'https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js'/> बुर्के वाली लड़की : नौजवान परी सी ख़ूबसूरत, चाँद सी लड़की।

 


आम तौर पर हर शख़्स की यही ख़्वाहिश रहती है कि उसका ताल्लुक किसी ह़सीन लड़की से रहे। हर शख़्स यही चाहता है की आने वाली ज़िन्दगी जिस लड़की के साथ भी गुजारी जाए वो नई ज़माने की और नए ख़्यालात वाली हो। अच्छी खासी डिग्री वाली हो। लेकिन 'शान' ऐसा नहीं था। 


शान - एक नौजवान लड़का, अच्छी कद काठी, गाठी बदन, चौड़ी छाती, बहुत लंबे नहीं लेकिन बड़े बड़े बाल जो पीछे गिरा कर रखता था, गोरा चमकता हुआ चेहरा, चौड़ी पेशानी। एक बहुत ख़ूबसूरत नौजवान, उसकी पसन्द थोड़ी मुख़्तलीफ थी। उसे आज के ज़माने की मार्डन लड़कियाँ कुछ खासा अच्छी नहीं लगती थी, मतलब उसे पर्दा करने वाली लड़कीयाँ पसंद थीं। वह हमेशा से ख़्वाहिश मन्द था कि वह किसी ऐसी खातून के साथ ज़िन्दगी बसर करे जो बा-पर्दा हो, बा-ह़या हो। तहजीब वाली हो। शक़्ल-सुरत से उसको कोई मतलब नहीं था, क्योंकि वह जानता था कि वह लड़की जिसमें ये सारी खुबियाँ हों वह हर तरीक़े से खुबसुरत लगती है। 


आपकी खुबसुरती का पता आपकी चेहरे के रंगत से नहीं बल्कि आप के अख़्लाक से चलता है। शान हमेशा ऐसी ही किसी लड़की की तलाश में रहता। वो मन्डेरा गाँव का रहने वाला था। 12वीं की पढ़ाई पूरी कर चूका था, और अब आगे की पढ़ाई करना चाहता था। आगे की पढ़ाई के लिए वह अपने गाँव से बाहर एक छोटे से शहर जमालपुर आ गया जो उसके गाँव से 6-7 घंटे की दूरी पर था। उसको लिखने का शौक था, हमेशा अफ़्साने, अश्आर वगैरह लिखता रहता। वो अभी बहुत कम उम्र का था लेकिन बहुत ज़हीन था। उसके लिखे मज़मून कई दफा अखबारों में और रसालों छप चुके थे, इस वजह से उसकी मुहल्ले में बड़ा अदब होता था। हर किसी से शान खुशी से मिलता, सबसे मुहब्बत करने वाला ये लड़का अच्छे अख़्लाक की वजह से जाना जाता था। वहाँ के लोग उसकी मिसाल देकर अपने बच्चों को उसके जैसा बनने को कहतें। जब कभी शान को ये बात पता चलती तो वह कुछ नहीं बोलता सिर्फ मुस्कुरा देता। म_आशरे में उसकी बहुत इज़्ज़त थी और वो बहुत शरीफ भी था। वह पुरे दिन अपने किताबों में पड़ा रहता, शाम को वह बाहर घुमने के लिए निकलता। उसके अन्दर कोई बुराई दिखती नहीं थी।


शान जहाँ रहता था वहाँ से बहुत करीब ही एक जगह चाँदनगर पड़ता जहाँ सिर्फ रात को महफिलें सजतीं, और महफिलें ऐसी जहां ख्वाहिशें और खुशियाँ का कारोबार होता था। वहाँ कोई भी जाए तो खुश ज़रूर होता था। आप यूँ समझ लें वो जगह ऐसी थी जहाँ कुछ लोग जाकर अपनी जिस्मानी भूक मिटाते थे। कुछ लोग उस जगह को तवायफ खाना कहते तो कुछ रंडी खाना। ये जगह कुछ शरीफ लोगों ने ही बनाया था। वह जगह सबकी नज़र में बूरी थी मगर ये कहना गलत है, क़्योंकि जहाँ जाकर लोग खुश हों, जहाँ लोगों की ख्वाहिशें पूरी हो, वह जगह बूरी कैसे हो सकती है। 


