'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> हिन्दुस्तान और आज़ाद कश्मीर

हिन्दुस्तान और आज़ाद कश्मीर।



कश्मीर हिन्दुस्तान का अभिन्न अंग रहा है लेकिन जब हिन्दुस्तान आजाद हुआ और ये दो मुल्कों में बट गया तब सबसे ज़्यादा किसी को मुसीबतों को सहना पड़ा, वो कश्मीरी थें और कुछ दिनों बाद उससे भी ज़्यादा परेशानियाँ सहा, अपनों घरों को तबाह होते हुवे अपनी आंखों से देखा, वो कश्मीरी पंडित थे।



मैं जो तहरीर लिख रहा हूँ इससे बहुत सारे लोग शायद मुत्तफिक ना होंगे और इस को देश के ख़िलाफ़ का कोई तहरीर भी कह दें लेकिन ये सिर्फ मेरा एक ख्याल है जो आपके सामने मैं रख रहा हूं जो कि मुझे बहुत ज़्यादा ज़रूरी लगता है।

किसी को उसके घर से निकलना या उसके घर को जलाना, उनके परिवर के लोगों के साथ बुरे बर्ताव करना, ज़्यादती करना बहुत ग़लत है और ये और भी ज़्यादा ग़लत बल्कि गुनाह हो जाता है जब किसी को सिर्फ़ उसके मज़हब या जाति की वजह से ये सब सहना पड़े।

जबसे दोनों मुल्क आज़ाद हुए हैं दोनों की बीच कई बार कश्मीर को लेकर जंग हो चुकी हैं और नतीजा क्या निकला है ____ सिर्फ़ लोगों और सिपाहियों की मौतें और शहादतें।

हज़ारों कश्मीरी कभी अपनी आज़ादी पाकिस्तान से मांगते हैं तो कभी कुछ कश्मीरी हिन्दुस्तान से। हिन्दुस्तान कहता है कि कश्मीर हमारा है और इसके लिए 72 साल से जंगे होती आ रही है। सिपाही शहीद होते रहें हैं लेकिन आज तक कोई भी जायज़ फ़ैसला नहीं हो सका है। और यही बात हमेशा से पाकिस्तान में भी होती रही है।

दोनों मुल्कों के लोग अमन पसन्द हैं। हिन्दुस्तानी कश्मीरी भी अपने यहाँ ख़ुश रहना चाहते है और पाकिस्तानी अपने घरों में अमन चाहते है।

कश्मीर अपना मुस्तकबिल ख़ुद बनाना चाहता है और ये हक इन्हें देना चाहिए लेकिन ये साफ व शफ्फाफ दिखता है इन 72 सालों में दोनों देशों की सियासतपसंद लोगों ने इस मसले को उलझा कर रखा है और कश्मीर के जलते घरों की आग पर अपनी सियासत की रोटियाँ सकते आएँ हैं।

हमे और हमारे पड़ोसी मुल्क को चाहिए कि कश्मीर को अपना मुस्तकबिल ख़ुद तय करने दे। जैसा कि हमारे मुल्क के बटवारेे के वक़्त ये लोगों पर छोड़ा गया था कि वो ख़ुद तय करें कि वो हिंदुस्तान में रहना चाहते हैं या फिर मुसलमानों के लिए बने पाकिस्तान जैसे मुल्क में। लोगों ने अपने हिसाब से तय किया कि वो कहाँ रहेंगे।

ज़्यादातर मुसलमानों ने हिन्दुस्तान से हिजरत करके पाकिस्तान में अपना हुजरा और घर बना लिया। और बहुत सारे मुसलमानों ने हिन्दुस्तान की मिट्टी में पैदा होकर यहीं की मिट्टी में दफन होना क़ुबूल किया।

जब हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ तब कश्मीर की रियासत हिन्दुस्तान की गणतंत्र में शामिल होना चाहती थी लेकिन कश्मीर में मुसलमानों की अक्सरियत की वजह से पाकिस्तान इसे अपने मुल्क में जोड़ना चाहता था और यही 1948 ई• की हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की जंग की वज़ह बनी।

कश्मीर हमेशा से ही दोनों मुल्कों के बीच पिसता आया है लेकिन अब हमे ज़रूरत है कि इसपर ज़्यादा ख़्याल किया जाए और ये भी कि इसकी वजह से हर रोज़ की शहादत को ख़तम किया जाए। ये पूरी तरह कश्मीरियों पर छोड़ देना चाहिए कि वो किस मुल्क़ के साथ रहना चाहते हैं और अगर कश्मीर ख़ुद आज़ाद मुल्क़ चाहता है तो उनके फैसलों की इज्ज़त करके उनकी मदद करनी चाहिए।

इसी बीच हमे ये सबसे ज़्यादा ख़्याल रखना चाहिए कि जैसे हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बटवारें के वक़्त लोगों के धड़ धड़ मरने कि खबर अाई थी वो नौबत नहीं आए। और बहुत सलीके से इस मसले को सुलझाया जाए।

कश्मीर भी आज़ाद रह सकता है, इस मौजुंँ पर हमारे बुजुर्गों के ख़्याल सुनने चाहिए और जो हक़ हो, सच हो और जिस फैसले से इन्सानियत ज़िन्दा हो उस पर अमल करना चाहिए।

©Gulsher Ahmad

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