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पुस्तक समीक्षा : गुगली

लेखक : ज्ञानेश साहू 

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स, 1590 Madarsa Road, Kashmiri Gate, Delhi - 110 006,

Language ‏ : ‎ Hindi

Paperback ‏ : ‎ 144 pag

ISBN : ‎ 978-9389373615esdi


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जब मैंने ये किताब पढ़ते हुए समाप्त किया तब आख़री पन्ने पर लिखा था "सच बताना कहानी सुनकर अपने दिन याद आ गए ना?"


किताब पढ़ने के बाद कोई भी ये लाइन पढ़ कर कह ही नहीं सकता कि उसे उसकी स्कूल के जीवन की स्मृतियों से प्रेम नहीं और वो उन्हें याद नहीं कर रहा या वो अपने स्कूल के दोस्तों को याद नहीं करता। वो लोग बहुत खुशनसीब होते हैं जिनके दोस्त स्कूल के बाद कॉलेज में भी साथ रहते हैं और उससे अधिक खुशनसीब तो वो हैं जो कॉलेज के बाद भी कोई "स्टार्ट अप" करके या कुछ "व्यापार" करके एक साथ रहते हैं। क्योंकि दोस्तों के साथ खेलते हुए, पढ़ते हुए, काम करते हुए या खाली फोकट में बैठे ही कब समय गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता। और बिगड़ता काम भी इतना आसान हो जाता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं।


'गुगली' भी ऐसे ही कुछ दोस्तों की कहानी है जो 2007 के 'वर्ल्ड कप' से शुरू होती है। फिर ये पढ़ना बहुत दिलचस्प होगा कि कैसे इनका जीवन, सपना और भविष्य 2011 के "वर्ल्ड कप" से जुड़ जाता है। दोस्तों का एक साथ हॉस्पिटल में लगे टीवी पर वो मैच देखना जिससे, इनके सपने, उम्मीदें और भविष्य जुड़ा है, एक अलग ही रोमांच पैदा करता है और साथ ही आपको भावुक भी करता है। भावुक इस लिए कि किस कारण से इतना महत्वपूर्ण मैच वो हॉस्पिटल में देख रहे थे?


अगर हम स्कूल की बात करें और उसमे प्यार और दोस्ती ना हो तो ये हो ही नहीं सकता। "गुगली" में ख़ूब सारा प्यार है और अटूट दोस्ती का सम्बन्ध। प्यार को पा लेने की उम्मीद है और कुछ गलतियों के पश्चाताप के लिए एक साधना की तरह मेहनत भी है। किताब के शीर्षक से ही आपको पता चलता है कि इसमें ख़ूब सारा क्रिकेट होगा। जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे देश में क्रिकेट एक धर्म की तरह है और उसी धर्म की आस्था में विलीन मिलेंगे इस "गुगली" के किरदार।


"ज्ञानेश साहू" जी इससे पहले अपनी दो पुस्तकों से अपनी लेखनी का लोहा मनवा चुकें हैं। “Start a Start-Up From Start” (2017) और “Destiny: A Thrilling Love Story” (2019) लिख चुकें हैं और पाठकों के दिल में जगह बना चुके हैं। मेरे लिए ये किताब पढ़ना ऐसा रहा जैसे मैं फिर से अपने स्कूल में चला गया हूं। फिर से मुझे मेरे शिक्षकों की डांट और दुलार याद आने लगे।


लेखक परिचय:

ज्ञानेश साहू


स्टील सिटी भिलाई में जन्मे, पले-बढ़े, आईटी कम्पनी में कार्यरत ज्ञानेश साहू, को बचपन से ही यात्रा-डायरी लिखने का शौक था। वे कुछ-न-कुछ लिखते ही रहते हैं। गुगली उनका पहला हिन्दी उपन्यास है। दो और किताबें “Start a Start-Up From Start” (2017) और “Destiny: A Thrilling Love Story” (2019) लिख चुकें हैं।

आप इनसे यहाँ सम्पर्क कर सकते हैं: gyanesh20sahu@gmail.com


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आपको ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए?


