'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> "कूचे का मुसाफ़िर"

"कूचे का मुसाफ़िर"

मैं अपने ख्वाब और उम्मीद के दरम्यान में जी रहा था, इसी दरम्यान में तुम्हारे कूचे से गुजर हुआ, तब तुम अपने घर की दहलीज पार करके अपने स्कूल के लिए निकल रही थी।
स्कूल इसलिए कि, तुम्हारे लिबास और पीठ पर लटकता बैग चीख रहा था कि तुम स्कूल जा रही हो।
      
          तुम और मैं दोनों ने एक दूसरे को देखा, तुम तो बस मुझे देख कर अपने कदम आगे बढ़ा ली और मैं भी थोड़ी मचलते दिल के साथ आगे बढ़ गया, जब तुम्हारे कूचे का दायरा ख़तम हो गया तब मुझे इस बात का पता चला कि मेरा दिल तो उसी गली, उसी कूचे में रह गया।
मैं इसकी वजह जानने की कोशिश में लग गया, और ये बात पता करना मेरे लिए तो बहुत आसान था, कि क्यों मेरे साथ ऐसा हुआ है।
मेरा दिल, यदि, वहीं तुम्हारे कूचे के किसी दरिचे, या किसी एक कोने में मिट्टी में लिपटा मिल जाए तो ये कुछ बुरा नहीं होगा, क्यों कि तुम्हारी उन गहरी झील सी आँखों ने उसे वहीं अपने साथ रोक लिया था, और इस बात का मुझे इल्म भी ना हो सका था।
        तुम्हारी बड़ी और गहरी आँखों ने, चौकोर से चेहरे पर बनी दो ख़ूबसूरत आँखे, जो तुम्हारी चौड़ी ललाट को और खूबसूरत बनाती हैं और इनके पास से निकलती नुकीली नाक जो दोनों आंखों की ख़ूबसूरती बढ़ाती हैं, वहीं आँखे जिन्हें कोई भी देख ले तो उसमे डूब जाना चाहे, हर वो दिलदार आशिक इन भूरे रंग की गहरी आंखों को देख कर मदहोश होना चाहे,
गर कोई मयकश तुम्हारी आँखों को देख ले तो उसकी मयखाने जाने की ज़रूरत ख़त्म हो जाए।
मैं ना चाहकर भी अब तुम्हारे कूचे का मुसाफिर हूं, मैं निकलता कहीं और हूँ और उसी कूचे में पहुंच जाता हूँ। वो तुम्हारी गली और कूचे का दायरा अब मेरी ख्वाब और उम्मीद का दायरा है,, दिली सुकून का दायरा है,
दिल अब हमेशा दुआ करता है कि उन आँखों का दीदार हो, तुम्हारा दीदार हो, और इस बिखर चुके दिल को थोड़ा सुकून हासिल हो।


~"अहमद"

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