मुझे याद नहीं कब से कहानियाँ लिखने लगा लेकिन अपनी मस्तिष्क की मासपेशियों पर ज़ोर देता हूँ तो याद आता है कि मेरी इस पहली किताब "रेलवे स्टेशन की कुर्सी" की पहली कहानी 2015 के नवंबर-दिसंबर की सर्दियों की एक रात में 'झाँसी से भोपाल' जाने के लिए झाँसी जंक्शन पर गाड़ी का इंतज़ार करते हुए ख्याल आया था।
फिर कहानी को कई बार Rewrite किया, लिखना मिटाना चलता रहा और फिर इसी तरह अलग-अलग परिस्थितियों और अनुभवों से दूसरी, तीसरी और अन्य कहानियों ने जन्म लिया। हर कहानी लिखने के कुछ महीनों बाद लगता था कि इसके किरदार कुछ और परिपक्व हो सकते है और फिर काम ख़ुद बढ़ जाता और लिखना जारी रहा।
कल जब किताब मेरे पास पहुँची और जब मैंने किताब अपनी हाथो में लिया तो थोड़ा सा भावुक हो गया। किताब की सात कहानियाँ लिख दी लेकिन जब किताब हाथ में आयी तो मैंने जो महसूस किया वो लिख पाना थोड़ा मुश्किल काम है।
आपसे आग्रह है कि किताब आप पढ़ें। पढ़ने के बाद जो भी अनुभव हो, ज़रूर बताएं।
किताब अमेज़न पर उपलब्ध है। आप यहां से प्राप्त कर सकते हैं: BUY ON AMAZON
Post a Comment