पुस्तक समीक्षा : मुरकियाँ - शब्दों की।
लेखक : उपमा डागा पार्थ
प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन
सांगवान, रामघाट रोड, अलीगढ़ (यू पी) 201301,
ISBN: 978-93-90894-28-4
पुल...
सीमेंट के हों
या शब्दों के..
जोड़ते हैं।
कविता साहित्य की एक ऐसी विधा है जो मस्तिष्क से नहीं, मन से लिखी जाती है। साहित्य हमेशा से समाज का आईना रहा है और आगे भी नए पुराने सभी साहित्यकार अपनी रचनाओं से समाज को उसका चेहरा दिखाते रहेंगे। इसी को आगे बढ़ाते हुए "उपमा जी" की नही कविता संग्रह आई है "मुरकियाँ - शब्दों की"। कविताएं अक्सर रचनाकार के शब्द होते हैं लेकिन उन शब्दों में रचनाकार के एहसास साफ झलक रहे होते हैं। "मुरकियाँ" पढ़कर आपको भी महसूस होगा कि उपमा जी ने अपनी एहससात की कैसे व्याख्या की हैं। पुस्तक के दूसरे पृष्ठ पर ही "शब्द" शीर्षक से एक बेहतरीन कविता आपको पढ़कर रचनाकार के एहसास महसूस होंगे।
शब्द झड़ते हैं,
कविताओं से,
कभी लबों से,
कभी कलम से...
शाश्वत सत्य हैं शब्द...
बोले गए
लिखे गए
और अनकहे भी।
ऐसी ही इस पुस्तक में 91 कविताएं लिखी गई हैं जो लेखिका की एहसास बयान तो करती ही हैं; साथ ही कई कविताएं कटाक्ष भी करती हैं तो कुछ कविताओं में समाज में बुरी आदत मानने वाली बातों के बारे में भी लिखा गया है। जैसे एक कविता "सिगरेट और मैं" आप नीचे पढ़ें और खुद अंदाज़ा लगाएं।
छोटी होती सिगरेट का
आख़िरी कश...
वही छल्ले,
वही धुआं,
वही आ के आखिर में,
"कुछ और" की तलब,
वही राख का गिरना,
वही उस गिरने से,
कुछ जलने को बचाना,
वही उस गुबार में समा के,
फिर से वापिस,
इसी दुनिया में आना...
सिगरेट ने भी आखिर तक
अपनी फितरत न बदली,
क्यों वो हर बार मेरी तरह,
बनने की कोशिश है करती रहती।
लेखिका परिचय:
उपमा डागा पार्थ मूल रूप से अमृतसर, पंजाब से ताल्लुक रखती है। गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी से वाणिज्य में स्नातक और प्रशिक्षित कॉस्ट अकॉउंटेंट होते हुए भी उन्होंने अपने लिखने के जनून को प्राथमिकता देते हुए पत्रकारिता को ही पेशे के तौर पर अपनाया। उपमा, वर्तमान में पंजाब के प्रमुख समाचार पत्र अजीत के दिल्ली ब्यूरो में कार्यरत हैं और राष्ट्रीय राजनैतिक परिवेश, पंजाब से जुड़े मुद्दों और सामाजिक मामलों पे पैनी नजर रखती हैं। "मुरकियाँ" उनका पहला काव्य संग्रह है जिससे उन्होंने समाज में व्याप्त कई कुरीतियों की तरफ तो ध्यान आकृष्ट किया ही है, साथ ही साथ मानव हृदय के कई सूक्ष्म भावों को भी छुआ है।
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आपको ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए?
कविता प्रेमी के लिए ये पुस्तक एक अच्छी कविता संग्रह साबित होगी। अलग अलग विषयों पर लिखी कविताएं आपने मन को प्रभावित करती हैं। "मज़दूर" और "रोटी" जैसी कुछ कविताएं समाज के बहुत मार्मिक विषयों को उजागर करती हैं तो वहीं "बीते कल की बातें" और "सर्द मौसम" जैसी इसमें संलग्न कविताएं आपको प्रेम का स्पर्श समझती हैं। इस संग्रह में हर विषय की 110 कविताएं आपको ज़रूर प्रभावित करेंगी। हमे हर पुस्तक से कुछ न कुछ मिलता ज़रूर है।
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आपको किताब में क्या कमी लग सकती है?
मैं बहुत सी अलग अलग पुस्तकें पढ़ता हूं तब ये जरूर देखता हूं कि मुझे ज़रूर कुछ बातें या कुछ किरदार ऐसे दिखते हैं जो मुझे परेशान कर देते हैं। इस पुस्तक की कविताएं पढ़ते हुए मुझे कोई भी ऐसी कविता नही दिखी जिसके बारे में लिखूं कि उसके कारण से इस नही पढ़ा जाएं।
हर पाठक की अलग अलग पसंद होती है; तो हो सकता है कि किसी पाठक को कुछ कविताएं पसंद न आए लेकिन मैं पूरी तरह से इस बात से सहमत हूं की हर कविता अपने आप में पूर्ण होती है और हर तरह के अलग अलग पाठकों को भी इसकी अधिकतर कविताएं पसंद आएंगी।
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इस किताब की कुछ कविताएं जो मुझे अत्याधिक पसंद आयी...
१. चिड़िया
वो आ के
पूरे घर में
धूप की तरह
बिखर जाती है.
और मेरे कमरे की चुप
दूर किसी कोने में
बैठी निहारती है...
उसकी छोटी-छोटी बातों
की चहचहाहट।
सच ही कहते हैं शायद
बेटियाँ चिड़िया होती हैं...
२.खिड़कियाँ
खिड़कियाँ
कभी दावा नहीं करती
हवा से रूबरू करवाने का
किरणों की बोली समझाने का
या फिर बारिश की बूंदों से
मिलवाने का
पर हमेशा अपने खुलने के
इतजार में रहती हैं
कि तुम महसूस कर सको
वो सब
जो उसके बंद होने से
नहीं पहुँच पा रहा
तुम तक...
गुलशेर अहमद के द्वारा समीक्षा लिखी गई है।
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