आज अर्श सुल्तानपुरी भाई की फेसबुक वॉल पर ये लेख पढ़ रहा था, जहां उन्होंने "लुतुफुल्लाह ख़ान आर्काइव्ज़ " को साभार व्यक्त करते हुवे इसे पोस्ट किया था।मु लगा कि इसे आप सभी के सामने पेश किया जाना चाहिए,
हालांकि इस यहां दो अलग मुल्क, पाकिस्तान और यूरोप की बात हुवी है लेकिन ये हकीक़त हमारे हिंदुस्तान की भी हैं।
नए लिखने वाले, अदब से जुड़ने वालों को कितनी हिम्मत और इज़्ज़त आफ़ज़ाई की जाती है, ये किसी से भी छुपी नहीं है। मैं भी इस लेख को पढ़ कर बहुत मुतासिर हुआ हूं इसी लिए आप सभी के जेरे नज़र लाया हूं।
इसे मुकम्मल पढ़ने के बाद आप भी अगर अपनी बातें रख सकते हैं, बहुत इस्तकबाल है सभी का। अब नीचे लेख पढ़ें।
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साक़ी फ़ारूक़ी साहब से इंटरव्यू का किस्सा।
साक़ी फ़ारूक़ी साहब से इंटरव्यू में पूछा गया, कि आप 12 साल से यूरोप में क़याम-पज़ीर हैं। आप को यहाँ (पकिस्तान) और वहाँ के अदबी रवैय्ये में क्या फ़र्क़ महसूस होता है।
उन्होंने जवाब दिया, कोई फ़र्क़ नहीं है सिवाए एक बुनियादी फ़र्क़ के। यूरोप में जब कोई नया अदीब पैदा होता है तो पुराने से पुराने लिखने वाला उसे नज़र अंदाज़ नहीं करते। लेकिन हमारे यहाँ के पुराने लिखने वाले अगर किसी नए अदीब के कलाम को पढ़ें भी, तो उस पर बात करने में शर्माते हैं और एक हतक महसूस करते हैं। हालांकि ये एक बहुत क़ातिल बात है। वहाँ तो ऐसा होता है कि अगर किसी ने कुछ लिखा दिया, बकवास भी कर दी तो उस को नज़र-अंदाज़ करने की जगह उस पर बातें होती हैं। मसलन एक साहब ने अमेरिका की एक मैगजीन पोएट्री में एक नज़्म लिखी, जिस में 'I love you' लिखा था 18-20 बार। हालांकि नज़्म की कोई अदबी हैसियत नहीं थी लेकिन लोगों ने उस पर बात की। उस पर W.H. Auden साहब ने भी लिखा कि इस आदमी के ज़हन के पीछे क्या है।
तो मुझे इस बात का दुःख हुआ। लोग नए लिखने वालों से या तो डरते हैं, या उन्हें अपने ऊपर ए'तिमाद नहीं रहता। या फिर उन्होंने कुछ कह दिया तो उन की हतक हो जाएगी। मेरे ख़याल से ये ख़त्म होना चाहिए।
Good
ReplyDeleteThank you so much,, khushi huwi ye appko pasand aaya!!
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