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पुस्तक समीक्षा : गांधी चौक

लेखक : डॉ० आनंद कश्यप

प्रकाशक : हिन्द युग्म ब्लू

सी 31, सेक्टर20, नोएडा (यू पी) 201301,



डॉ० आनंद कश्यप ने अपने जीवन के अमूल्य जवानी के कुछ वर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं को समर्पित किया। जिससे वो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे विद्यार्थियों के परिथितियों को अच्छे से समझ सके। इसीलिए छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के गांधी चौक के आस-पास रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे परीक्षार्थियों के जनजीवन को ही अपने पहले उपन्यास में चित्रित करने का निर्णय किया और इसमें बहुत सफल भी रहें हैं। 


इस उपन्यास में प्रतियोगियों की कुंठा, हताशा, निराशा, संत्राष, घुटन एवम सफलता के पश्चात हर्षोल्लास की यात्रा को 'आनंद' जी ने बड़े सजीव रूप में चित्रण किया है। ऐसे किरदारों को गढ़ा है जो बिल्कुल सजीव लगते हैं। उनके दुखों से आपको भी दुख होता है और उनकी सफलताओं में आपको भी हर्ष मिलती है। 


इस उपन्यास में राजा, सूर्यकांत, नीलिमा, भीष्म सिंह और अश्वनी के साथ-साथ रामप्रसाद जैसे किरदारों के संघर्ष जीवन को बहुत प्रभावित तरह से उकेरा है और साथ ही सूर्यकांत और नीलिमा की खट्टी-मीठी प्रेम कहानी के छौंक से कहानी में और भी खुशबू आ जाती है। 


इस उपन्यास को पढ़ते हुए आँखों से आँसू भी आते हैं और आँसुओं के साथ चेहरे पर मुस्कान भी। आप पढ़ते-पढ़ते रोने भी लगेंगे और कहानी खत्म होते-होते चेहरे पर खूब मुस्कान भर आएगी। भीष्म सिंह की संघर्षमय जीवन को पढ़ते हुए मैं रोया हूँ और मैं कह सकता हूँ कि हर किसी को भीष्म सिंह के किरदार को पढ़ते हुए उससे प्यार हो जाएगा और ये किरदार आपको रुला भी सकता है।


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लेखक परिचय: 



डॉ. आनंद कुमार कश्यप बहमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व हैं। ये निरंतर लक्ष्य सिद्धी के लिए संघर्ष कर वर्तमान में सहायक प्राध्यापक के पद पर चयनित हुए हैं। अपने उपन्यास ‘गांधी चौक’ में एक ओर आनंद ने जहाँ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के दौरान संघर्षरत प्रतियोगियों की घुटन, संत्रास एवं असफलता के आँसुओं को शब्द देने का प्रयास किया है, तो वहीं दूसरी ओर सफलता के बाद आने वाली परेशानियों का भी उल्लेख किया है। यह उपन्यास प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए एक बेहतरीन मार्गदर्शक साबित होगा।


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आपको ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए?


यह उपन्यास छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के गांधी चौक के आस-पास रहने वाले छात्रों के जनजीवन पर लिखा गया है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले हर परीक्षार्थी के संघर्ष, समर्पण और सफलता की कहानी है ये 'गांधी चौक'। 


आपको ये किताब इस लिए भी पढ़ना चाहिए कि संघर्ष और समर्पण के बाद भी असफलता के बाद कैसे जीवन को आगे बढ़ाना है। क्योंकि यदि आप पूरी निष्ठा के साथ कहीं भी संघर्ष कर रहें हैं और फिर भी असफल हो रहे हैं इसका मतलब ये कतई नहीं कि आप असफल हैं। हर व्यक्ति के अंदर कोई न कोई प्रतिभा होती है। ये बात 'डॉ० कश्यप' ने रामप्रसाद के किरदार से बहुत सजीव रूप से चित्रण किया है। 


यदि आपने कभी अपने जीवन में किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की है या किसी भी परीक्षा की तैयारी की है या सिविल सर्विसेज की तैयारी में कभी लगे हैं तो ये कहानी बिल्कुल आपकी अपनी लगेगी। जब आप इस किताब को पढ़ेंगे तो एक प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के जीवन को समझ पाएंगे। ऐसे विद्यार्थियों के मानसिक तनाव को भी आप बहुत अच्छे से समझ पाएंगे।


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आपको किताब में क्या कमी लग सकती है?


किताब पढ़ते हुए इसमें नीलिमा और सूर्यकांत की प्रेम कहानी आपको शुरू में थोड़ी अजीब लग सकती हैं, जैसे कि इतनी समझ-बूझ के साथ भी सिर्फ एक गलतफहमी के बाद वो बिना बात किए कैसे अलग हो जाते हैं। राजा और सूर्यकांत की दोस्ती की शुरुआत थोड़ी अजीब लग सकती है। जैसे कि राजा को शुरू में तो बहुत लफंगे की तरह दिखाया गया है लेकिन फिर कहीं भी वो कुछ ऐसा नहीं करता है। और साथ ही एक बात कि सूर्यकांत इतने बड़े परिवार से ताल्लुक रखता है जिसके पिता का मुख्य मंत्री तक पारिवारिक संबद्ध होते हैं और इनके अलग-अलग दुश्मन हो सकते थे फिर भी वो बिलकुल आम लड़के का जीवन व्यतीत करता दिखाया गया हैं।


इस किताब की कुछ पंक्तियाँ बहुत पसंद आयी...


• कभी-कभी लगता है कि 'मैं हूँ न' और 'आई लव यू' के बीच द्वंद युद्ध होता होगा तो 'मैं हूँ न' ही जीतेगा। इन तीन शब्दों में ब्रह्मांड समाया है। इनमे आस्था है, विश्वास है कि मेरे पीछे भी कोई खड़ा है जो सब संभाल लेगा।


• भूख जीवन की सच्चाई है। भूख वह आग है, जिसके लपेट में आकर कानून की किताब भी जल जाती है। भूख व्यक्ति से कुछ भी करा सकता है।


• प्रेम की असफलता, प्रेमी को जीवन की असफलता लगने लगती है। कुछ प्रेमी जीवन की इस असफलता को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं। 


• प्रेम जीवन का चौराहा है, यदि एक ओर का रास्ता बंद है तो तीन अन्य रास्ते तो खुले ही रहते हैं। बार-बार का असफल प्रयास हमारे लिए सफलता का कोई-न-कोई नया द्वार अवश्य खोलता है।


• बच्चों की गलतियों पर माता पिता को डाँटना ज़रूर चाहिए। क्यों कि डाँट मनुष्य को सही दिशा में लेकर जाते है।




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