'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> पुस्तक समीक्षा : ठीक तुम्हारे पीछे



किताब:- "ठीक तुम्हारे पीछे" 

लेखक:- मानव कौल

प्रकाशक: हिन्द युग्म

सी- 31, सेक्टर 20, नोएडा ( उ• प्र• ) - 201301

फ़ोन नंबर :- +91-120-4374046

प्रकाशन वर्ष: मार्च 2016

मूल्य: 150/- 

ISBN: 978-93--84419-40-0


मानव कौल


कहानी संग्रह "ठीक तुम्हारे पीछे" मनाव कौल की पहली किताब है। पहली किताब से ही उनके लेखन का कायल हो चुका हूँ। मानव कौल आज के समकालीन लेखकों में सबसे पसंद आने वाले लेखक है।



मानव कौल

कश्मीर के बारामूला में पैदा हुए मानव कौल, होशंगाबाद (म.प्र .) में परवरिश के रास्ते पिछले 20 सालों से मुंबई में फ़िल्मी दुनिया, अभिनय, नाट्य निर्देशन और लेखन का अभिन्न हिस्सा बने हुए हैं। अपने हर नए नाटक से हिंदी रंगमंच की दुनिया को चौंकाने वाले मानव ने अपने ख़ास गद्य के लिए साहित्य - पाठकों के बीच भी उतनी ही विशेष जगह बनाई है। इनकी पिछली किताबों - ' ठीक तुम्हारे पीछे', 'प्रेम कबूतर', 'तुम्हारे बारे में', 'बहुत दूर, कितना दूर होता है' और ' अंतिमा ' को पाठकों का अथाह प्यार मिला है। इनकी किताबें दैनिक जागरण नीलसन बेस्टसेलर में शामिल हो चुकी हैं ।



हिन्दी युग्म द्वारा प्रकाशित इनकी किताब ‘ठीक तुम्हारे पीछे’ कुल बारह कहानियों का संग्रह है। जो निम्न है।


१. आसपास कहीं

२. 'अभी-अभी 'से' कभी-का' तक 

३. दूसरा आदमी 

४. गुणा - भाग 

५. लकी

६. माँ 

७. मुमताज़ भाई पतंगवाले 

८. मौन में बात 

९. सपना 

१०. शंख और सीपियाँ 

११. टीस 

१२. तोमाय गान शोनाबो



किताब की यहीं खासियत रही है कि आखिर आखिर तक आपको बांधे रखती है। हर कहानी आपको ऐसे बांधे रखती है जैसे कि आपके आस पास ही घटित हुआ हो।


बॉलीवुड में अपनी बेहतरीन अदाकारी के लिए मशहूर मानव कौल को आप शायद ‘काई पो छे’ के बिट्टू मामा या ‘वज़ीर’ के मंत्री जी के किरदारों से पहचान लें, भारत-पाक सैनिकों पर बनी 1971 में भी मानव ने शानदारी अदाकारी की है। आज कल इनकी 'नेल पॉलिश' भी लोगों को बहुत पसंद आ रही है।

मानव कौल


“अभी-अभी से कभी-का तक”
कहानी में मानव कौल एक ऐसा व्यक्ति की बात करते हैं जो हॉस्पिटल-बैड पर रात दिन अपने आने वाले कल को संशय से देखता है। उसे यकीन है कि वो उस किनारे नहीं लगेगा जहाँ ज़िंदगी सांसे छोड़ देती है, उबर जाएगा वो इस बीमारी से फिर भी रोज़ खुद को उसी ओर सरकता पाता है जो उसे बस एक याद बना देगा।


“गुणा भाग” कहानी में लेखक कितना सधा हुआ लिखते हैं कि “इन तीन सालो में मैंने तुम्हें जितना जिया है और जितना तुमने मुझे याद किया है हम वो सब एक दूसरे को वापस दे देंगे और फिर हमारे सबंध में है के सारे निशान मिट जाएँगे” एक रिश्ते में होकर भी ना होना, वजह पता होते हुए भी ढूंढते रहना कि क्या पता कोई ऐसा सिरा मिल जाए जो रिश्ते को “है” से “था” ना होने दे”


इनके अलावा “मुमताज़ भाई पंतग वाले” और “माँ” इन दो कहानियों को पढ़ना किसी अलसायी सी दोपहर में नीम की ठंडी छाँव में सुस्ताने जैसा है।


बाक़ी की कहानियाँ भी आपको सुकून, प्रेम, अनुभव, स्नेह, करुणा, दुःख जैसे सभी जज्बे से मिलन कराऐंगी।

मानव कौल एक परिपक्व लेखक हैं ये किताब पढ़कर आप बिल्कुल समझ सकते हैं।


मानव अपने लिखने के बारे में कहते हैं “मैं इस बात का उत्तर ख़ुद को कभी ठीक से दे नहीं पाया कि मैं असल में क्यों लिखता रहा ? मैं ख़ालीपन की तरफ़ इशारा कर सकता हूँ या और कुछ न कर पाने को भी एक कारण बता सकता हूँ... पर यह ठीक उत्तर नहीं होगा। अगर बहुत सीधे कह सकूँ तो यही लगता है कि मुझे कोरे पन्ने बहुत आकर्षित करते हैं। मैं कुछ देर कोरे पन्नों के सामने बैठता हूँ तो एक तरह का संवाद शुरू हो जाता है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे देर रात चाय बनाने की आदत में मैं हमेशा दो कप चाय बनाता हूँ, एक प्याली चाय जो अकेलापन देती है वह मैं पंसद नहीं करता। दो प्याली चाय का अकेलापन असल में अकेलेपन के महोत्सव मनाने जैसा है”

आखिर में बस ये कहूँगा कि इस किताब को अपने पुस्तकालय में जरूर जगह दें।


नोट:- इसमें संलग्न सभी तस्वीरें मानव कौल जी की ऑफिशियल फेसबुक पेज से ली गई हैं।






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