ये काम नहीं है बुजदिल का।
अल-सुबह, बरसात-ए-शबनम में।
मेरा ये वजूद आम हुआ,
"अहमद" मेरा नाम हुआ।
कुछ सालों बाद मेरे दिल में,
एक बीज मोहब्बत की बोई गई,
वो बीज तनावर दरख़्त हुआ,
मेरा काम, मोहब्बत हर वक़्त हुआ।
एक उम्र में मैंने ये जाना,
मेरे दिल की ख़ास मोहब्बत है।
फिर इस दिल को हर काम अच्छा लगता था,
उस वक़्त इसे झूठा भी सच्चा लगता था।
बस अब इकरार-ए-मोहब्बत करनी थी,
ये दुनिया उस पर निछावर करनी थी।
कुछ साल गवाया था मैंने,
इकरार-ए-मोहब्बत करने में।
फिर वो दिन भी करीब आ ही गया,
मुझे ख़ुद ही उसे रुख़सत करना था।
अब आह ही बाक़ी थी दिल में,
अब ये बात भी रंज-ए-दिल की थी।
फिर मैंने ये ऐलान किया,
ये काम नहीं है बुजदिल का।
©~"अहमद"
Behtareen
ReplyDeleteThank you so much
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