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उसकी तस्वीर

उसके घर के पास से, उसकी गली से मेरा गुज़र हुआ तभी उसे, उसके ही बालकनी में देखा। वो अपनी सारे बालों को अपनी दाहिने कंधे से आगे कर के लटकाए हुवे उन्हें संभाल और सुलझा रही थी। शायद वो अभी अभी नहा कर निकली है। उसके चेहरे की चमक देखते ही बनती थी।

उसकी आँखें,,, हाए,,, ये दो आँखें किसी को भी डुबाने के लिए काफ़ी हैं। जब मैंने उसकी आँखों को देखा तो वहीं जम गया, या शायद डूब गया। पता नहीं।  उसकी खुलती, बंद होती आँखें किसी को भी क़ैद कर सकती थीं। अब मैं भी इसी कैदखाने का एक कैदी हूँ। इन आंखों की झील में डूबता उभरता हुआ एक मजबुर आशिक। मैं कैद था या डूब रहा था ये पता नहीं चला।

कुछ वक़्त बाद उसके बालों से कुछ पानी की बूंदें टपकते हुवे देखी। वो बूंदें कभी उसकी पलकों पर टपक कर रुक जाती तो कभी उसके होंठो पर।
जब उसके बालों से पानी की कुछ बूंदें उसके पलकों पर पड़ें और उसने अपनी आंखें बंद कर ली तो ऐसा लगा जैसे किसी समंदर में भवर बना हो और उस भवर में मैं कहीं फिर से डूब गया हुँ।
जब पानी का एक कतरा उसके बालों से टपक कर उसके होंठो पर रुका तो वो मुझे मोती दिखा। एक ऐसा मोती जो धीरे धीरे उसकी होंठो पर ख़ुद को ख़तम कर रहा हो।

वो पानी का कतरा, वो मोती उसकी होंठो पर ही ख़तम हो गया और अपनी तासीर उसकी होंठो पर ही छोड़ गया,,, कि मेरा दिल एक आह भरता हुआ वहीं कहीं रह गया।
उसके लबों ने उस मोती की तासीर से मुझे इस क़दर लबरेज़ किया कि मैं आह भरते हुवे वहीं बैठ गया, फिर सो गया, फिर वही ख़तम हो गया।

मैं अब उसके वजूद में मिल जाना चाहता हुँ, वही मोती बनना चाहता हुँ जो उसके बालों में बने। फिर धीरे से लुढ़क कर कभी उसकी पलकों पर तो कभी उसके होंठो पर ख़ुद को खत्म कर देना चाहता हुँ।

मैंने आगे बढ़ कर उसके घर की घंटी बजाई ही थी कि मेरी निंद खुल गई।

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