'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> मज़दुर, मुम्बई और लॉक डाउन

मज़दुर, मुम्बई और लॉक डाउन


आज सोशल मीडिया के फीड्स को स्क्रॉल करते जा रहा था तो कुछ मज़दूरों की तस्वीरें देखीं। दिल से एक आह निकली। ओवर ब्रिज के नीचे, नाले के पास सोए कुछ मज़दुर, उनके आसपास टहलते हुवे कुछ कुत्ते और नाले का बहता गन्दा पानी। बिस्तर की जगह उनके कंधे का उतारा हुआ गमछा है।
वहीं ओवर ब्रिज जहाँ पर इन्हीं में से कितनों ने अपने पेट पालने के लिए यहाँ मज़दूरी किया है, अपने कंधो और सिर पर बोझ उठाया है।

अब जबकि पूरा देश बंद पड़ा है, तो सबकुछ रुका हुआ है। एक बीमारी ने पूरी दुनियाँ को अपने कब्जे में ले रखा है। दुनियाँ के लोग इस बीमारी से लड़ रहे हैं, दूसरों को और ख़ुद को बचाने के लिए ख़ुद को अपने अपने घरों में क़ैद कर रखा है। लेकिन ये मज़दूर एक साथ दो लड़ाइयाँ लड़ रहे हैं।

बीमारी तो बाद में आती है, इनकी पहली प्राथमिकता तो भूख से लड़ना है। इन्हें उम्मीद है कि यदि उन्हों ने भूख से जंग जीत लिया तो इस दुनिया में फैले भयंकर बीमारी से भी जंग ज़रूर जीत जाएंगे।
लेकिन यहाँ कुछ सवाल उठते हैं, सरकार पर और सरकार की व्यवस्थाओं पर। इस देश का एक प्रधान है, वो बहुत अच्छा सोचते हैं, भरपूर कोशिश करते हैं कि इस देश का हर नागरिक सही सलामत रहे। लेकिन मज़दूरों के बारे में जब बात आती है तो उनकी सारी व्यवस्थाएं फेल हो जाती हैं।
क्या वो देश के मज़दूरों के बारे में, उनके हालातों के बारे में सोचते हैं?
यदि हाँ, तो कितना?

यदि हाँ, तो मज़दूरों के हालातों में सुधार क्यों नहीं आता?
ऐसा पहली बार हुआ है कि इन्डियन रेलवे बंद है, रेलवे की सेवाएँ रोक दी गई हैं। और हज़ारों की संख्या में मज़दुर, देश के मुम्बई और दिल्ली जैसे महानगरों में फसे हुवे हैं। 
उनके बारे में सरकार क्या सोचती है?


हमारा देश भी क्या ख़ूब है, जब भी कोई आपदा आती है तो उसे धर्मो से, मज़हबों से ज़रूर जोड़ दिया जाता है। यहाँ भी वही हुआ।
ये बीमारी है, तो मुझे उम्मीद थी कि लोग इसको किसी मज़हब से नहीं जोड़ेंगे और एक साथ इस बीमारी से, इस आपदा से लड़ेंगे, और इसे हरा देंगे।

लेकिन अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ। देश के राजनीतिक पार्टियों को अपने वोट बनाने थे और मीडिया को टीआरपी चाहिए था। इस बीमारी को हिन्दू-मुसलमान में जोड़ा गया और सबने एक दूसरे के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी शुरू कर दी। इस बात का बहुत अफ़सोस है मुझे।

मैं उम्मीद करता हूँ कि इन सबसे ऊपर उठ कर हमारा देश हिन्दुस्तान एक साथ खड़ा होगा और इस बीमारी से लड़ेगा, और पूरे देश को बचाएगा। मैं ये भी उम्मीद करता हूँ कि इस परिस्थिति में देश के प्रधान और ख़ास लोगों से लेकर आम लोग भी मजदूरों के साथ खड़े रहेंगे। हमारा हिन्दुस्तान ये जंग जीत जाएगा। 

हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद।

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