हाँ ये और बात है कि जो लोग वहाँ जाते थे वो खुद उस जगह की बुराई करते और दुसरों को वहाँ कभी ना जाने की ताक़ीद करते। दिन में वहाँ इतना कब्रिस्तान का सन्नाटा रहता, इतना सन्नाटा की आप को वहाँ डर लगने लगे। रात की लूटी हुई रूहें ख़ामोशी में आरमगो रहतीं और फिर से रात होने का इंतज़ार करती।


शान कभी-कभी रात में उस जगह से हो आता था, या यूँ कह लें कि वह अक्सर वहाँ जाता। लड़का जवान है तो आज के दौर में तो ये सब आम है, लेकिन शान की शराफत को रात के अंधेरों ने छुपाए रखा और दिन के उजाले में लोगों ने उसको शरीफ़ का चोला पहनाए रखा।


शान आज रिक्शे में बैठकर अपनी किताबें खरीदने जा रहा था। जहाँ वह किताब खरीदने जा रहा था वहाँ से चाँदनगर का फासला सिर्फ चन्द मिनटों का था। वो वहाँ से गुजरते हुए अपने गुज़िस्ता रातों को याद कर के मुस्कराया। वह दूकान पहूँचा और किताबें देखने लगा तभी वहाँ एक लड़की आयी, नौजवान परी सी ख़ूबसूरत, चाँद सी लड़की। 


वो लड़की आयी, कुछ किताबें देखी और दुकानदार से बात करने लगी। पूरी तरह से स्याह बुर्क़े में लिपटी वह लड़की। सिर्फ उस लड़की की आँखें नज़र आ रहीं थी। दुकानदार से बात करते हुए उसने अपने चेहरे से बुर्का हटा लिया। बड़ी-बड़ी काली आँखे, आँखों में सुरमा लगा हुआ जिससे वह और खुबसुरत लग रही थीं। एक अजीब कशीश थीं उसकी आँखों में। शान उन आँखों में खो गया। उन आँखों ने शान को देखा और एक मुस्कुराहट बिखेर दीं जिससे शान और मदहोश हो गया। लड़की ने किताबों के पैसे दिए लेकिन दुकानदार ने ऊपर जाती सीढ़ियों के तरफ इशारा कर के अंदर जाने को कहा, फिर दुकानदार अपने नौकर को दुकान का देखने को बोलकर चला गया। 


शान किताबें ले चूका था और अब उसे चले जाना था लेकिन वह वहीं ठहरा रहा और दूसरी किताबों को देखते हुए लड़की कि आँखों और उसकी मुस्कुराहट को याद करता रहा और इस उम्मीद में वहीं रुका रहा कि शायद लड़की वापस आए तो फिर से देख ले। उस बुर्के वाली लड़की का इंतज़ार करता रहा।


  तकरीबन आधे घंटे में वो उब गया और जाने ही वाला था कि दोनों वापस आए और दुकान वाले ने लड़की को कुछ पैसे दिए। लड़की ने पैसे लिए, किताबें ली और खुश होकर जाने लगी। शान ये सब देख सका, मगर उसने गौर नहीं किया। वो तो बस उन आँखों में खोया रहा। वह लड़की जाने लगी। शान भी उसके पिछे हो लिया। उसको पहली बार लगा कि ये वही लड़की है जिसकी उसे तलाश थी। उसने महसुस किया कि उसकी धड़कने तेज़ हो गई है। 


शायद उसे उस लड़की से पहली नज़र में मुहब्बत हो गई थी। वो उसके पिछे ही चलता रहा, लड़की ने कुछ न कहा। वह चलती रही। 


कुछ देर बाद लड़की ने कहा,

आप मेरे पिछे क्यों आ रहें हैं?

