'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> बिहारी मज़दूर और लॉक डाउन

बिहारी मज़दूर और लॉक डाउन

आज से लगभग कुछ दिनों पहले पूरे हिंदुस्तान में लॉक डाउन कर दिया गया। हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने कोरोना जैसी महामारी से लडने और उससे बचने के लिए पूरे देश में लॉक डाउन कर दिया। 

कोरोना महामारी 2019 में ही फैलना शुरू हो गया था इसीलिए इसका नाम कोविड-19 रखा गया। बाकी देशों ने इससे बचने के उपाय ढूंढने लगे थे लेकिन हिन्दुस्तान के प्रधान सेवकों को लगा कि ये हिन्दुस्तान तक तो आ ही नहीं सकता तो सब कुछ वैसा का वैसा ही चलता रहा। आखिरकार इस बीमारी ने हिन्दुस्तान को भी चपेट में ले लिया तब जा कर मार्च - 2020 में इस महामारी पर ध्यान दिया गया और इससे बचने के उपाय ढूंढे जाने लगे तब सबसे पहला उपाय यहीं था कि सबको उसकी ही जगहों पर रोक दिया जाए। कोई कहीं भी न आए ना जाए, किसी के भी सम्पर्क में नहीं आए।

और ऐसा ही किया गया। लॉक डाउन किया गया। ट्रेन, गाड़ी, बसे, प्लेन, सब कुछ का चक्का जाम हो गया। सारी व्यवस्थाएं रोक दी गई। फैक्ट्री और इंडस्ट्री से ले कर कंस्ट्रक्शन कंपनी के काम से ले कर हर उस काम को रोक दिया गया जिससे लोग एक जगह इकट्ठा हो रहे थे। इसकी वजह से मजूदरों की मजबूरियाँ सामने आ।


मजदुरों की मजबूरी


मजदूरों की मजबूरी ऐसी रही और इसका सीधा असर अनपर ऐसे पड़ा कि वो और उनका परिवार खाने को तरसने लगा। हमारा देश भारत लॉक डाउन की कितनी तैयारी कर के आया था ये तो पता नहीं लेकिन कुछ भी तैयारी नहीं कर के आया ये साफ दिखा। हज़ारों बिहारी मजदुर जो अलग अलग शहरों में रह रहे थे। हर रोज़ काम करके अपने परिवार का पालन पोषण करते थे वो दाने दाने को तरसने लगे और ये सिर्फ बिहारी मजदूरों के साथ ही नहीं बल्कि हर मजदूर के साथ हुआ। और आख़िर - आख़िर में ये हुआ कि मजदुर अपने परिवाजनों के साथ पैदल ही अपने घर के तरफ रवाना होने लगे। 

पैदल एक-दो किलो मीटर नहीं बल्कि 1000 - 1500 किलो मीटर। इस भाग दौड़ में खबर अाई कि कई मजदुर भूखे मर गए। 
इसे किसका नुकसान कहा जाएगा?
 ये किसकी असफलता है?
क्या ये सरकार की असफलता नहीं है??

मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में हज़ारों मजदुर भूखे रह रहे थे। खाने को तरस रहे थे। जहाँ कुछ सरकार को पहले इन सारी मुद्दों पर सोचना चाहिए था लेकिन नहीं सोचा और यहाँ भी सरकार पूरी तरह असफल हो गई। शुक्र है कि हमारे देश में हजारों नॉन गवर्नमेंट ऑर्गनाइजेशन काम करती है जिसमें भरशक अपना काम किया। और बहुत हद तक संभाला लेकिन ये बहुत बड़े पैमाने पर था। लोग अभी भी बहुत जगह भूखे हैं, तड़प रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार ने अपना हाथ ही पीछे कर लिया लेकिन जितना कर पा रही थी वो पूरा नहीं था।

हर राज्यों में सबसे ज्यादा बिहारी मजदुर काम करते है और इसी वजह से सबसे ज़्यादा इन्हें ही परेशान होना पड़ा है। आखिर ऐसा क्यों हुआ है कि बिहारी मजदूरों को पलायन करके दुसरे राज्यों में जा कर रहना पड़ा है?

आखिर क्यों बिहार सरकार इसका पोखता इंतजाम नहीं करती कि बिहारी अपने ही राज्य में अपनी आजीविका कमा कर अपना पालन पोषण कर सके?
कब तक सरकार सिर्फ़ राजनीति करेगी?

