलाओं की कहानियों को अंकिता जी ने अपनी कलम के माध्यम से बहुत ही खूबसूरती से और बहुत ही व्यांगिक तरीक़े से कागज पर उकेरा है। घटनाओं का चुनाव बहुत ही सावधानी से किया गया है। 
मैं जब ये पुस्तक पढ़ रहा था और जब ख़त्म किया तब लगा कि शायद इस मुझे बहुत पहले ही पढ़ लेना चाहिए था।




नोट: इस ब्लॉग में संलग्न सभी तस्वीरें अंकिता जी की सोशल मीडिया अकाउंट्स से ली गई हैं।

2 Comments

  1. amazing book hai... padhi hai maine.. bahut jabardast kitab hai.//

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  2. Thank you so much Bhai 🙏❤💐

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