'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> पतझड़ और बदलाव

पतझड़ और बदलाव




बदलाव प्रकृति का नियम है। और पतझड़ भी इसी नियम का हिस्सा है। यही नियम हमे सीखता है कि हमेशा बदलाव के लिए सभी को तैयार रहना चाहिए।
बदलाव हमेशा ही कुछ अलग होता है, या हो जाता है। कभी यह खुशी देता है तो कभी गम।
और यही पतझड़ और बदलाव दर्शाते हैं कि ना ख़ुशी ही हमेशा के लिए आती है, ना गम। पतझड़ प्रेम है, बदलाव है जिज्ञासा। पतझड़ कुछ लेता है तो बहुत कुछ देता भी है। बदलाव में हम हमेशा जिज्ञासा में रहते हैं कि क्या होने वाला है और यही जिज्ञासा इस बदलाव को हमारे लिए रोमांचक बनाता है।

पतझड़ हमें क्या सिखाता है?


पतझड़ भी यही सिखाता है कि कुछ बदलाव ग्रहण करने के लिए पहले हमें कुछ त्यागना पड़ता है। हमे हमेशा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। यही तो प्रकृति है। इस मौसम में अक्सर सारे पेड़ की पत्तियाँ गिर जाती हैं और उनकी जगह नई पत्तियाँ अपनी जगह लेती हैं। और वह पेड़ फिर से हरा भरा दिखने लगता है।

तो इन्सान को इससे ये सीखना चाहिए कि वो कैसे ज़िन्दगी के सभी हालातों में ख़ुश रह सकता है। हालात भी बदलाव है, इसे ग्रहण करने के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। हालातों का आना जाना, बदलते रहना लगे रहता है।
इन्हीं हालातों से, बदलावों से मिलकर तो ज़िन्दगी बनती है। और ज़िन्दगी से सब कुछ एक सा हो कर एक जगह रुक जाए तो ज़िन्दगी जीने में मजा नहीं आता।
जैसे जब हम कोई खेल खेलने जाते हैं तो उसका अलग रोमांच होता है। यदि हमें खेलने से पहले हैं जीत दे दिया जाए, उस खेल की ट्रॉफी दे दी जाए तो वह बेमानी सी लगती है। जबतक हम कुछ भी हासिल करने के लिए मेहनत नहीं करते वो ऐसे ही लगते हैं, बेमानी, बेकार।

क्या ज़िन्दगी में बदलाव ज़रूरी हैं?


ज़िन्दगी में बदलाव बहुत ज़रूरी हैं, ऐसे कि यदि हम किसी भी वस्तु को एक जगह पर स्थिर कर देते हैं तब उस जगह पर धूल, मिट्टी और गंदगी जमना शुरू हो जाती है। और यदि हम उस वस्तु की जगह बदलते रहते हैं तब वो जगह भी साफ रहती है और वो वस्तु भी।
जब तक हम बदलाव को अपनी ज़िन्दगी में ग्रहण करना नहीं सीखते हैं तब तक हमें ज़िन्दगी उलझी हुई ही दिखती है। हमे चाहिए कि बदलावो को स्वीकार करें और उसे जिए।
जब पतझड़ का मौसम आता है तो हवाएँ, बारिश, पत्थर और भी बहुत कुछ साथ लाता है जिसकी वज़ह से कुछ दिक्कतें और परेशानी होती तो हैं लेकिन फिर मौसम का मज़ा भी उसी से आता है।

पतझड़ और बदलाव एक दूसरे से भिन्न हैं?


पतझड़ और बदलाव एक दूसरे से भिन्न हैं लेकिन दोनों कहीं ना कहीं मेल खाते हैं। जैसे कि पतझड़ सिर्फ़ पेड़ो में होते हैं और यही बदलाव है। बदलाव मनुष्यों के जीवन में होता है जो कि बहुत ज़रूरी भी है। पतझड़ सा कुछ मनुष्यों में भी होता है। इनके जीवन में होता है।

मनुष्यों के जीवन में पतझड़ तब होता है जब उनका परिवार बिखरता है। जीवन की ये रित रही है कि जब जब परिवार बड़ा हुआ है सबकी अपनी अपनी जिज्ञासाएँ और जीने का तरीका अलग हुआ है और एक परिवार, विभाजित हो कर कई परिवारों में बटता गया है। मनुष्यों के जीवन का यही पतझड़ है।
उस समय सबकुछ बदल रहा होता है और बदलाव ज़रूरी है। सब कुछ ऐसे बदल रहा होता है कि एक परिवार जब कई परिवारों में बिखरता है तो वो कमज़ोर, कोमल सा हो जाता है। जैसा कि पतझड़ के बाद पेड़ की नई कोमल सी कोपलें और पत्तियाँ निकलती हैं। इस समय ये बहुत ज़रूरी होता है कि इन नई कोमल पत्तों का ख़्याल रखा जाए। ऐसे ही नए बने परिवार का भी ख़्याल रखा जाना चाहिए। यही समय होता है जब मनुष्यों की नई पीढियाँ नए रास्ते देखती है। इन मौकों पर उन्हें ज़िन्दगी के बोझ का पता चलता है। ज़िन्दगी समझने का मौका मिलता है।

तो पतझड़ और बदलाव बहुत ज़रूरी है। पतझड़ पेड़ो के लिए जो मनुष्यों को सांस देते हैं और बदलाव मनुष्यों के लिए जो उन्हें जीवन समझने का मौका देते हैं।

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