मैं ये नहीं कहता कि सरकार हर जगह फेल है लेकिन ये भी एक हक़ीक़त है कि अधिकतर जगहों पर सरकार हार जाती है। बेबस नज़र आती है। चाहे वो राज्य सरकार ही क्यों ना हो , चाहे वो केंद्र सरकार ही क्यों ना हो।
दोनों अधिकतर जगहों पर असफल रही है।

कोई भी एक बेहतरीन आडियालॉजी पर काम ही नहीं हो पाता कि लोगों की तरक्की हो सके। आज इस महामारी से लड़ते हुवे हमे एहसास हो रहा है कि,,,, काश हम मन्दिर मस्ज़िद की जगह हॉस्पिटल्स के लिए, दवाओं के लिए, हॉस्पिटल्स की मशीनों के लिए लड़ते तो आज इस कोरोना जैसी बीमारी से कब का जंग जीत चुके होते।


शराब और शराबी


इसी बीच एक ये भी नजारा देखने को मिला कि शराब कि दुकानों पर इस कदर भीड़ लगी। यहाँ किसी को भी कोरोना का कोई ख़तरा नहीं दिखा। ऐसा लगा जैसे शराबियों को कोरोना हो ही नहीं सकता।

इस बीमारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेंस का पालन करना था लेकिन शराब के ठेकों पर इसकी धज्जिया उड़ा दी गई। अब तो दुआ ही दुआ करते हैं कि इसका कोई दुष्ट परिणाम देखने को नहीं मिले और सब ठीक हो जाए।

हमारे देश में यही होता है कानून का उलंघन हो जाता है और जो हमारे हाथ में रहता है वो भी चला जाता है। शराब के ठेकों पर इस क़दर की भीड़ देख कर एहसास हुआ कि लोगों को ज़िन्दगी से ज्यादा और भी बहुत कुछ पसंद है। यहाँ सबकी अपनी अपनी ज़िन्दगी की बात होती तो कोई बात नहीं थी लेकिन इस महामारी के समय में किसी दूसरे व्यक्ति से संपर्क में आने पर तीसरे और चौथे व्यक्ति को महामारी फैलने की शंका है। इसी कारण से ये भीड़ ग़लत है।


सलमान खान एक मसीहा



सलमान खान एक ऐसा नाम है जो हमेशा से गरीबों और जरूरतमंदों के लिए खड़ा रहा है और आज फिर इस हालत में भी सलमान खान फिर से सामने आए मदद को और खुल कर मदद किया।
सलमान खान हमेशा से एक मसीहा के तरह गरीबों की मदद करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं।
मुंबई के बहुत सारी जगहों पर सलमान ख़ान की कम्पनी की टीम "बीइंग ह्यूमन" पहुँच पहुँच कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मदद कर रही है।

सरकार भी अपने हिसाब से मदद कर रही है लेकिन उसका मैनेजमेंट बहुत जगह फेल है। क्यों कि इसकी तैयारी ही नहीं की गई। कोई भी ऑपरेशन से पहले हमें उसकी हालत को समझ कर आगे कदम बढ़ाने चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अगर पहले lockdown के लिए सभी को तैयार किया जाता तो बहुत मुमकिन था कि गरीबों को इतनी परेशानी नहीं झेलनी पड़ती।

सलमान खान को हमेशा से इसके लिए इज्ज़त मिलती रही है कि वो जरूरतमंदों कि मदद करते रहे हैं और आज भी उन्हों ने हर कदम पर लोगों के लिए मददगार साबित हुए है।
और भी बहुत फिल्मी सितारें हैं जिन्हें ने आगे आ कर अपने सेविंग्स में से लोगों के लिए दान किया है। इस कोरोना जैसी बीमारी से लडने में मदद को आगे आए हैं।

हम उम्मीद करते हैं कि सारे मजदुर अपने अपने घरों पर सही सलामत पहुंच जाएं और हर राज्य की सरकार इनके लिए कुछ अच्छे कदम उठाएगी।

ये भी उम्मीद करते हैं कि जल्दी ही हमारा देश इस बीमारी से ये जंग जीत लेगा और हम सभी फिर से ये अपनी ज़िन्दगी पहले की ही तरह गुज़ार पाएंगे।

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