किताब :- उफ़्फ़ कोलकाता।
लेखक:- सत्य व्यास
प्रकाशक:- हिन्द युग्म
सी- 31, सेक्टर 20, नोएडा ( उ• प्र• ) - 201301
फ़ोन नंबर :- +91-120-4374046
प्रकाशन वर्ष:- दिसंबर 2020
मूल्य:- 150/-
ISBN:- 978-81-946538-3-7
उपन्यास 'उफ़्फ़ कोलकाता' सत्य व्यास जी की पांचवीं किताब है। इससे पहले उन्होंने चार किताबें बनारस टाॅकीज़, दिल्ली दरबार, चौरासी और बागी बलिया लिख चुके हैं।
उपन्यास हॉरर जानर में हास्य के साथ लिखा गया है। मतलब की जब किताब आप पढ़ेंगे तो डर से अपनी पाव को अपनी कम्बल में खींच लेंगे और उसी कम्बल में हंसते हुवे कब आपका पैर फिर बाहर आ जाएगा आपको पता नहीं चलेगा। आप जब ये किताब पढ़ेंगे तब डरते - डरते हसेंगे और हंसते - हंसते डरेंगे।
किताब की यहीं खासियत रही है कि आखिर आखिर तक आपको बांधे रखती है। हर चैप्टर में आपको डरते हुवे हसीं आएगी अगर नहीं आयी तो "आपके जज्बात को सलाम"।
सत्य व्यास जी की एक खासियत और भी रही है कि कहानियों में दोस्त और हॉस्टल तो ज़रूर ही रहता है। ये कहानी भी तीन दोस्तों और दो भूत के बीच बुनी गई है। मोहिनी जिसे लड़की समझ कर सिद्धार्थ पीछा करता है और वो हमेशा कब्रिस्तान और शमशान में ही मिलती है। तो ये पढ़ना भी एक अलग अनुभव ही रहा और आपको भी रहेगा कि क्या सच में सिद्धार्थ जिस मोहिनी को लड़की समझ कर डेट कर रहा है वो सच में लड़की है या वहीं भूत है या कोई और है। किताब में देशी मुहावरे और मनोरंजक संवाद का बेहतरीन इस्तेमाल हुआ है। यह किताब आपको भरपूर हंँसाएगी भी और डराएगी भी।
इसमें सबसे अधिक ये भी पसंद आया है कि कैसे दोस्त अच्छे बुरे हालात में साथ रहते हैं और दोस्तों के रहते हुवे हम कैसे भी हालत को सम्भाल सकते हैं। और साथ में ही आप हिन्दी पढ़ते पढ़ते कुछ ऊर्दू भी सीख जायेंगे।
क्यों पढ़ें?
यदि आपको दोस्ती जैसे एहसास पर विश्वास है और कॉलेज के हॉस्टल की ज़िन्दगी को फिर एक बार महसूस करना चाहते है तो ये किताब आपके लिए ही है।
यदि आप भी किसी लड़की के प्यार में पड़ कर सब कुछ भूल गए थे तो ये किताब पढ़ कर फिर से वो पल जी सकते हैं।
हमेशा से डर इंसान पर हावी रहा है। हर कोई अचानक से हुई घटनाओं से डर जाता है ये मनुष्य की प्रवृति होती है। वो भी आप इस किताब में देख सकते हैं।
क्या बुरा लग सकता है?
शायद कहानी की लेंथ आपको थोड़ी उकता दे। ऐसा लगने लगे कि बस अब जल्दी से ये सारी पहेलियाँ सुलझ जाए। बाकी सब लोगों के अलग अलग विचार हैं।
आखिर में बस ये कहूँगा कि किताब पढ़ते पढ़ते कभी आपको ये नहीं लगेगा कि गलत ही ये किताब उठाया है। जब किताब ख़त्म होगी तो दिमाग ऐसे सत्य व्यास जी का कॉन्टेक्ट नम्बर खोजने लगेंगे।
तो अपने "जज़्बात को सलाम" कीजिए और पढ़ डालिए पूरी की पूरी किताब।
इस पुस्तक के कुछ पंक्तियाँ जो मुझे बहुत अधिक पसंद आयी-
"प्रेम असंभव में भी संभावना तलाश लेने का योग है, अंधविश्वास मूर्खता है और प्रेम सबसे प्रगाढ़ अंधविश्वास||"
"सपनों के साथ अच्छी और बुरी दोनों बात यह है कि उसे खत्म हो जाना होता है|"
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