"तब्लीगी जमा'अत"
हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र है, सभी को अपने तरीके से बोलने, खाने, रहने, पहनने और अलग-अलग संस्कृति और मज़हबों को मानने और फॉलो करने का अधिकार है,
कोई भी मज़हब ये नहीं सिखाता कि अपने मज़हब की हिफ़ाज़त करने के लिए किसी इंसान की जान ले लो या किसी की जान जोख़िम में डालो।
कुछ बुरे लोगों की वज़ह से, जहां भी मुसलमान की बात आती है वहां उन्हें ज़ुर्म और ज़ुल्म से जोड़ दिया जाता है जबकि ऐसा नहीं है। हज़ारों मुसलमान इस बात के गवाह हैं कि वो हिन्दुस्तान की गंगा-ज़मनी तहज़ीब को कायम रखना चाहते है और वो रख भी रहें हैं।
"सलमान ज़फ़र" भाई का एक शेर याद आता है कि....
सख़्ती थोड़ी लाज़िम है, पर पत्थर होना ठीक नहीं।
हिन्दू मुस्लिम ठीक है लेकिन कट्टर होना ठीक नहीं।
मैं भी "मुसलमान" हूँ और इस बात का मुझे फख्र है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं कि मैं वैसे ज़ाहिल मुसलमानों का समर्थन करूंगा जो बस सुनी सुनाई बातों से नफ़रत की आग को हवा देते हैं,
तब्लीगी जमा'अत के केस की आलोचना करने वालों के साथ मैं भी खड़ा हूं, जांच करनी चाहिए लेकिन इस वजह से पूरे "मुस्लिम कम्युनिटी" को बुरा नहीं कहा जा सकता, इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है।
जो काम अपराध है, जुर्म है उसे किसी भी मज़हब की आड़ में छुपाया नहीं जा सकता। जिसने भी अपने मज़हब की आड़ में छिप कर देश के संविधान को तोड़ा है उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए।
जो ग़लत है उसे किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता लेकिन हमें हर पहलू को देखना पड़ेगा। किसी गुनाह में कोई पूरी कम्युनिटी ज़िम्मेदार नहीं होती, और यहां तो लोग राजनीति की चाल चलने ही बैठे हैं, उन्हें इंतज़ार हैं कि कब कोई मज़हबी बात सामने आए और वो अपनी चाल चलें और राजनीति की रोटियां सेंक सके, लेकिन हमें ये तय करना है कि हमारे मुल्क में गंगा ज़मनी-तहज़ीब बनी रहे।
~"अहमद"
हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र है, सभी को अपने तरीके से बोलने, खाने, रहने, पहनने और अलग-अलग संस्कृति और मज़हबों को मानने और फॉलो करने का अधिकार है,
कोई भी मज़हब ये नहीं सिखाता कि अपने मज़हब की हिफ़ाज़त करने के लिए किसी इंसान की जान ले लो या किसी की जान जोख़िम में डालो।
कुछ बुरे लोगों की वज़ह से, जहां भी मुसलमान की बात आती है वहां उन्हें ज़ुर्म और ज़ुल्म से जोड़ दिया जाता है जबकि ऐसा नहीं है। हज़ारों मुसलमान इस बात के गवाह हैं कि वो हिन्दुस्तान की गंगा-ज़मनी तहज़ीब को कायम रखना चाहते है और वो रख भी रहें हैं।
"सलमान ज़फ़र" भाई का एक शेर याद आता है कि....
सख़्ती थोड़ी लाज़िम है, पर पत्थर होना ठीक नहीं।
हिन्दू मुस्लिम ठीक है लेकिन कट्टर होना ठीक नहीं।
मैं भी "मुसलमान" हूँ और इस बात का मुझे फख्र है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं कि मैं वैसे ज़ाहिल मुसलमानों का समर्थन करूंगा जो बस सुनी सुनाई बातों से नफ़रत की आग को हवा देते हैं,
तब्लीगी जमा'अत के केस की आलोचना करने वालों के साथ मैं भी खड़ा हूं, जांच करनी चाहिए लेकिन इस वजह से पूरे "मुस्लिम कम्युनिटी" को बुरा नहीं कहा जा सकता, इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है।
जो काम अपराध है, जुर्म है उसे किसी भी मज़हब की आड़ में छुपाया नहीं जा सकता। जिसने भी अपने मज़हब की आड़ में छिप कर देश के संविधान को तोड़ा है उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए।
जो ग़लत है उसे किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता लेकिन हमें हर पहलू को देखना पड़ेगा। किसी गुनाह में कोई पूरी कम्युनिटी ज़िम्मेदार नहीं होती, और यहां तो लोग राजनीति की चाल चलने ही बैठे हैं, उन्हें इंतज़ार हैं कि कब कोई मज़हबी बात सामने आए और वो अपनी चाल चलें और राजनीति की रोटियां सेंक सके, लेकिन हमें ये तय करना है कि हमारे मुल्क में गंगा ज़मनी-तहज़ीब बनी रहे।
~"अहमद"
सख़्ती थोड़ी लाज़िम है, पर पत्थर होना ठीक नहीं।
ReplyDeleteहिन्दू मुस्लिम ठीक है लेकिन कट्टर होना ठीक नहीं।
totally I agreed with u 👍👌👌
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