प्रस्तुत कृति ‘ज्ञानेश’ जी की तीसरी किताब है। इसमें तो क्रिकेट है ही, तो जो क्रिकेट प्रेमी हैं उन्हें खूब पसंद आएगी लेकिन साथ ही साथ एक कच्ची लेकिन सच्छी प्रेम कहानी के परिपक्व होने की प्रक्रिया भी है। ये पढ़ना आपको पसंद आएगा कि इस प्रेम कहानी का अंत क्या है?


साथ ही इसमें आपको दोस्तों के बीच की छूट - पुट की लड़ाई, एक दूसरे की टांग खीचाई, एक दूसरे के साथ ग्रुप स्टडी, स्कूल के बाहर की तपरी, सब आपके अपने स्कूल के दिन याद दिलाएगी। साथ ही इस कहानी में दोस्तों के साथ हुए लड़ाई की पीड़ा और उसके पश्चाताप को भी पढ़ना बेहद भावुक कर सकता है। 


एक ख़ूबसूरत बात ये भी इस किताब को पढ़ने का कारण हो सकता है कि कैसे दोस्त के लिए, दोस्तों के सहयोग से किसी नए स्टार्ट अप की शुरुआत होती है और कैसे वो एक दूसरे को आगे बढ़ाते हैं। इस किताब में जैसे क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक एप्लिकेशन के बनवाने और फिर उस पर मेहनत करके उसका एक करोड से भी ज्यादा कि ब्रांड वैल्यू का बनाना भी बहुत रोमांचक लगता है।


दोस्ती, प्यार और क्रिकेट की ये गुगली आपको पसंद आएगी और आपको आपके स्मृतियों में इतनी अन्दर तक ले जाए कि शायद आप किताब ख़त्म करते ही अपने स्कूल के दोस्तों के नंबर्स ढूंढने शुरू कर दें।


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आपको किताब में क्या कमी लग सकती है?


किताब पढ़ने के बाद आपको अपने दिन याद आएंगे। इसके वजह से मैं कुछ भी कमी नहीं देखता लेकिन यदि। एक समीक्षक के तौर पर देखा जाए तो इसके मुख्य किरदार में "माहिरा परवीन" एक मुस्लिम परिवार की लड़की दिखाया गया है। ऐसे तो इस किताब में कहीं भी मुस्लिम और हिन्दू की बात की नहीं गई है लेकिन नाम से ही लोग मज़हब का पता लगाते है। तो अगर माहिरा मुस्लिम परिवार से है तो उसके पिता की तस्वीर पर हार का लगा होना थोड़ा अजीब लग सकता है क्यों कि मुस्लिम समुदाय में अमूमन कोई तस्वीर पर हार नहीं चढ़ते।


दूसरा मुझे थोड़ा ये अजीब लगा पढ़कर की 17-18 वर्ष के आयु के बच्चे इतने परिपक्व कैसे हो सकते हैं कि किसी छोटे से गम को, गलतियों को, या फिर असफलता को बर्दाश्त ना कर सके और एक बंजारा या एक साधुवाद अपना ले। जैसे 12वीं की परीक्षा के बाद योगेश और आकाश बिना किसी को कुछ बताए भाग जाते हैं। 


लेकिन आज कल की परिस्थितियों को देख कर जैसे 10वीं या 12वीं या किसी ITI जैसे परीक्षा के पास ना करने के दबाव से आत्महत्या भी कर लेते हैं। तो हमें मानना पड़ेगा कि लेखक ने बहुत दूर तक प्रहार किया है।


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इस किताब की कुछ पंक्तियाँ बहुत पसंद आयी...


• कच्ची उम्र का प्यार भले ही सच्चा हो, लेकिन पक्का नहीं होता।

• भारत में क्रिकेट एक धर्म है और उसका जितना एक त्यौहार। जिसमें सभी धर्मों के लोग साथ मिलकर इस त्यौहार को मानते हैं।

• मदद करके सबके दिल में जगह बनाई जा सकती है।

• दुनिया में गम सिर्फ उस बात का करना चाहिए, जिसे वापस ना पाया जा सके और बाकी के गम तो सिर्फ अपनी नाकामयाबियों के छिपाने के बहाने हैं।

• दुनिया में खून के रिश्ते के बाद अगर किसी रिश्ते को अहमियत दी जाती है तो वो "दोस्ती" है।

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