सर्वेश्वर दयाल सक्सेना |
आज हम आपके समक्ष ला रहे हैं एक बहुत ही खुबसूरत और बेहतरीन कविता जो "सर्वेश्वर दयाल सक्सेना" के द्वारा लिखी गयी है. आप पूरी कविता यहाँ निचे पढ़ें.
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मैने कब कहा
कोई मेरे साथ चले
चाहा ज़रूर!
अक्सर दरख़्तों के लिए
जूते सिलवा लाया
और उनके पास खड़ा रहा,
वो अपनी हरियाली
अपने फूल फूल पर इतराते
अपनी चिड़ियों में उलझे रहे
मैं आगे बढ़ गया
अपने पैरों को
उनकी तरह
जाड़ों में नहीं बदल पाया
यह जानते हुए भी
कि आगे बढ़ना
निरन्तर कुछ खोते जाना
और अकेले होते जाना है
मैं यहाँ तक आ गया हूँ
जहां दरख़्तों की लंबी छायाएँ
मुझे घेरे हुए है
किसी साथ के
या डूबते सूरज के कारण
मुझे नहीं मालूम
मुझे
और आगे जाना है
कोई मेरे साथ चले
मैने कब कहा
चाहा ज़रूर!
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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