'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> मानव के लिए कविता क्या है?

 




हम जितने होते हैं वो हमें हमसे कहीं ज़्यादा दिखाती है। कभी एक गुथे पड़े जीवन को कलात्मक कर देती है तो कभी उसके कारण हमें डामर की सड़क के नीचे पगडंडियों का धड़कना सुनाई देने लगता है। वह कविता ही है जो छल को जीवन में पिरोती है और हमें पहली बार अपने ही भीतर बैठा वह व्यक्ति नज़र आता है जो समय और जगह से परे, किसी समानांतर चले आ रहे संसार का हिस्सा है। कविता वो पुल बन जाती है जिसमें हम बहुत आराम से दोनों संसार में विचरण करने लगते हैं। हमें अपनी ही दृष्टि पर यक़ीन नहीं होता, हम अपने ही नीरस संसार को अब इतने अलग और सूक्ष्म तरीक़े से देखने लगते हैं कि हर बात हमारा मनोरंजन करती नज़र आने लगती है। 

मानव कौल

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क्या किसी कवि को कविता के उसके जीवन में प्रवेश की भनक मिल जाती है?

बचपन की आँखें एकदम अलग होती हैं, जहाँ से संसार ठीक वैसा नहीं दिखता जैसा घट रहा होता है। आपके बड़े होने में आपकी चोरियाँ और आपका ठगा जाना उन आँखों को उनकी पगडंडियों से निकालकर मुख्य सड़क पर लाकर खड़ा कर देते हैं। मुझे लगता है कि हर बच्चे के इस संसार को देखने की आँखें कवि की आँखें होती हैं। बड़े होने पर, कुछ लोग मुख्य सड़क पर चलते हुए अपनी पगडंडी की तरफ़ मुड़ जाते हैं और कुछ लोग पूरा जीवन उस मुख्य सड़क के नीचे धड़क रही पगडंडी को सहते रहते हैं। कविता कभी प्रवेश नहीं करती है। वह रहती है हम सबमें। उसका होना कभी हमें दिख जाता है और कभी हम दूसरे के लिखे में अपनी कविता जी लेते हैं, जिसपर चलने की पगडंडियाँ हम बहुत पहले छोड़ आए थे।

 



कविता ने मानव को कितना बदला है?

मुझे कविता ने बदला नहीं है मुझे कविता ने बचाया है। कविता के ही कारण मैं हमेशा से उस संसार का हिस्सा बना रहा था जिसकी यह संसार कल्पना है।


मानव के लिए कविता क्या है?

मेरे लिए सामान्य से चले आ रहे जीवन में छोटे-छोटे चमत्कारों का हमारे अगल-बग़ल में फूटना कविता है। जैसे ठीक इस वाक्य को लिखते हुए एक तितली का मेरी बालकनी में आकर बैठ जाना। शायद वो नहीं आई है, शायद मैं उसके होने की जगह ख़ाली रखता आया हूँ कब से, में कविता उड़कर आई है। अब अगर इस तितली के रंगों का ज़िक्र करने मैं बैठ जाऊँ तो मुझे नहीं पता कि इस वक्त मैं कविता की बात कर रहा होऊँगा या तितली की।

 

 



आपके समूचे लेखन को कविता की ही तमाम शक्लों के तरह देख सकते हैं?

मुझे यूँ लगता है कि एक भीड़ भरा शहर है और उसकी दूसरी तरफ़ घने जंगल का विस्तार फैला हुआ है। मुझे, शहर से जंगल को पार करने के बीच में दरवाज़ों की क़तार नज़र आती है। हर दरवाज़े पर प्रवेश वर्जित हैलिखा हुआ है, जो असल में मेरा जंगल के प्रति आकर्षण दोगुना कर देता है। हर बार बंद दरवाज़ों की चाबी तलाशने में एक कविता हाथ लगती है जो कौन-सा दरवाज़ा खोलेगी इसका किसी को पता नहीं होता। मैं दरवाज़ों की क़तारों के सामने अपनी कविता की चाबी लिए प्रयासरत रहता हूँ। किन्हीं अच्छे क्षणों में दरवाज़ा खुलता है। कभी दरवाज़े की दूसरी तरफ़ एक विशाल अरण्य अपने भीतर उपन्यास लिए मिलता है तो कभी एक कहानी हाथ लगती है। पर मैं वापिस आते वक़्त जंगल से नए कविताओं के फूलों को चुनने से बाज नहीं आता हूँ। यही वो फूल हैं जो दूसरे दरवाज़ों को खोलने में मदद करते हैं।

 

मानव के लिए कविता यथार्थ है या स्वप्न? या स्वप्न का दरवाज़ा?

मेरे जीवन में कविता मुझे रोज़ के जीने में घुली-मिली मिलती है। वो हर उस पुराने क़मीज़ या फटी हुई जींस की जेब में पड़ी मिलती है जिसे बहाने-बहाने से मैं लगातार पहने रहता हूँ।

 

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About the Author

मानव कौल के लिए लेखन आनंद की यात्रा रहा है। मानव ने लिखने के समय में ख़ुद को सबसे ज़्यादा सुरक्षित महसूस किया है। मानव ने लिखने की शुरुआत 20 साल पहले की थी। शुरुआत कविता से हुई। इस कविता-संग्रह, जोकि उनकी सातवीं किताब है, में मानव का पिछले 20 सालों का लिखा शामिल है। बीते 4 सालों में मानव ने बहुत सघन लेखन किया है, जो छह किताबोंठीक तुम्हारे पीछे’, ‘प्रेम कबूतर’, ‘तुम्हारे बारे में’, ‘बहुत दूर, कितना दूर होता है’, ‘चलता-फिरता प्रेत और अंतिमा के रूप में पाठकों के दिल में घर चुका है।




नोट : इस लेख की सारी जानकारी "हिन्द युग्म" द्वारा अमेज़न डॉट इन पर लिखे गए लेख से ली गयी है और "मानव जी" की तस्वीरें भी अमेज़न डॉट इन से ही ली गयी है

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