तस्वीर : इंटरनेट से साभार |
जन्म से ले कर मृत्यु तक हम हमेशा यात्राओं में ही रहते हैं और मृत्यु ही मनुष्य को यात्राओं में रखती है। मनुष्य के जीवन के यात्रा का लक्ष्य मृत्यु तक ही सीमित होता है।
यात्राएँ हमेशा मुझे रोमांचित करती है। यात्राओं से सीख सकते है कि हमें हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए। चलती रेल गाड़ी से पीछे छूटते पेड़ - पौधे कहते हैं की जब आगे बढ़ोगे तो बहुत कुछ पीछे छूट जाएगा और इस त्याग से ही आगे बढ़ा जा सकता है। त्याग, जीवन का वो रूप है जो जीवन को नई आवृति देती है।
मुझे लगता है यात्राएँ अकेले करना अधिक प्रभावी होगा। नए नए लोगों से मिलने से पता चलता है कि असल में जीवन क्या है। कुछ दूर चलने पर ईश्वर की बनाई दुनिया के लिए और अपने जीवन के लिए धन्यवाद करने का दिल करने लगे और बस कहीं कुछ दूर और आगे बढ़ने से ही शायद कुछ ऐसा दिखे, सुनने को मिले या लगे की दुनिया बानी ही क्यों?
यात्राओं में देखो, लोगों की, प्राणियों की भिन्नता, लोगों की राय, त्याग, मौत, जीवन, जंगल, आग, हरियाली, नदी का जलस्तर, बहाव, अलग अलग पंछियों की आवाज़ें जो किसी को भी मंत्रमुग्ध कर दे। प्रकृति के किसी छोर पर बाढ़ तो कहीं इतना सूखा की पीने को पानी नहीं। यात्राएँ मनुष्य के जीवन को प्रभावित और प्रकाशित करने में सफल और सहायक योगदान कर सकती है।
हम असल में एक यात्रा पर ही तो हैं और ये यात्रा वहीं ख़त्म होगी जब मृत्यु आ कर गले लगा लेगी। तब मृत्यु कहेगी कि अब सोने का वक़्त हो गया है सो जाओ। हम जिस यात्रा पर निकले हैं इसमें संबंध और रिश्ते हैं और संबंधों में ख़ुशी है, उल्लास है, ख़ुशी और गम के आंसू हैं। प्यार भी है।
इस यात्रा में मृत्यु के गले लगाने से पहले जिसने अपने प्यार को पा लिया उसकी यात्रा तो वहीं सफल हो जाती है। इस दुनियाँ में सब यात्री हैं और प्यार और स्नेह की तलाश में हैं।
~"अहमद"
Padhke acha laga
ReplyDeleteThank you so much
ReplyDeletebahut khub👍👍👌👌👌
ReplyDeletePost a Comment