शान घबरा गया और हड़बड़ाहट में रूकते-टूटते ज़ुबान से कहा, 

नहीं तो मैं अपने रास्ते जा रहा हूँ।

लड़की मुस्कुराई और फिर पूछा - 

ये रास्ता आप के घर को जाता है?

जी, जी हाँ,

शान ने मुख्तसर जवाब दिया।

आप का नाम क्या है? शान ने हल्की आवाज़ में पूछा।

हसीना लड़की ने बताया।

क्या आप मुझसे शादी करेंगी?

शान ने अचानक से पूछ लिया।


जिसपर लड़की पहले तो चौंक गई, फिर थोड़ी देर बाद मुस्कुरा कर कहा - बड़े ढीठ हो पहली मुलाक़ात में कोई लड़की से ऐसे सवाल करता है भला?

शान ने कहा मुझे वो सब नहीं आता, पहले लड़की का पिछा करो, उसका मोबाईल नम्बर माँगो, उसके साथ घुमो फिरो फिर शादी करो। मैं ऐसा नहीं हूँ।

लड़की ने मुस्कुरा कर कहा,

मुझसे शादी करोगे?

हाँ - शान ने झट से कहा।

तुम नहीं करोगे, सब ऐसे ही बोलते हैं, करता कोई नहीं। लड़की ने कहा।

मैं करुँगा, शान ने फौरन कहा।

अच्छा ठीक है फिर चलो मेरे घर बात करो।

इतनी गुफ्तगू के बाद वो दोनों चाँदनगर पहुँच चुके थे।

शान को अब तक ये मालुम ना हो सका कि वह कहाँ है। वह तो उस लड़की की मुहब्बत में पुरी तरह गिरफ्त हो चुका था। चलो फिर, कहाँ है तुम्हारा घर? शान ने पुछा।


चलो, लड़की शान को लेकर वहीं गई, जहाँ वो अक्सर जाया करता था।

लड़की ने सामने एक हवेलीनुमा घर दिखाते हुए कहा ये है मेरा घर, चलो अन्दर।

शान ने जब देखा तो उसको होश आया। उसको फिर से यहाँ गुजारी रातें याद आ कर आँखो से गुजर गई। 

उसे ऐसा लगा जैसे उसके पांव के नीचे से जमीन खिसक गई हो। वह सुन्न पड़ गया। वह कभी उस जगह को देखता तो कभी उस लड़की के हुलीए को। 

तुम्म यहाँ रहती हो? शान ने चौंकते हुए ये सवाल किया।

हाँ, यही तो मेरा घर है। 

मतलब तुम भी.....,शान कहते कहते रुक गया।

उसे अब पता चला कि वह लड़की दुकान क्यों गई थी, और दुकान वाले ने उसे पैसे क्यों दिये। और किताबें खरीदना किस बात का बहाना था और ये पर्दा से कौन से इज़्ज़त ढापी जा रही थी। वह बगैर कुछ बोले पल्टा, और तब-तक भागता रहा जब तक उसका घर नहीं आया। वह दौड़कर अपने कमरे में गया और दरवाजा ज़ोर से बन्द कर दिया। उसके आँखो के सामने उसकी चाँदनगर में गुजारी रातें, गुजरती रही।


शाहनवाज़ आलम "मुज़िर"


8 Comments

  1. bahut khub story hai👍👍👍👍👍waah

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  2. Ek dam "Manto" style me👍👍👍👍

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    1. कोशिश किया गया है।

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  3. आप खुद को मोआशरे मे अपनी सच्चाई छुपा सकते है ,लेकिन तब तक जब तक आप मे हिम्मत हो छुपाने की ।एक दिन या तो खुद सच्चाई पता चल जाती है या आप खुद परेशान हो कर सच्चाई लोगो को बता देते है ।

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    1. सही कहा आपने। लेकिन मुआशरा ऐसा होना चाहिए जिसमें किसी को कुछ छुपाने की ज़रूरत ना पड़े। अगर कोई रास्ता भटक जाए तो सिर्फ इसी लिए वापस ना आ पाए कि लोग क्या कहेंगे।

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