'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> वक़्त आया है मेरे सोने का,

 



वक़्त आया है मेरे सोने का,

सब रोऐंगे मेरे सो जाने से,

 

कुछ अपने देंगे आवाज़ें मुझको उठ जाने की,

फिर लोग जोड़ेंगे मेरे सोने को मर जाने से,

 

अम्मी चीखेंगी, अपने भी दहाड़ेंगे उठाने को,

मैं न उठूंगा बिस्तर से किसी के भी जगाने से,

 

मैं तो सो जाऊंगा किसी भी पहर वक़्त-ए-मुकर्रर पर,

थोड़ी हलचल होगी मोहल्ले में, मेरे मर जाने से,

 

इत्तेला देंगे म’आशरे मे मेरे सोने की,

किस्सा होगा शुरू घर पर सभी को बुलाने से,

 

ज़रूरत होगी दो गज़ ज़मीं और कफ़न की,

होगी शुरू नमाज़-ए-जनाज़ा सभी के आ जाने से,

 

ज़रूरत होगी बाद-ए-नमाज़--ए-जनाज़ा चार कंधों की,

किस्सा होगा ख़त्म मुझको कब्र में सुलाने से,

 

अब फ़िक्र होगी घर पर आए मेहमानों की,

ख़त्म होगी कहानी मेरी रूठों को मनाने से,


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