'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> "मेरे ख़्वाबों के राख"

"मेरे ख़्वाबों के राख"



वो आखरी बार मुझसे मिलना चाहती थी तो मुझे बुलाया, उसी पीपल के पेड़ की छाव में,जहाँ हम दोनों पहली बार मिले थे।
   जब हम मिले तब वो रोई, उसको रोता देख मुझे मेरे सारे वादे याद आए, जिसमें मैंने एक ये वादा भी किया था कि उसकी आँखों में कभी भी आँसू नहीं आने दूँगा और उसने ये वादा किया था कि वो भी मेरे वादे निभाने में मेरा साथ देगी, आज उसने वादा तोड़ दिया और मैं, मेरा वादा टूटता चुप खड़ा देख रहा था।
       हम दोनों जब साथ होते थे तब ख़्वाब देखते थे और उन ख़्वाबों को पूरा करने के वादे करते थे और आज अचानक कुछ वादें वो तोड़ती जा रही थी और ख़ामोश रह कर कुछ वादें मैं।
           उसने मेरे आगे एक लिफ़ाफा बढ़ाया जिसे मैंने खोला तो उसमे से एक पत्र निकला, ये बुलावा पत्र था शादी का, जिसमें मोटे मोटे अक्षरों से उसका नाम लिखा था लेकिन इस पत्र में मेरा नाम कहीं भी नहीं था।
दो दिनों बाद उसकी शादी थी। दूल्हे का नाम बड़े अक्षरों में राहुल लिखा था और वहीं नाम के नीचे लिखा था कि ' नाम तो सुना होगा' ।
मैंने कहा ''हाँ" ___ उसने पूछा क्या?
मैंने कहा ___ दूल्हे का नाम। 

फिर कुछ देर ख़ामोशी तारी रही।


मैं उससे जुदा होने से पहले वो सारे ख़्वाब फिर से देखना चाहता था जो मैंने इन तीन सालों में उसके साथ देखे थे, मैंने आँखे बंद कर ली तब हमारे सारे ख़्वाब दिखे, वो सारे ख़्वाब जल रहे थे, ख़्वाब इतने ज्यादा थे कि इनके जलने से उठने वाली चिंगारी पीपल के पत्तों को भी जला रही थीं।
ख़्वाबों के जलने से धुआ ऊपर उठता जाता था तो कुछ राख़ भी साथ लिए उड़ता था, ये राख़ कुछ दूर जा कर गिरते साथ में पीपल के पत्ते भी गिरते।
        
      मैंने सोचा कि मैं आँखे खोल दूं, ख़्वाब जलने से रोक दूं, पीपल का पेड़ भी जलने से बचा लूँ, लेकिन फिर मैंने आंखे जोर से मिच कर बंद ही रखी कि ये ख़्वाब सारे जल जाएं और इससे उठती चिंगारी इस पीपल के पेड़ को भी जला दे ताकि फिर कोई आशिक, कोई दीवाना इस पीपल की छाव में कोई ख़्वाब न देखे, ताकि फिर कोई ख़्वाब जलकर राख न बने।

  मैंने ख़्वाबों को जलकर राख बनने दिया, पीपल का पेड़ भी जला लेकिन भला प्रेम कहाँ मारने वाला है, जैसे पीपल के पेड़ को जन्म लेने के लिए किसी खास जगह या देख रेख की ज़रूर नहीं पड़ती और वह पनप जाता है प्रेम भी ऐसे ही पनपता है।
लोग ऐसे ही किसी दूसरे पेड़ की ठंडी छाव में प्रेम पनपने देंगे, ख़्वाब देखते रहेंगे और ऐसे ही ख़्वाब जलकर राख बनते रहेंगे।

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